asd नौकरशाहों की पत्नियों के साथ ही सेवानिवृत अफसरों को भी पद ना देने से संबंध बने नियम

नौकरशाहों की पत्नियों के साथ ही सेवानिवृत अफसरों को भी पद ना देने से संबंध बने नियम

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यूपी सरकार द्वारा कानून में संशोधन कर सुधारवादी कदम उठाए जा रहे हैं जिसके तहत सहकारी संस्थाओं और ट्रस्टों में राज्य के नौकरशाहों की पत्नियों को अहम पद दिए जाने को औपनिवेशिक सोच का नतीजा बताया गया है। अगर ध्यान से सोचे तो यह निर्णय राज्य सरकार का उस आम आदमी के हित का कह सकते हैं जिसके इस व्यवस्था के चलते पात्र होने के बाद भी अहम पदों पर जाकर काम करने का मौका नहीं मिल पाता है। मुझे लगता है कि इसी के साथ केंद्र व यूपी सहित सभी प्रदेशों की सरकारों को एक ऐसा नियम भी बनाना चाहिए जिसके तहत सरकारी पदों पर रहे चुके सेवानिवृत अधिकारियों को आयोगों व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती ना देने और राजनीति में उच्च पद से दूर रखने तथा राज्यपाल आदि न बनाने का प्रावधान हो। उन्हें भी अगर वो सेवाभाव से काम करना चाहते हैं तो उन्हें राजनीतिक दलों में कार्यकर्ता के रूप में समाहित कर उनके अनुभव का लाभ लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि रिटायरमेंट के बाद अच्छी खासी पेंशन उन्हें मिलती है। और कुछ एकमुश्त रकम भी मिलती है जिससे वो अपना जीवन यापन अच्छी प्रकार से कर सकते हैं और अपना खाली समय समाज की सेवा में लगाकर अपने समय का सदुपयोग उनके द्वारा किया जा सकता है। फिलहाल नौकरशाहों की पत्नियों को पद देने वाले कानून के संदर्भ में छपी खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने कहा है कि ब्यूरोक्रेट की पत्नियों को पद देने की प्रथा खत्म की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि अब सरकारी नौकरशाहों की पत्नियों को पदेन पद देने की औपनिवेशिक परंपरा को खत्म किया जाएगा। राज्य की सहकारी समितियों, ट्रस्टों और सोसाइटी के लिए नए मॉडल बॉयलॉज बनाए जा रहे हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हों।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में मई 2024 में इस प्रथा को औपनिवेशिक मानसिकता वाला बताते हुए कहा था कि यह अपमानजनक और अस्वीकार्य है, जब यह सामने आया कि बुलंदशहर में जिला महिला समिति की अध्यक्षता जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) की पत्नी को दी जा रही थी। कोर्ट ने कहा था कि क्यों सिर्फ डीएम की पत्नी को अध्यक्ष बनाया जाता है?
कोर्ट ने पूछा, यह नेतृत्व क्षमता या सामाजिक सेवा के आधार पर क्यों नहीं होता? कोर्ट ने यह भी देखा कि रेड क्रॉस सोसाइटी और चाइल्ड वेलफेयर सोसाइटी जैसी संस्थाओं में भी यही परंपरा थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह एक औपनिवेशिक मानसिकता है, जिसमें नौकरशाहों की पत्नियों को विशेष पदों पर रखा जाता है। यूपी सरकार को सहकारी समितियों, ट्रस्टों और सोसाइटी से जुड़े सभी कानूनों में संशोधन करने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई संस्था सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त कर रही है, तो उसे सरकार के नए मॉडल बॉयलॉज का पालन करना होगा, अन्यथा उसे कानूनी पहचान और सरकारी सहायता से वंचित किया जा सकता है। यूपी सरकार ने बताया कि संशोधन का मसौदा तैयार किया जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इन संस्थाओं का संचालन लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सदस्यों द्वारा हो।
मेरा मानना है कि जनहित में इस बिंदु पर हर स्तर पर विचार हो और समयानुकुल निर्णय लिया जाए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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