asd आरएसएस और भाजपा राहुल और खरगे जी देशद्रोही नहीं हो सकती

आरएसएस और भाजपा राहुल और खरगे जी देशद्रोही नहीं हो सकती

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लोकतंत्र में राजनीति में हर दल के नेता और कार्यकर्ताओं को ही नहीं आम आदमी को भी अपनी बात कहने का अधिकार प्राप्त है। उस पर कौन कितना ध्यान देता है वो एक अलग बात है। आजकल भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बड़ी मुखरता के साथ राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप करने के अतिरिक्त कुछ भी कहने का मौका नहीं चूक रहे है। उनका कहना है कि गंगा में स्नान करने से गरीबी खत्म नहीं होगी तो राहुल गांधी का कहना है कि भाजपा आरएसएस संविधान का अपमान करने में लगे हैं। यहां तक तो मुझे कुछ नहीं कहना क्योंकि दलितों के बारे में जो वो बोल रहे हैं उसके बारे में वो ही सक्षम है लेकिन एक बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि भाजपा हो या आरएसएस देशद्रोही कोई नहीं है। और ना ही जनता ऐसा सोचती है। मध्य प्रदेश के महू में खरगे ने जय बापू जय भीम रैली को संबोधित करते हुए कहा कि भाजपा आरएसएस दलित आदिवासियों और गरीबों को नुकसान पहुंचा रही है। उन्होंने भाजपा आरएसएस के लोगों को देशद्रोही करार दिया। मेरा मानना है कि भाजपा और आरएसएस कुछ भी हो सकते हैं देश की आजादी में उन्होंने कुछ योगदान दिया या नहीं यह जनता को तय करना है। पिछले दो बार से भाजपा चुनाव जीतकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बना रही है तो खरगे जी अब आम मतदाता इतना ना समक्ष तो रहा नहीं कि देश के लिए कौन हितकर हो सकता है कौन नहीं। मेरा तो हमेशा कहना रहा है कि केंद्र हो या प्रदेश सत्ता और विपक्ष मजबूत होना चाहिए तभी संतुलन बना रहेगा। आज भाजपा को मतदाता को विजय का सेहरा पहना रहे हैं कल कांग्रेस को भी पहना सकते हैं। 20 साल पहले कांग्रेस लगभग पूरे देश में सरकार चला रही थी इसलिए कब कौन पावर में आए और निकल जाए यह नहीं कह सकते लेकिन यह जरूर है कि नेताओं को एक दूसरे पर इतना घिनौना आरोप नहीं लगाना चाहिए। क्योंकि देश की भावी पीढ़ी अब बहुत समझदार हो गई है। ऐेसे में हमारे नेता ऐसी भाषा का उपयोग करेंगे तो वो क्या कर सकते हैं इसकी कल्पना भाजपा और आरएसएस को देशद्रोही बताने वालों को नहीं होगी। मेरा किसी राजनीतिक दल से कोई लेना देना नहीं है। सरकार मेेरे जैसे समाचार पत्र संचालक को इस स्थिति में पहुंचा चुकी है कि अगर उनमें अपना दम और पाठकों का समर्थन ना हो तो संबंधित विभागों के अधिकारी कब तक समाचार पत्रों को बंद करा सकते थे। मेरा इतना कहना है कि ऐेसे राष्ट्रीय संगठनों के लिए इस तरह के शब्द बोलना किसी के लिए भी उचित नहीं है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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