सरकार द्वारा हर बच्चे को आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ ही नागरिकों को साक्षर बनाने के लिए बुजुर्गों को भी अक्षर ज्ञान का मौका देने के लिए संकल्पित नजर आती है। साधन संपन परिवारो के बच्चे बड़े बड़े स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर साधन विहीन परिवारों के बच्चे शिक्षा में हो रहे बदलावों का ज्ञान और सुविधाओं का उपयोग करने से वंचित ना हो इसके लिए कम्प्यूटर और स्मार्टफोन लैपटॉप सुविधा उपलब्ध कराने का अभियान केंद्र व प्रदेश की सरकार चला रही है। कहीं उपहार के रूप में बच्चों को दी जा रही है। जैसा देखने और सुनने में आता है कि अच्छे दृष्टिकोण से शुरू किए गए ज्यादातर काम उन्हें अंजाम देने वालों से खराब हो जाते है। लैपटॉप और स्मार्टफोन बांटने में जो नीति अपनाई जा रही है वो सही नहीं है। क्योंकि पिछले कुछ दिनों में जो देखने को मिला उससे पता चलता है कि मोटी फीस लेने वाले स्कूलों में बच्चे बच्चियों को लैपटॉप वितरित कर दिए गए जबकि उन्हें इनकी कोई आवश्यकता नहीं होगी। इसका परिणाम यह हुआ कि जो जरूरतमंद बच्चे हैं उन्हें लैपटॉप स्मार्टफोन नहीं मिल रहे है। एक समाचार पढ़ने को मिला कि स्मार्टफोन से वंचित छात्राओं ने कलक्टेट मे किया प्रदर्शन। इनका कहना था कि उन्हें स्मार्टफोन समय से मिलना चाहिए था जो नहीं दिया गया। मुझे लगता है कि यूपी के सीएम योगी को जिम्मेदार लोगों से पूछना चाहिए कि जिन वर्ग के बच्चों के लिए व्यवस्था निर्धारित की गई थी उन्हें ना मिलकर उद्योगपतियों और अमीरों को बच्चों को पहले लैपटॉप क्यों बांटे गए। परीक्षा आने वाली है। अपना पेट काटकर बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावक को ध्यान में रखते हुए बच्चों को स्मार्टफोन उपलब्ध कराए जाएं। बाद में पेट भरे परिवारों के बच्चों पर ध्यान दिया जाए। तभी शिक्षा में यह अंतर समाप्त किया जा सकता है।
बांट दिए गए संपन्न कॉलेजों में, जरूरतमंद छात्राएं रह गई स्मार्टफोन से वंचित
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