asd कृष्ण नागपाल की नवीन कृति ‘पापा अभी जिन्दा हैं’ का विमोचन

कृष्ण नागपाल की नवीन कृति ‘पापा अभी जिन्दा हैं’ का विमोचन

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नागपाल के शब्दबाणों का मैं प्रारंभ से मुरीद हूं : गिरीश पंकज
नागपुर 28 फरवरी। महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर से प्रकाशित होने वाले राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘राष्ट्र पत्रिका’ के संपादक कृष्ण नागपाल की दसवीं नवीन साहित्यिक कृति, ‘पापा अभी जिन्दा हैं…’ का विमोचन नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला में देश की विख्यात हस्तियों की गरिमामय उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
कहानी संग्रह, ‘पापा अभी जिन्दा हैं’ का प्रकाशन भारत के विख्यात प्रकाशन संस्थान ‘डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.’ नई दिल्ली के द्वारा किया गया है। लोकार्पण समारोह में नागपुर की उपन्यासकार प्रभा ललित सिंह, माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्व विद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. पवित्र श्रीवास्तव, आईआईएमसी के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी, लेखक गिरीश पंकज, पुस्तक लेखक कृष्ण नागपाल, व्यंग्यकार सुभाष चंदर, माखनलाल चतुर्वेदी, राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुल सचिव प्रोफेसर अविनाश वाजपेयी, आईआईएमसी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पवन कोंडल सहित अनेक गणमान्य हस्तियों ने कहानी संग्रह के बारे में अपने-अपने विचार व्यक्त करते हुए भरपूर सराहना की।

कवि, गजलकार, कथाकार तथा व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि, मैं पिछले पैंतालीस सालों से कृष्ण नागपाल की प्रखर लेखनी, उनके शब्दबाणो का मुरीद हूं। हम दोनों ने एक साथ छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर से पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण किया। जब मैं मनेंद्रगढ़ में रहते हुए पत्रकारिता और साहित्य का विद्यार्थी था, तब नागपाल कटघोरा में देशबंधु के संवाददाता थे और तभी उनके कहानी संग्रह काला इतिहास का प्रयास प्रकाशन बिलासपुर के द्वारा प्रकाशन हो चुका था। आपातकाल में प्रकाशित ‘काला इतिहास’ की चर्चा सुनकर मेरी नागपाल से मिलने की उत्सुकता जागी थी। यह भी संयोग था कि, जब मैं कुछ वर्ष के बाद बिलासपुर छोड़कर रायपुर आ गया तो नागपाल भी कटघोरा छोड़कर रायपुर आ गए। नागपाल के लेखन में छत्तीसगढ़ की माटी की भरपूर छाप दिखायी देती है। उन्होंने अपने आत्मपरिचय में लिखा भी है कि, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी बिलासपुर तथा रायपुर की साहित्यिक आबोहवा में रचे बसे लेखकों, कवियों पत्रकारों, कलाकारों के प्रभावी तथा सुखद सानिध्य ने मेरा कलम से अटूट रिश्ता जोड़ दिया। नागपाल के समग्र लेखन में मिशन-भाव साफ झलकता है। वे केवल लिखने के लिए नहीं लिखते वरन लोकपीड़ा को स्वर देने के लिए प्रतिबद्ध होकर कलम चलाते हैं। इसलिए उनकी सभी रचनाएं जन पक्षधरता के गीत सरीखी हैं। समकालीन पत्रकारिता पर बाजार का इतना भयंकर दबाव है कि वह सच कहने का साहस खो चुकी है। कुछ अपवाद भी हैं।

जब मैं नागपाल की कलम की धार से रूबरू होता हूं तो लगता है कि अभी भी तपते रेगिस्तान में जलकुंड बचा हुआ है। सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। अभी भी कलम अपनी तेजस्विता के साथ कहीं न कहीं विद्यमान है, अपने मूल धर्म के साथ। लाखों लोग नागपाल का लिखा चाव से पढ़ते हैं। उनके लेखन में व्यंग्य की पैनी धार है। अन्याय का खुला प्रतिकार है। उनकी पत्रकारिता और साहित्य लेखन का यही जीता-जागता सच है। बीते वर्ष अमन प्रकाशन कानपुर से प्रकाशित ‘देह के पुल पर खड़ी लड़की’ उपन्यास उनके यथार्थ और निर्भीक लेखन का जीवंत प्रमाण है। अखबारी संसार के काले सच को उजागर करते इस उपन्यास की अल्पकाल में अनेकों प्रतियों का बिकना कथाकार, उपन्यासकार की सूझ-बुझ भरी कलम और लोकप्रियता को दर्शाता है। कथा संग्रह ‘पापा अभी जिन्दा हैं’ भी उनकी यथार्थ से ओत-प्रोत जीवंत कृति हैं। पिता, पुत्री, पिता, पुत्र, भाई, बहन और मित्रता के रिश्ते की अहमियत और जरूरत को बयां करती इस संग्रह की हर कहानी पाठक को गहरे तक छूने में सक्षम है। वैसे भी संवेदनशील साहित्यकार नागपाल स्वयं रिश्तों को जीवन पर्यंत निभाने के कितने हिमायती हैं इसका पता उनके नये-पुराने मित्रों की आत्मीय करीबी से परिलक्षित होता है। इस संग्रह हमारी-आपकी दुनिया के ही चेहरे हैं, जिन्हें पढ़ने और जानने से अत्यंत सुखद अनुभूति होती है और यह विश्वास भी बलवति होता है, जिन विषयों पर दूसरे लेखक अक्सर लिखने से कतराते हैं, कृष्ण नागपाल निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ बड़ी आसानी से लिख और कह जाते हैं। साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में एक साथ सतत सक्रिय कृष्ण नागपाल को महाराष्ट्र शासन के द्वारा मुंशी प्रेम चंद पुरस्कार (कहानी) एवं बाबूराव विष्णु पराडकर-स्वर्ण (पत्रकारिता-कला के लिए) पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चुका है।

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