Date: 14/12/2024, Time:

रेलवे में पांच साल में एक लाख करोड़ खर्च, पर नहीं रूक रही मानवीय त्रुटियां

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नई दिल्ली 19 जून। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत का रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। इस विशाल नेटवर्क की आधारभूत संरचना के विकास, इसे आधुनिक बनाने, परिचालन दक्षता और सुधार के लिए भारतीय रेलवे ने कई बड़े कदम उठाए हैं।
अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत का रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। इस विशाल नेटवर्क की आधारभूत संरचना के विकास, इसे आधुनिक बनाने, परिचालन दक्षता और सुधार के लिए भारतीय रेलवे ने कई बड़े कदम उठाए हैं।

ये सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में रेल हादसों में बीते दो दशकों में उल्लेखनीय तौर पर कमी आई है। जहां वर्ष 2000-01 में 473 ट्रेन हादसे हुए, वहीं 2022-23 में ये हादसे घटकर 40 की संख्या पर आ गए। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि 2004 से 2014 के दशक के दौरान प्रति वर्ष औसतन 171 रेल हादसे हुए। वहीं, 2014 से 2024 के दशक में प्रतिवर्ष औसतन रेल हादसों की संख्या घटकर 68 हो गई।

बीते पांच वर्षों में कितना खर्च हुआ?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार बीते पांच वर्षों में राष्ट्रीय रेल सुरक्षा के नाम पर कुल 108742.57 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वर्ष 2017-18 में 17259.53 करोड़, 2018-19 में 19595.63 करोड़, 2019-20 में 16799.61 करोड़, 2020-21 में 27713.31 करोड़, और वर्ष 2021-22 में 27374.49 करोड़ रुपये खर्च किए गए।

रेल परिचालन के दौरान सुरक्षा में सुधार के उपाय
राष्ट्रीय रेल संरंक्षण कोष: राष्ट्रीय रेल संरंक्षण कोष (आरआरएसके) को वर्ष 2017-18 में पेश किया गया था। इसमें पांच वर्षों के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इसमें महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों के प्रतिस्थापन, नवीनीकरण और सुधार के काम शामिल थे। 2017-18 से 2021-22 तक आरआरएसके के तहत अलग अलग कार्यों पर 1.08 लाख करोड़ का खर्च आया। वर्ष 2022-23 में सरकार ने आरआरएसके को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा दिया। इसके लिए 45 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया।

कवच प्रणाली: कवच प्रणाली को राष्ट्रीय स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (एटीपी- National Automatic Train Protection) प्रणाली के रूप में अपनाया गया है। कवच प्रणाली की मदद से लोको पायलट को ट्रेन में स्वचालित रूप से ब्रेक लगाने में मदद मिलती है। खास बात ये है कि इसकी मदद से खराब मौसम में भी ट्रेन का संचालन सुरक्षित रूप से करने में मदद मिलती है।

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग: रेलवे संचालन को और भी अधिक आसान बनाने के लिए 6586 स्टेशनों में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (ईआई) सुविधा प्रदान की गई है। इसके अलावा व्यस्त मार्गों पर स्वचालित ब्लॉक सिग्नलिंग (एबीएस) की सुविधा प्रदान की गई। कुल मिलाकर 4111 रेलवे किलोमीटर (आरकेएम) को एबीएस सुविधा से जोड़ा गया। 31 अक्टूबर, 2023 तक 11137 गेटों को सिग्नल के साथ जोड़ा गया। इसके अलावा ब्रॉड गेज मार्गों पर सभी मानव रहित लेवल क्रॉसिंग को जनवरी 2019 तक समाप्त कर दिया गया।

सतर्कता नियंत्रण उपकरण: लोको पायलट्स की सतर्कता सुनिश्चित करने के लिए सभी लोकोमोटिव अब सतर्कता नियंत्रण उपकरणों (वीसीडी) से सुसज्जित हैं। इसके अलावा कोहरे से प्रभावित क्षेत्रों में पायलट्स को जीपीएस-आधारित फॉग सेफ्टी डिवाइस (एफएसडी) प्रदान किए गए हैं।

उन्नत ट्रैक रिकॉर्डिंग कार: अलग अलग जगहों पर रेलवे ट्रैक की सुरक्षा के लिए उन्नत ट्रैक रिकॉर्डिंग कारों को पेश किया गया। ऐसा होने से रेलवे परिचालन में एक नई क्रांति आई। 31 मई 2023 तक 6609 स्टेशनों पर पूर्ण ट्रैक सर्किटिंग सुविधा प्रदान की गई। ट्रैक की सुरक्षा और खामियों का पता लगाने के लिए रेलों के अल्ट्रासोनिक परीक्षण पर भी जोर दिया गया।

पुल प्रबंधन प्रणाली: रेलवे पुलों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए पुल प्रबंधन प्रणाली (बीएमएस) की सुविधा प्रदान की गई। यह प्रणाली वेब-आधारित आईटी एप्लिकेशन के तहत तैयार की गई है। इसका इस्तेमाल किसी भी समय किया जा सकता है। पुलों के निरीक्षण के लिए नई तकनीके जैसे निरंतर जल स्तर की निगरानी, ड्रोन निरीक्षण और नदी तलों की 3डी स्कैनिंग भी पेश की गई।

ओएमआरएस: इसके अलावा रेलवे ट्रैक के रखरखाव के लिए ऑनलाइन मॉनिटरिंग ऑफ रोलिंग स्टॉक सिस्टम (ओएमआरएस) और व्हील इम्पैक्ट लोड डिटेक्टर (डब्ल्यूआईएलडी) जैसी उन्नत तकनीक को अपनाया गया।

कोचों को बदलने का काम: पारंपरिक आईसीएफ डिजाइन कोचों को एलएचबी डिजाइन कोचों से बदलने का काम जारी है।

सुरक्षा के काम और खर्च: वर्ष 2004-14 बनाम वर्ष 2014-24
सुरक्षा संबंधी कार्यों पर व्यय 2.5 गुना बढ़ा। वर्ष 2004 से 2014 के दौरान जहां 70273 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वहीं वर्ष 2014 से 2024 के दौरान यह खर्च 1.78 लाख करोड़ हुआ।
ट्रैक के नवीकरण पर 2.33 गुना बजट बढ़ा। वर्ष 2004 से 2014 के बीच ट्रैक के नवीनीकरण पर 47018 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वहीं वर्ष 2014 से 2024 के बीच 109659 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
वेल्डिंग में खराबी आने की घटनाएं 87 प्रतिशत कम हुईं। जहां 2013-14 में ऐसी 3699 से घटनाएं हुईं थीं। वहीं 2023-24 में इनकी संख्या घटकर 481 हो गईं।
लेवल क्रॉसिंग (एलसी) को हटाने का खर्च 6.4 गुना बढ़ा। वर्ष 2004 से 2014 तक इस काम में 5726 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। वहीं वर्ष 2014 से 2024 के दौरान कुल 36699 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
मानव रहित फाटकों की संख्या 100 फीसदी कम हुईं। 31 मार्च 2014 को इनकी संख्या 8948 थी। वहीं 1 जनवरी 2019 तक इनकी संख्या शून्य हो गई।
रोड ओवर ब्रिज का निर्माण 2.9 गुना बढ़ा। वर्ष 2004 से 2014 के दौरान इनकी संख्या 4148 थी। वर्ष 2014 से 2024 के दौरान इनकी संख्या बढ़कर 11945 हो गई।
पुलों के पुनर्निमाण का खर्च दोगुना बढ़ा। वर्ष 2004 से 2014 के दौरान इन कामों पर कुल 3919 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वहीं वर्ष 2014 से 2024 के दौरान 8008 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की संख्या 3.5 गुना बढ़ी। वर्ष 2004 से 2014 के के बीच इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की कुल संख्या 837 थी। वर्ष 2014 से 2024 के बीच इनकी संख्या 2964 हो गई।
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