asd प्रधानमंत्री जी ! देश की आजादी में योगदान देेने वाले लघु और भाषाई समाचार पत्रों मानसिक आर्थिक उत्पीड़न क्यों! अखबार के खिलाफ कार्रवाई के साथ ही नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर भी दिया जाए ध्यान

प्रधानमंत्री जी ! देश की आजादी में योगदान देेने वाले लघु और भाषाई समाचार पत्रों मानसिक आर्थिक उत्पीड़न क्यों! अखबार के खिलाफ कार्रवाई के साथ ही नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर भी दिया जाए ध्यान

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देशभर में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चल रही सरकार के 11 साल और तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा होने की खुशियां मनाई जा रही हैं। उपलब्धियां घर घर तक पहुंचाने के लिए पार्टी कार्यकर्ता और नेताओं द्वारा अब तक किए गए कार्याें का प्रचार युद्धस्तर पर किया जा रहा है। पिछले 11 साल में अपने यहां के लघु और भाषाई समाचार पत्र संगठन डीएवीपी और आरएनआई व सूचना विभाग के अधिकारियों द्वारा विभिन्न तरीके से किए जा रहे उत्पीड़न को झेलने के बावजूद पीएम मोदी की योजनाओं को घर घर तक पहुंचाने और आम आदमी को उसके प्रति जागरूक करने के लिए पूरा प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि जब आपस में चर्चा होती है तो यह बिंदु उभरकर आता है कि मोदी और योगी अपने स्तर पर भयमुक्त वातावरण नागरिकों को उपलब्ध कराने जनमसस्याओं के समाधान का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन बिना किसी स्वार्थ के सबके हित की बात करने वाले लघु समाचार पत्र संचालकों से केंद्र व प्रदेश सरकार को क्या नाराजगी है जो इनके द्वारा अपनी अपनी सरकार का गठन होने के बाद से इन्हें मिलने वाले विज्ञापनों को लगभग समाप्त कर दिया गया है। उपर दिए गए विभागों के अफसर विभिन्न तरीकों से इस श्रेणी के समाचार पत्र संचालकों और उनसे जुड़े लोगों का उत्पीड़न करने का कोई मौका नहीं चूक रहा है। परिणामस्वरूप हमेंशा सही बात को मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए सक्रिय समाचार पत्रों के संपादक पत्रकार और मालिक जब भी एक जगह एकत्र होते हैं तो यही चर्चा करते हैं कि आखिर सरकार हमसे दुश्मनी क्यों निभा रही हैै। क्योंकि एक तरफ तो अपने आप को बड़ा कहलाने वाले बैनर के समाचार पत्रों को सभी विज्ञापन और कभी कभी बिना मतलब के आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए विज्ञापन भी सरकार के साथ साथ सरकारी विभागों के अधिकारी इन्हें देने में नहीं चूक रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। यह समझ से बाहर है। पीएम मोदी की आखिर शासन सरकार और जनता के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार ईमानदारी से अपनी भूमिका निभा रहे इस श्रेणी के समाचार पत्र संचालकों का आखिर क्या कसूर है और सरकार इन्हें समाप्त करना चाहती है या संबंधित विभागों के अफसर यह भी प्रधानमंत्री जी दिखवाया जाए क्योंकि आप हमेशा छोटे और कमजोरों के साथ खड़ा रहने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ अफसर इनका उत्पीड़न कर इन्हें समाप्त करने के लिए प्रयासरत नजर आते हैं।
मान्यवर जिन बिंदुओं को लेकर डीएवीपी आरएनआई और सूचना विभाग के अफसरों द्वारा अपनी निरंकुश कार्यप्रणाली के चलते किसी की मान्यता रिनुवल रोक दी जाती है तो किसी को अन्य कारणों से परेशान किया जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है। पीएम साहब इस बारे में आप कुछ करिए। एक तरफ तो जनप्रतिनिधि भाषाई समाचार पत्रों का यह कहकर गुणगान करते नहीं थकते कि देश की आजादी में इनका बड़ा योगदान रहा है लेकिन जब इन्हें बढ़ावा देने का मौका आता है तो यह सब भूलकर बड़े समाचार पत्रों का बैंक बैलेंस बढ़ाने और उन्हें मजबूत करने में लग जाते हैं। प्रधानमंत्री जी कभी जांच कराइये पिछले 11 साल में बड़ी संख्या में अधिकारियों के उत्पीड़न के चलते देशभर में बड़ी संख्या में अखबार बंद हो चुके हैं लेकिन ऐसे प्रकरणों में सूचना डीएवीपी और आरएनआई के बाबूओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई लगती है जबकि अगर कोई समाचार पत्र नियमों का पालन नहीं कर रहा है तो उसके लिए जितना वह जिम्मेदार है उतना ही अफसर। क्योंकि इससे पूर्व उनके द्वारा कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती थी। कुल मिलाकर पीएम साहब जब जानते हैं कि आप किसी का बुरा नहीं सोचते उसके बाद भी सूचना विभाग के नौकरशाहों की कार्यप्रणाली से सरकार की छवि लघु समाचार पत्र संचालकों की विरोधी बनती जा रही है। उसे रोका जाना चाहिए। किसी समाचार पत्र के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है कि सूचना डीएवीपी और आरएनआई के संबंधित अफसरो को सस्पेंड कर जांच कराई जाए। उस पर जो खर्च हो वो इन नौकरशाहों से लिया जाए। जिससे समाचार पत्र संचालकों को न्याय मिल सके और अखबार बंद होने की गति भी रूके।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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