बैंकों में अपना पैसा रखने वाले खाताधारकों के लिए यह खुशखबरी ही कह सकते है कि केंद्र सरकार अब जमा राशि पर बीमा सीमा को 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख करने की योजना बना रही है। बताते चलें कि इसके लिए सरकार ने जमा बीमा एवं ऋण गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) की स्थापना की है, जो भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। यह देश में सभी वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों में जमा राशि को 5 लाख रुपये तक की बीमा सुरक्षा प्रदान करती है। यानी कोई बैंक डूबता है तो उसके ग्राहक की पांच लाख रुपये तक की रकम सुरक्षित रहेगी। यहां देश में सभी वाणिज्य बैंकों और ग्रामीण बैंकों में 5 लाख तक की बीमा सुरक्षा अभी तक उपलब्ध कराई जाती है। अब यह दस लाख हो जाएगी। बताते चलें कि देश में जमा बीमा की शुरूआत 1962 में हुई। उस समय 1500 रूपये की सीमा थी जो 1976 में 20 हजार, 1980 में 30 हजार, 1993 में एक लाख और फरवरी 2020 में इस सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रूपये किया गया था जो 1993 के बाद सबसे बड़ी वृद्धि थी। यह कदम भी पंजाब महाराष्ट्र कॉपरेशन बैंक के संकट के समय उठाया गया था। खबरों के अनुसार अगर कोई बैंक किसी भी कारण से दिवालिया होता है या मोरेटियम में चला जाता है तो 90 दिन में ग्राहक को उसा जमा पैसा मिलता है। प्रभावित बैंक को 45 दिन में बीआईसीजी को खाताधारकों का ब्यौरा भेजना होता है। उसके बाद 45 दिन में उसे रकम लौटाई जाती है।
हम जब उधार पैसा देते हैं तो उसके द्वारा हमें पूरा वापस लौटाया जात है उस पर ब्याज तय होता है तो भी मिलता है। मेरा मानना है कि जब आम लेनदेन में एक दूसरे को हम पूरा पैसा लौटाते हैं और लेनदार को कठिनाई होने पर जमीन या अन्य तरीकों से वसूली हो जाती है और बैंक भी आम आदमी के साथ यही करती है। जितना पैसा ग्राहकों को देते हैं ब्याज सहित अपनी रकम वसूलते हैं तो यह कहां का इंसाफ है कि अगर किसी के खाते में एक करेाड़ रूपये जमा है तो उसे वापस पांच या दस लाख ही मिलेंगे। मेरा मानना है कि जब सरकार सभी को न्याय और उसके अधिकार दिलाने तथा प्रधानमंत्री हर आदमी को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश में लगे हैं तो बैंक डूबने या अन्य कारणों से खाताधारक का रूपया जितना पैसा बैंको में जमा हो पूरा पैसा वापस होना चाहिए। उसके बदले पांच या दस लाख का क्या मतलब है। प्रधाानमंत्री जी आपसे जनता को बड़ी उम्मीदें और ज्यादातर लोगों के बैंक खातें भी खुले हुए हैं और जबसे आपने जीरो पर खुलवाने शुरू किए तब से और ज्यादा खाताधारक हो गए हैं। इसलिए मेरा सुझाव है कि खातों में जमा पूरे पैसे का बीमा कराया जाए और बैंक में कठिनाई आने पर उस तारीख तक खातेधारक का जमा पैसा वापस दिलाया जाए क्योंकि व्यापारी और उ़द्योग चलाने वालों के साथ साथ नौकरी से सेवानिवृत लोग पेंशन का पैसा इस आश्य से बैंकों में जमा कराते हैं कि वो सुरक्षित रहेगा और उसके ब्याज से उनका घर का खर्च चलता रहेगा। अब अगर ऐसे में बैंक दिवालिया होता है और उसे पूरी रकम वापस नहीं मिलती तो वो तो जीते जी मर जाएगा या जीवन भर दो रोटी के जुगाड़ में लगा देगा। कानूनी रूप से भी हम जितना किसी से पेसा लेते हैं पूरा वापस लौटाते हैं तो बैंक भी पूर्ण राशि का बीमा कराए। आम आदमी के साथ यह आर्थिक अन्य ठीक नहीं कह सकते। यह स्थिति कुछ बैंक कर्मियों के कारण आती है इसलिए नुकसान उसकी निजी संपत्ति से वसूला जाए या रिजर्व बैंक उसकी भरपाई करे। आम आदमी पर ठीकरा क्यों फोड़ा जाए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
प्रधानमंत्री जी और रिजर्व बैंक के अधिकारी दें ध्यान! खाताधारक का पूरा पैसा हो वापस, बैंक के दिवालिया होने के लिए वो तो जिम्मेदार नहीं
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