बिजली की समस्या कोई नई नहीं है। पिछले कई दशक से वैसे तो हमेशा ही इसकी अनियमित आपूर्ति को लेकर सवाल उठते रहे हैं लेकिन हर साल गर्मियों में कई समस्याएं खड़ी होती हैं और यह स्थिति तब है जब सरकार पूर्ण रूप से अनियमित विद्युत आपूर्ति के दावे हमेशा करती रही है। जहां तक जानकारी है ऐसा भी नही है कि बिजली विभाग के मंत्री और अधिकारी इस मामले में कुछ कर ना रहे हो। फिर भी आखिर समय समय पर बिजली महंगी होने और नियमित आपूर्ति ना हो पाने से कौन से कारण है और इसे लेकर जो आम उपभोक्ताओं पर आर्थिक भार पड़ रहा है आखिर वो कब रूकेगा। यह विषय हमेशा ही सोचनीय रहे हो। पूर्व में जब देश में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो दिल्ली के एक वीआईपी क्षेत्र में कुछ घंटे बिजली गायब रही थी जिसे लेकर मीडिया में खूब चर्चा हुई थी। तब भी यह बिंदु सामने आया था कि मांग के अनुसार और बढ़ती आबादी के हिसाब से बिजली का उत्पादन पूर्ण रूप से ना हो पाने के चलते उपभोक्ता हमेशा इस विषय को लेकर परेशान होता रहा है। दावे और प्रयास बहुत किए जा रहे हैं लेकिन शायद नीति निर्धारक बिजली उत्पादन मांग के अनुरूप कराने में सफल नहीं है। इसीलिए हम इसकी कमी दिन रात झेल रहे हैं।
बात करें बिजली महंगी होने की तो आए दिन मीडिया में इस पर चर्चा होती है और कहीं बताकर और कहीं बिना बताए उपभोक्ताओं के कहे अनुसार आम आदमी को बिजली दर बढ़ोत्तरी अन्य प्रकार से मार झेलनी पड़ती है। अगर देखें तो इसमें कोई बुराई नहीं है मगर हर उपभोक्ता को उसकी सुविधा अनुसार व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयासरत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और यूपी के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी इस बारे में संबंधित अधिकारी और मंत्रियों से यह जानकारी जरूर लेनी होगी कि जब उपभोक्ता पूरा भुगतान कर रहा है तो उसे पूरी सप्लाई क्यों नहीं दी जा रही। आए दिन कहीं मजदूरों के तो कहीं गरीबों व बंद मकानों के बिजली बिल लाखों रूपये के भेज दिए जा रहे हैं। इस बारे में हर स्तर पर सुधार के निर्देश दिए जा चुके हैं मगर मुझे लगता है कि बिजली विभाग के बिल बनाने से संबंध अधिकारियों द्वारा जानबूझकर भी यह कराया जा सकता है क्योंकि आदमी आएगा तो सुनेगा भी और कुछ करेगा भी। वरना इतने फर्जी बिल क्यों बनकर नागरिकों के पास जा रहे हैं। अब बिजली दरें थोड़ी बहुत नहीं तीस फीसदी बढ़ाने की चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि पांच साल से नहीं बढ़ी दरें। घाटा सहना अब असंभव है। अगर यह होता है तो ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास में सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी होगी। जानकारों का कहना है कि नियामक आयोग प्रस्ताव स्वीकार करता है तो उपभोक्ताओं पर औसतन 600 रूपये हर माह बोझ बढ़ेगा। तीन किलोवाट के कनेक्शन का बिल जो 2000 आता था उसे 2600 रूपये अदा करने पड़ेंगे। प्रधानमंत्री जी व मुख्यमंत्री जी बिजली विभाग और अधिकारी शायद आम आदमी की समस्याओं और आर्थिक परेशानियों के बारे में ज्ञान नहीं रखते हैं क्योंकि बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के चलते उसे जीवन की अन्य आवश्यकताएं पूरी करने और दो समय की रोटी जुटाने में ही कठिनाई हो रही है। अब अगर बिजली के बिल में हर माह 600 रूपये बढ़ंेगे तो उसके तो घर का राशन ही गायब हो जाएगा।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आखिर पावर कॉरपोरेशन कब तक घाटा सहेगा। उसे बिल्कुल भी नुकसान नहीं उठाना चाहिए। लेकिन इस घाटे को पूरा करने के लिए आम आदमी का आर्थिक और मानसिक उत्पीड़न करने की बजाय सरकार सबसे पहले बिजली की चोरी रोके और अगर किसी क्षेत्र में पकड़ी जाती है तो उस क्षेत्र के बिजली विभाग के अधिकारी के खिलाफ भी कार्रवाई हो। तथा अधिकारियों की लापरवाही के चलते अगर कहीं नुकसान हो रहा है तो उसका खामियाजा संबंधित अधिकारी से वसूला जाए क्योंकि एक खबर में पता चलता है कि स्वतंत्रता संग्राम और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मेरठ में गर्मी में ओवरलोड की समस्या से निजात दिलाने के लिए लगाए गए ट्रांसफार्मर धूल फांक रहे हैं। आखिर लाखों करोड़ों खर्च कर की गई इस व्यवस्था का आम आदमी को लाभ क्यों नहीं हो पा रहा और उसके लिए दोषी कौन है। उससे नुकसान से भरपाई के साथ ही पद से हटाकर घर बैठाकर उनकी तनख्वाह व पेंशन बंद की जाए। दूसरे आए दिन विभागीय अधिकारियों को इधर से उधर करने निलंबित करने की बजाय वो जहां है वहीं बैठाकर मजबूर किया जाए कि वो अपने पद के तहत सभी कार्य समय से पूरा करे। विभिन्न मांगों को लेकर होने वाली हड़तालों पर सख्ती से रोक लगाई जाए। ना मानने वालों की जनहित में सेवाएं समाप्त हों तो मुझे लगता है कि बिजली महंगी नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि घाटा चोरी रूकने से कम हो सकता है दूसरे विद्युत उत्पादन ज्यादा करने के उपाय सोचे जाएं। और उन पर काम हो। अगर फिर भी यह समस्या दूर नहीं होती है तो मुझे लगता है कि आम आदमी रोजमर्रा की परेशानियों को झेलने के लिए अगर तैयार है तो बिजली विभाग के एसी में बैठकर काम करने वाले अधिकारियों की तनख्वाह में कटौती की जाए और काम संतोषजनक न मिलने पर कार्रवाई हो। क्योंकि अब ऐसा चलने वाला नहीं लगता कि पैसे भी पूरे लिए जाएं और माल भी ना दिया जाए। विभाग के कुछ लोगों की कारगुजारी के चलते कम उत्पादन का नुकसान भी उपभोक्ता ही भुगते। मुख्यमंत्री जी ऐसा क्यों। प्रदेश का हर आदमी मेहनत कर रहा है तो वो खुशहाली से जीवन जीने के लिए ऐसी महंगाई बढ़ने से दूर हो जाता है। वैसे भी देखे तो यह हड़तालें कुछ कर्मचारियों की लापरवाही का खामियाजा आम आदमी क्यों भुगते। जितना दाम उतना सामान का सिद्धांत लागू करना चाहिए और इसमें आड़े आने वालों को सजा दिलाई जानी चाहिए। लेकिन आम आदमी का उत्पीड़न पर रोक लगाना समय की सबसे बड़ी मांग है और इसे लागू कराना चाहिए। और सरकारी विभागों व अफसरों के यहां होने वाले बिजली खर्च की वसूली हो।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी दें ध्यान! बिजली की महंगाई क्यों, नुकसान की पूर्ति हेतु अधिकारियों की तनख्वाह और खर्च किए जाएं कम, हड़तालों पर लगे रोक;सरकारी विभागों और अफसरों से हो वसूली
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