लखनऊ, 20 मई। पावर कॉरपोरेशन ने सोमवार को नियामक आयोग में बिजली कंपनियों के वास्तविक आय-व्यय के आंकड़े दाखिल किए हैं। 19,600 करोड़ के राजस्व अंतर के आधार पर कॉरपोरेशन ने नई बिजली दरों में 30 फीसदी इजाफे का अनुमान लगाया है। कॉरपोरेशन ने आयोग से वास्तविक आंकड़ों के आधार पर बिजली दरों के संबंध में उचित निर्णय लेने का आग्रह किया है। ऊर्जा क्षेत्र इतिहास में इसे सबसे बड़ी बढ़ोतरी के प्रस्ताव के तौर पर देखा जा रहा है।
बैलेंस शीट, कैश फ्लो की स्थिति रखी
पावर कॉरपोरेशन के मुताबिक, दरें तय करने के लिए अब तक निर्धारित मानकों, प्रतिबंधों के साथ वार्षिक राजस्व आवश्यकता दाखिल की जाती थीं, जिसमें तमाम खर्च छुप जाते थे। लिहाजा दरें तय करने के लिए बिजली कंपनियों की बैलेंस शीट, कैश फ्लो की वास्तविक स्थिति रखी है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में बिजली कंपनियों की बिजली बिलों के सापेक्ष 88% ही वसूली रही, इससे सरकार से सब्सिडी के बाद भी 2023-24 में राजस्व अंतर 4,378 करोड़ के बजाय 13,542 करोड़ हो गया था। वित्तीय वर्ष 2025-26 में भी घाटा 19,600 करोड़ रहने के आसार हैं। कॉरपोरेशन ने कहा है कि बिजली बिलों की 100 फीसदी वसूली अव्यावहारिक है, लिहाजा वास्तविक आंकड़ों का ही इस्तेमाल होना चाहिए। कॉरपोरेशन ने 10 साल में 70,792 करोड़ रुपये का निवेश इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने और उपभोक्ता सेवा सुधार पर खर्च किए पर सफलता नहीं मिली। ट्रांसफॉर्मरों की क्षतिग्रस्तता 10% से ज्यादा है।
100 प्रतिशत वसूली न हो पाना बन रहा कारण
पावर कॉरपोरेशन के जनसंपर्क अधिकारी अखिलेश सिंह ने बताया कि कॉरपोरेशन की तरफ से विद्युत नियामक आयोग में जो तर्क प्रस्तुत किया गया है, उसके मुताबिक वित्तीय वर्ष 2024-25 में विद्युत कंपनियों के बिजली बिलों के सापेक्ष वसूली 88 प्रतिशत ही हो पाई है. इसकी वजह से राज्य सरकार की तरफ से दी गई सब्सिडी के बाद भी यह गैप वर्ष 2023-24 के 4,378 करोड़ रुपए से बढ़कर 13,542 करोड़ हो गया है. इसी तरह इस वित्तीय वर्ष 2025-26 में भी राज्य सरकार से सब्सिडी मिलने के बाद भी यह घाटा बढ़कर 19,600 करोड़ होने की संभावना है.
कॉरपोरेशन के बढ़ते घाटे को कम करने का कोई उपाय नहीं है. इतने बड़े कैश गैप की भरपाई के लिए सुधार की जरूरत है. इसलिए कॉरपोरेशन ने सुधार प्रक्रिया शुरू कर दी है. इससे एक ओर आम उपभोक्ता को बेहतर विद्युत आपूर्ति मिलेगी. टैरिफ वृद्धि से भी बचा जा सकेगा. वास्तव में देश के सार्वजनिक क्षेत्र के डिस्कॉम में कुछ अपवादों को छोड़कर जितनी बिजली का बिल उपभोक्ताओं को दिया जा रहा है, उसके सापेक्ष पूरी वसूली नहीं हो पा रही है. विद्युत दरों को तय करने के लिए 100 प्रतिशत कलेक्शन एफिशियंयी मानना अव्यवहारिक है. वितरण क्षेत्र में सुधार के लिए पावर कॉरपोरेशन ने विगत 10 वर्षों में 70,792 करोड़ रुपए का निवेश इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में और उपभोक्ता सेवा सुधार में खर्च किए हैं. इन प्रयासों के बाद भी निवेश के सापेक्ष सफलता नहीं मिल पाई है.
10 फीसदी से ज्यादा फुंक रहे ट्रांसफार्मर
नियामक आयोग को बताया गया है कि करीब 10 प्रतिशत ट्रांसफार्मर खराब चल रहे हैं. विद्युत बिल वसूली अभियान चलाने के बाद भी 54.24 लाख उपभोक्ताओं ने एक बार भी बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है. इन सभी उपभोक्ताओं पर 36,353 करोड़ रुपए बकाया है. 78.65 लाख लोगों ने पिछले छह महीन से बिजली बिल का भुगतान नहीं किया है. इन पर भी 36,117 करोड़ रुपए बिजली का बिल बकाया है. इससे कॉरपोरेशन का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है.
इतना रहा कॉरपोरेशन का खर्च
वित्तीय वर्ष 2023-24 में उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन और डिस्कॉम्स का कुल खर्च 107,209 करोड़ रहा. इसमें मुख्य रूप से बिजली खरीद में 77,013 करोड़, परिचालन और अनुरक्षण में 7,927 करोड़, ब्याज के भुगतान में 6,286 करोड़ रुपए और मूल ऋण के भुगतान में 15,983 करोड़ रुपए खर्च हुआ है. राजस्व मात्र 67,955 करोड़ रुपए ही प्राप्त हुआ है. इस प्रकार कुल कैश गैप 39,254 करोड़ रुपए रहा. इसे पूरा करने के लिए प्रदेश सरकार ने 19,494 करोड़ रुपए की धनराशि सब्सिडी के तौर पर दी. 13,850 करोड़ रुपए की धनराशि लॉस फंडिंग/अनुदान के रूप में सरकार ने देकर मदद की. इसके बावजूद शेष 5,910 करोड़ रुपए कैश गैप को पावर कॉरपोरेशन और डिस्कॉम्स ने अतिरिक्त ऋण लेकर पूरा किया. इसका ब्याज पावर कॉरपोरेशन और राज्य सरकार को ही देना पड़ रहा है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है, कि वर्ष 2025-26 के वार्षिक राजस्व आवश्यकता प्रस्ताव को नियामक आयोग की तरफ से स्वीकार किए जाने के बाद पावर कॉरपोरेशन ने बदलाव करने के लिए एक सप्ताह का और समय मांगा था. अब सभी बिजली कंपनियों के प्रस्तावित राजस्व गैप लगभग 9200 करोड़ रुपए को कलेक्शन एफिशिएंसी के आधार पर वास्तविक वसूली के आधार पर हजारों करोड़ रुपए अधिक फर्जी राजस्व गैप प्रस्तावित किया है. इसमें प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में 15 से 25 प्रतिशत प्रस्तावित बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव है.
बिजली कंपनियां दे रहीं फर्जी डाटा
उन्होंने बताया कि इस प्रस्ताव के खिलाफ विद्युत नियामक आयोग में परिषद की तरफ से एक लोक महत्व आपत्ति दाखिल करते हुए यह मुद्दा उठाया है, कि प्रदेश की बिजली कंपनियों को कोई भी कानून का ज्ञान नहीं है. कलेक्शन एफिशिएंसी के आधार पर गैप का निर्धारण किया जाना पूरी तरह असंवैधानिक है. मल्टी ईयर टैरिफ रेगुलेशन 2025 के खिलाफ है. कोई भी राजस्व जो असेसमेंट के सापेक्ष निर्धारित किया जाता है, उसकी वसूली और बकाया दोनों को मिलाकर पूरा राजस्व निर्धारण माना जाता है. आज तक टैरिफ का निर्धारण शत-प्रतिशत राजस्व निर्धारण के आधार पर किया जाता है. प्रदेश की बिजली कंपनियों ने फर्जी गैप दिखाकर नए तरीके से वार्षिक राजस्व आवश्यकता का विद्युत नियामक आयोग में प्रस्ताव दाखिल किया गया है. अब आगे उसके खिलाफ व्यापक संघर्ष किया जाएगा.