asd प्रशांत किशोर जी नीतीश को निर्लज्ज बताने से पहले आप अपने अतीत के बारे में भी सोचिए

प्रशांत किशोर जी नीतीश को निर्लज्ज बताने से पहले आप अपने अतीत के बारे में भी सोचिए

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एक समय में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अत्यंत करीबी रहे और उस दौरान सत्ता का सुख भोग चुके पूर्व में राजनीतिक सलाहकार के रूप में चर्चित प्रशांत किशोर द्वारा जब से अपना राजनीतिक दल जनस्वराज बनाया गया है तब से या तो उन्हें सोच के अनुसार समर्थन नहीं मिल पा रहा है अथवा उनकी जो कामना थी वो पूरी नहीं हो पा रही है। आजकल वह संसदीय भाषा भूलकर कुछ भी बोल रहे हैं। बीते रविवार को उन्होंने सीएम नीतीश कुमार को निर्लज्ज करार देते हुए उन पर अनेक आरोप लगाए जो शायद कोई सभ्य व्यक्ति नहीं लगा सकता। प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि 2015 में मुसलमानों के समर्थन से सरकार बनाने वाले नीतीश ने उनकी पीठ में छुरा घोपकर भाजपा में शामिल होने की घोषणा की। अब उनके नेता केंद्रीय मंत्रिमंडल में शािमल है। नीतीश जी सामान्य दृष्टिकोण से देखें तो वाकई में यह दलबदल की राजनीति सही नहीं है। मगर वर्तमान में इसके लिए किसे दोष दें क्योंकि सबमें ऐसा हो रहा है तो अब ज्यादातर इस व्यवस्था को अपना रहे हैं। औरों की बात क्या करें जनस्वराज के गठन से पहले आप भी इधर उधर घूमते रहे हैं। कभी भाजपा को लेकर आपका नाम चलता है तो कभी कांग्रेस से जुड़े होने की बात चलती है। नीतीश के तो आप घनिष्ट रह चुके हैं इसलिए एक फिल्म का गाना पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप ना किया हो के अनुसार पहले अपनी गिरेबान में झांकना चाहिए कि कुछ साल पहले तक आप क्या करते रहे हैं। अब रही आपके दल की बात तो अभी तो आपने गठन किया है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि आप कितने क्षेत्रों में चुनाव लड़ा पाएंगे या चुनाव मैदान में टिक भी पाएंगे या नहीं। इससे भी बड़ी बात यह है कि आप अपने दल की ईकाईयां कुछ प्रदेशों में भी नहीं बना पाए हैं। जहां तक औरों की बात है वो उन पर छोड़ दें और कहावत नाई बता मेरे सिर पर कितने बाल। यजमान कुछ समय में पता चल जाएगा जब नीचे पड़े नजर आएंगे। आप राजनीतिक क्षेत्र के संघर्ष का पहला चरण तो पूरा कीजिए और आपके पास कितना जनाधार है इसका आसानी से पता चल जाएगा। लेकिन एक बात जरूर है कि आप इस क्षेत्र में सिर्फ बड़बोलेपन के अलावा कोई पहचान नहीं बना पाए हैं। इसे ध्यान रखते हुए निर्लज्ज जैसे शब्द का उपयोग किसी भ्ीा नेता के लिए ना करें तो अच्छा हैं वरना इन दलों के नेता मुखर हुए तो आप इस क्षेत्र में कई नामों से चर्चित होते रहेंगे। वैसे भी राजनीति में जो सभ्यता खत्म होती जा रही है उसकी बहुत आवश्यकता है। आप जो अपने बारे में बताते हैं उसके हिसाब से आपसे यह उम्मीद की जा सकती है सबके लिए सभ्य भाषा का उपयोग करेंगे। आप कह रहे हैं कि संशोधित नागरिकता अधिनियम पर मतभेद सामने आने पर आपको निष्कासित कर दिया गया था। मुझे लगता है कि आपकी बढ़ती महत्वकांक्षा के चलते ऐसा हुआ होगा। एक बात आसानी से समझ लें कि मतदाता जागरूक हो चुका है। वो कुछ बोलता तो नहीं है लेकिन मत डालते समय सोचता है कि कौन किसे कितनी गाली गाली देता है और असभ्य बोलता है सोचकर मतदान नहीं करता।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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