कैथोलिक चर्च में बदलाव लाने वाले पहले गैर यूरोपीय पोप फ्रांसिस का गत सोमवार को निधन हो गया। 88 वर्ष के धर्मगुरू के निधन से शोक की लहर व्याप्त हो गई। किडनी में गंभीर संक्रमण के चलते हुए निधन पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि आध्यात्मिक जगतगुरू का निधन अपूर्णीय क्षति है। मेरी संवेदनाएं वैश्विक कैथोलिक समुदाय के साथ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि पोप ने बहुत मनोभाव से गरीबों व पिछड़ों की सेवाएं की है। भारतीयों से वो खास स्नेह रखते थे। शायद यही कारण था कि पिछले चार वर्षो में 30 अक्टूबर 2021 संग पीएम मोदी और पोप की दो बार मुलाकात हुई। इसके अतिरिक्त ईसाई समाज के सबसे बड़े धर्मगुरू पोप फ्रांसिस का पूरा जीवन धर्म के प्रचार प्रसार एवं चर्च की सेवा में समर्पित रहा। वो पूरे विश्व में काफी लोकप्रिय धर्मगुरू थे। उनके स्थान पर जल्द ही कॉर्डिनियल का एक प्रतिनिधिमंडल नए पोप की चयन प्रक्रिया शुरू करेगा। क्योंकि इस तरह से नियुक्त कैथोलिक चर्च के सबसे बड़े पदाधिकारी होते है। कॉर्डियनल ही तय करेंगे कार्निवल कब शुरू होगा। उनके निधन पर नौ दिन शोक रहेगा। नए पोप के चयन प्रक्रिया गोपनीय होती है। एक चिमनी से निकला धुंआ बताता है कि नाम पर बन रही है सहमति। उनके इस चयन में एक खबर के अनुसार 80 वर्ष से कम उम्र के कार्डिनियल ही कर सकते हैं मतदान। ईसाईयों के 136 कॉर्डिनियल मतदान के पात्र हैं। 1992 में यूनएस आयस के सहायक आर्क बिशप बने और सबसे गरीबों को नजर अंदाज करने वाली सरकारों का विरोध किया गया। पोप फ्रांसिस ऐसे धर्मगुरू और नागरिकों के लिए प्रेरणास्त्रोत थे क्योंकि वो विन्रमता को प्राथमिकता देते थे। जानकार कहते हैं कि वो धर्म के प्रति आस्था और उसका ज्ञान तथा उसे आत्मसात कर समाज को अच्छा संदेश देने के चलते ही वो सबसे लोकप्रिय पोप के रूप में जाने जाते हैं। मेरा मानना है कि पोप फ्रांसिस जैसे धर्मगुरूओं का हम सब भारतीय इसलिए सम्मान करते हैं कि उनके द्वारा हमेशा भारत के प्रति सकारात्मक रूख अपनाया गया और गरीबों की उन्नति और सेवा का मार्ग दिखाने के मामले में पोप फ्रांसिस द्वारा किए गए कार्यों को पूरी दुनिया हमेशा याद रखेगी। इसी के साथ हम भी उन्हें नमन करते हुए यह आशा कर सकते हैं कि जो भी नया पोप बनेगा वो भारत के प्रति पोप फ्रांसिस की तरह अच्छे संबंध और सकारात्मक रूप अगर दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो पोप का जीवन आम आदमी और उस युवा जो सुविधाएं ना होने के बाद भी आगे बढ़ने की सोचता है पोप फ्रांसिस का जीवन एक अच्छा संदेश देता है क्योंकि 17 दिसंबर 1936 को अर्जेटीना के व्यूनिस आयरस में पैदा हुए पोप बचपन में गंभीर निमोनिया के चलते फेफड़ें का एक हिस्सा निकाल देने के चलते वो जिंदगीभर संक्रमण का खतरा झेलते रहे। जन्म के बाद उन्हें दीक्षा दी गई और वो 1973 में अर्जेंटीना के प्रांतीय सुपीरियर बने। युवा बर्नारोलियो ने एक नाइट क्लब में एक बाउंसर के रूप में भी काम किया था और अंतिम समय में वो अपने क्षेत्र में शीर्ष पर विराजमान रहे। उनकी यह सफलता आम आदमी के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत बनी रहेगी। हम सभी उनको नमन करते हैं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
हमेशा ही याद किए जाएंगे पोप फ्रांसिस
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