देश में बरसात में बाढ़ और गर्मियों में सूखा तथा पानी की कमी से वो इलाके जहां सूखा पड़ता है और वो जगह जहां बाढ़ आती है तो परेशान होते ही है। जिन नगरों में यह समस्या नहीं है वहां के नागरिक भी पानी के लिए कभी कभी बहुत परेशान हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार इस बारे में सोचती नहीं है। हर साल बरसात में बाढ़ से लोगों को बचाने और सूखे के दौरान किसानों सहित पीड़ितों की मदद करने के लिए अरबो खरबो खर्च करती है। अभी गर्मी गई हैं। सूखे से छुटकारा मिलने की उम्मीद बंधी तो नदियों किनारे बसे नगरों में बाढ़ और शहरों में नालों की सफाई ना होने से जलभराव और गंदगी सड़क पर बहने से कठिनाई शुरू हो गई हैं। देश में कितने ही लोगों के बाढ़ से मरने, क्षेत्रों में पानी घुसने और इससे लोगों के मरने बीमारी फैलने की खबरें रोज ही पढ़ने को मिल रही हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नदी किनारे बसे गावों का पुनर्वास होगा। बाढ़ से कुछ जिलों में काफी स्थिति वहां के नागरिकों की होने की खबर है। मैदानी इलाके के साथ साथ पहाड़ी क्षेत्रों में हालात और भी खराब हैं। नदी प्रबंधन करने वाले विभाग के अफसर फरमा रहे हैं कि 25 और शहरों के लिए योजना तैयार की जा रही है। उत्तराखंड उप्र बिहार झारखंड बंगाल के जिलों में काफी स्थिति खराब है। एक खबर पढ़ने को मिली कि महाराष्ट्र के अमरावती में किसान मर गए। सूखा इसका सबसे बड़ा कारण वहां बनता है। यह सरकार के साथ साथ आम आदमी भी जानता है।
हो सकता है कि जितना बजट हर साल सूखे और बरसात से निपटने में खर्च होता है उससे नदी जोड़ो नहर निकालो अभियान चलाकर एक साल में यह सारा काम ना हो पाए मगर जिस प्रकार से सूखा और बाढ़ से जानमाल की हानि होती है और लोग सड़कों पर आ जाते हैं अगर पांच साल में इस काम पर खर्च होने वाले पैसे को लगाकर जहां सूखा पढ़ता है नहर खोदकर उनमें बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर दी जाए तो मुझे लगता है कि इस समस्या का कुछ ना कुछ समाधान निकलकर आएगा और हर साल जो पैसा इस कार्य में लगता है वो भी बचेगी।
जहां तक मुझे ध्यान आता है पूर्व पीएम स्व. अटल बिहारी बाजपेयी आदि ने अपने कार्यकाल में नदी जोड़ो अभियान चलाने के लिए कुछ प्रयास किए थे लेकिन उनकी सरकार नहीं रही कुछ पर्यावरण विदों द्वारा किए गए विरोध या अन्य कारणों से वह योजना अभी तक सिरे नहीं चढ़ पाई। मैं पर्यावरणविदों का विरोध नहीं करता हूं लेकिन जो परिस्थितियां हैं उन्हंे देखकर कोई नदी जोड़ो अभियान का विरोध करता है तो ऐसे तथाकथित पर्यावरणविदों की चिंता ना करके सरकार को नदी जोड़ो अभियान को गति देनी चाहिए। अगर देश में बहुमत की सरकार नहीं रहती है तो यह चिंता रहती है । मगर इस समय जनहित की सोच में काम करने की ताकत रखने वाले और फैसलों को लागू करने में सक्षम पीएम मोदी इस अभियान को आसानी से लागू कर सकते हैं। इसलिए हर साल सूखा बाढ़ से बचाने के लिए अब काम होना ही चाहिए। जहां तक मुझे लगता है कि नगरों मंे बारिश में जलभराव व गंदगी फैलने से नागरिकों का जीवन नरक के समान हो जाता है उससे भी छुटकारा मिलेगा। क्योंकि नालों का पानी आगे चलकर किसी ना किसी नदी में ही समा जाएगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पीएम साहब! यह वक्त की आवयकता है बाढ़ सूखा और इससे उत्पन्न बीमारियों से आम नागरिकों को बचाने के लिए सरकार चलाए नदी जोड़ो अभियान
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