Date: 16/10/2024, Time:

पीएम साहब दोषी वन अधिकारियों को समय से पूर्व दी जाए सेवानिवृति, निगरानी के बावजूद 73 फीसदी वन्य जीवों की घटी आबादी, हर साल पौधारोपण के बावजूद घटती वनों की संख्या

0

दुनियाभर में पशु पक्षियों का इंसानों को स्वस्थ रखने और गंदगी खत्म कर प्रदूषण रोकने में महत्वपूर्ण स्थान रहा है और रहेगा। बीते 50 सालों में भारी खर्च करने के बावजूद 73 फीसदी वन्य जीवों की आबादी निगरानी के बाद कम हो गई यह विषय अत्यंत गंभीर और सोचनीय है। एक खबर के अनुसार वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 1970 से 2020 तक यानी महज 50 सालों में निगरानी में रखे गए वन्यजीव आबादी में करीब 73 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस नुकसान की वजह वनों की कटाई, मानव शोषण, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है।
गिद्धों की तीन प्रजातियों में गिरावट
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 में भारत में गिद्धों की तीन प्रजातियों में तेज गिरावट का भी पता चला, जिसमें 1992 और 2022 के बीच आबादी में नाटकीय रूप से गिरावट आई। सफेद पूंछ वाले गिद्धों की आबादी में 67 प्रतिशत, भारतीय गिद्धों की संख्या में 48 प्रतिशत और पतली चोंच वाले गिद्धों की संख्या में 89 प्रतिशत की गिरावट आई है। वैश्विक स्तर पर, सबसे अधिक गिरावट मीठे जल वाले पारिस्थितिकी तंत्रों (85 प्रतिशत) में दर्ज की गई है। इसके बाद स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (69 प्रतिशत) और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (56 प्रतिशत) हैं।
बाघों की संख्या में इजाफा
भारत में कुछ वन्यजीव आबादी स्थिर हो गई है और उसमें सुधार हुआ है। इसका मुख्य कारण सक्रिय सरकारी पहल, प्रभावी आवास प्रबंधन, मजबूत वैज्ञानिक निगरानी और सामुदायिक सहभागिता के साथ-साथ सार्वजनिक समर्थन है। दुनिया भर में बाघों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है। अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2022 में कम से कम 3,682 बाघ दर्ज किए गए, जो वर्ष 2018 में अनुमानित 2,967 से अधिक थे। इससे साफ है कि बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है।
भारत में पहले हिम तेंदुआ जनसंख्या आकलन (एसपीएआई) में अनुमान लगाया गया था कि उनके 70 प्रतिशत क्षेत्र में 718 हिम तेंदुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पारिस्थितिकी क्षरण, जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर स्थानीय और क्षेत्रीय टिपिंग बिंदुओं तक पहुंचने की संभावना को बढ़ाता है।
जलवायु परिवर्तन से हालात खराब
उदाहरण के लिए, चेन्नई में तेजी से बढ़ते शहरी विस्तार के कारण इसके आर्द्रभूमि क्षेत्र में 85 प्रतिशत की कमी आई है। इन आर्द्रभूमियों द्वारा प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण सेवाएं, जैसे जल प्रतिधारण, भूजल पुनर्भरण और बाढ़ नियंत्रण में भारी कमी आई है। इससे दक्षिणी शहर के लोग सूखे और बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील हो गए थे। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति और खराब हो गई है।
अगले पांच साल अहम
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के महासचिव और सीईओ रवि सिंह का कहना है कि लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 प्रकृति, जलवायु और मानव कल्याण के परस्पर संबंध पर प्रकाश डालती है। अगले पांच सालों में हम जो जिस भी विकल्प को चुनेंगे और काम करेंगे, वे पृथ्वी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होंगे। जबकि देशों ने प्रकृति के नुकसान (वैश्विक जैव विविधता ढांचे के माध्यम से) को रोकने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस (पेरिस समझौते के तहत) तक सीमित करने के लिए वैश्विक लक्ष्यों पर सहमति व्यक्त की है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं 2030 लक्ष्यों को पूरा करने और खतरनाक टिपिंग बिंदुओं से बचने के लिए आवश्यक हैं।
रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान से निपटने तथा ऊर्जा, खाद्य और वित्त प्रणालियों में बदलाव लाने के लिए अगले पांच सालों में सामूहिक प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया।
इसी प्रकार से केंद्र और प्रदेश सरकारें हरियाली बढ़ाने और पर्यावरण संतुलन के लिए हर साल करोड़ों पेड़ पौधे लगवा रही है लेकिन वो जाते कहां है यह भी देखा जाना चाहिए क्योंकि पिछले दो दशक में जितने पेड़ सरकार ने लगवाए अगर वो सही प्रकार से लग जाते और उनकी देखभाल हो जाती तो शायद आज पौधा लगाने के लिए सड़क और जंगलों में जगह ही नहीं बचती। इसलिए यह भी देखा जाना चाहिए कि आखिर इन पौधों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी क्या कर रहे हैं और वृक्षारोपण अभियान कहां चला जाता है। प्रधानमंत्री द्वारा वन्य जीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी तथा स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्रयास किया जा रहा है। हरियााली बढ़ेगी तो आम आदमी तो सुरक्षित रहेगा ही वनों की संख्या बढ़ने से पशु पक्षी भी सुरक्षित रहेंगे। जो जंगली जानवर सड़कों पर आ जाते हैं उनका आना भी बंद हो जाएगा। इसलिए मेरा सुझाव है कि पशु पक्षियों की संख्या बढ़ाने और मानव जीवन सुरक्षित बनाने के लिए लगाए गए वृक्षों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह तभी संभव है जब अपना काम जिम्मेदारी से कर ना पाने वाले वन विभाग के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हो और कुछ को समय से पूर्व सेवानिवृति दी जाए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

Leave A Reply