asd पीएम साहब दें ध्यान! हिंसक जानवरों से नागरिकों को बचाने के लिए सिर्फ टीका ही काफी नहीं

पीएम साहब दें ध्यान! हिंसक जानवरों से नागरिकों को बचाने के लिए सिर्फ टीका ही काफी नहीं

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हर मिनट छह लोगों को काटते हैं कुत्ते। इससे पीड़ितों की संख्या में कमी लाने और मृत्युदर को शून्य तक पहुंचाने के लिए देश में पुणे स्थित सीरम इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया द्वारा टीका बनाए जाने की चर्चा है। बताते चलें कि बोस्टन स्थित बायोटेक्नोलॉजी फर्म और अमेरिका के मास बायोलॉजिक्स के साथ साझेदारी वाली फर्म द्वारा इस बारे में प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा बनाई विशेषज्ञों की समिति मोनोक्लोनल एंटीबायटिक पर अंतिम मुहर लगाया जाना बाकी है। कुल मिलाकर सरकारी स्तर पर जो यह प्रयास हिंसक जानवरों से आम आदमी को बचाने का किया जा रहा है। इसके लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए।
प्रधानमंत्री जी जिस हिसाब से शहरों की गलियों में तेंदुए घूम रहे हैं। बंदरों की संख्या बढ़ती जा रही है। और इनमें से कुछ कुत्ते बंदरों द्वारा नागरिकों पर जो हमले किए जा रहे हैं उस हिसाब से यह प्रयास अभी पूर्ण नहीं कह सकते क्येांकि सरकार द्वारा जो टीके उपलब्ध कराए जाते हैं अस्पतालों में वो पीड़ितों को आसानी से उपलब्ध नहीं होते जिस कारण या तो वो पागल हो जाते हैं या मर जाते हैं जो कुछ आर्थिक जुगाड़ कर बाजार से टीके खरीदकर लगवाने में सक्षम है। वो इन समस्याओं से तो बच जाते हैं लेकिन डर तो उनके भी दिमाग में बना रहता है। जनहित में कुछ ऐसी व्यवस्था सरकार लागू करे कि शहरों में इन हिंसक जानवरों का आना बंद हो और दवाई बनाई जा रही है वो अस्पतालों व मेडिकल स्टोर संचालकों को फ्री दी जाए जिससे कोई भी व्यक्ति इंजेक्शन लेकर लगवा सके क्योंकि अस्पतालों में जो घपला नागरिकों के अनुसार होता है उससे नया टीका पीड़ितों को उपलब्ध होगा या नहीं यह पक्का नहीं कह सकते। मेरी निगाह में जिस प्रकार एडस जैसी बीमारी को रोकने के लिए कुछ संस्थाओं के माध्यम से कंडोम बांटे जाते हैं उसी प्रकार सामाजिक संगठनों के पास यह रैबीज के टीके रखवाए जाएं जिससे समय पड़ने पर आम आदमी को आसानी से उपलब्ध हो सके। बाकी तो समस्या का समाधान इन हिंसक जानवरों को टीके लगवाने जंगलों में छुड़वाने से ही हो सकता है जिससे अधिकारियों पर भी नकेल कसनी पड़ेगी क्योंकि अभी तक सुविधाओं का उपयोग तो कर लेते हैं लेकिन कार्रवाई एक दूसरे पर टाल देते हैं यही जानवरों के हिंसक होने का असली कारण भी है। पिछले दिनों एक खबर पढ़ी कि एक शेर को बचाने के लिए एसी वाहन से ले जाया गया। जब इन जानवरों को बचाने के लिए इतना खर्च कर सकते हैं तो मानव जीवन को बचाने के लिए सरकार को युद्धस्तर पर कार्रवाई करनी चाहिए। इस बारे में छपी एक खबर के अनुसार जानलेवा रेबीज संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए जल्द ही निशुल्क एंटीबॉडी टीका मिल सकेगा। केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है जो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध कराने पर विचार कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, साल 2016 में पहली बार भारत सरकार ने मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को लाइसेंस दिया। तब से यह खुद के खर्च पर बाजार या निजी अस्पताल में उपलब्ध कराई जाती है। महंगी होने के कारण इसे हर कोई नहीं लगवाता, लेकिन अब इसे विस्तार देते हुए निशुल्क सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध कराने की योजना है। समिति के सूत्रों का कहना है कि डाटा की समीक्षा पूरी हो गई है और लगभग सभी बातों पर सहमति बन गई है। इसका सरकारी अस्पतालों में पहुंचना लगभग तय है, बस अंतिम मुहर बाकी है।
बताते चलें कि हर मिनट छह लोगों को काटते हैं कुत्ते। समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि भारत में रेबीज बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बना हुआ है। हर साल लाखों लोग इस संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं, जिसमें 90 फीसदी से अधिक कुत्तों के काटने की वजह से संक्रमित होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में हर मिनट लगभग छह लोगों को कुत्ता काटता है।
साल 2023 में कुत्तों के काटने से रेबीज संक्रमण की 30,43,339 घटनाएं हुई हैं, जिनमें से 286 लोगों की मौत हुई। साथ ही इस पूरी अवधि में रेबीज टीके की कुल 46,54,398 खुराक दी गईं। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से पता चलता है कि इस बीमारी से होने वाली वैश्विक मौतों में से 36 प्रतिशत मौतें भारत में हो रही हैं।
सीरम इंस्टीट्यूट कर रहा उत्पादन
राज्यों को लिखे पत्र में देश के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने कहा कि रेबीज के खिलाफ भारत में लाइसेंस प्राप्त मोनोक्लोनल एंटीबॉडी रबीसील्ड ब्रांड नाम से बेचा जा रहा है, जिसका उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कर रहा है। इसके लिए बोस्टन स्थित बायोटेक्नोलॉजी फर्म और अमेरिका के मास बायोलॉजिक्स के साथ साझेदारी है। इन संबंधित कंपनियों से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के प्रभावों को लेकर डाटा मांगा गया।
रेबीज मृत्यु दर को शून्य तक लाने में मिलेगी मदद
राष्ट्रीय रेबीज नियंत्रण कार्यक्रम (एनआरसीपी) के तहत रेबीज मानव मोनोक्लोनल एंटीबॉडी या एमआरएबी के नाम से यह टीका उपलब्ध कराया जा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि इन एंटीबॉडी शॉट्स से भारत को 2030 तक रेबीज मृत्यु दर को शून्य तक लाने में मदद मिल सकती है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि प्रधानमंत्री इस समस्या का ऐसा समाधान जरूर निकवाएंगे जिससे हिंसक जानवरों द्वारा दी जाने वाली पीड़ा से आम आदमी बचा रहे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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