Date: 23/12/2024, Time:

प्राण प्रतिष्ठा रोकने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर हुई जनहित याचिका, आयोजक इसमें समाहित बिंदुओं पर दें ध्यान

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22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देशभर में राममय माहौल बना हुआ है। जितना पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है हर कोई इस आयोजन में अपनी सहभागिता किसी ना किसी रूप में तय करने के लिए प्रयासरत है। हो भी क्यों ना एक फिल्मी गाने कण कण में बसे हैं राम मेरे मन में बसे हैं राम के समान ज्यादातर संख्या में नागरिकों के मन में भगवान राम का वास है। कहना सपा नेता मोहम्मद अब्बास का कि हम राम के वंशज है। कांग्रेस नेता इमरान का कथन कि सबके हैं राम और सब जगह हैं। बागपत के एक परिवार की कई पीढ़ियों से हर सदस्य के नाम में राम जुड़ा होना यह दर्शाता है कि इस नाम में कितनी श्रद्धा और प्यार बसा है।
कोई इसे लोकसभा चुनाव जीतने का माध्यम बता रहा है तो कोई इस आयोजन को आयोजकों द्वारा इवेंट बनाए जाने की बात कर रहा है। उसके बावजूद भगवान राम के प्रति आस्था का यह आलम है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव सहपरिवार अयोध्या में जाकर भगवान राम के दर्शन करने की बात कर रहे हैं तो शरद पवार भी अयोध्या जाने की बात कह चुके हैं तो कांग्रेस के कई बड़े नेता दर्शन करके आ चुके हैं। कुछ 22 के बाद जाने की तैयारी कर रहे हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल द्वारा बीते मंगलवार को सपत्नी आयोजित सुंदरकांड में भाग लिया गया और रोहिणी के हनुमान मंदिर में पूजा की गई।
उसके बावजूद कुछ प्रमुख नागरिकों द्वारा इस समारोह को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं और अदालत का द्वार खटखटाया जा रहा है इसके पीछे क्या कारण है इस बात पर भी समारोह की आयोजन कमेटी और अन्य लोगों को ध्यान देना चाहिए। क्योंकि भगवान राम को मानने की बात करने वाले आयोजन का विरोध क्यों कर रहे हैं इसका समाधान और राय जरूर आनी चाहिए जिससे कोई गफलत उत्पन्न ना हो। क्योंकि बहुजन अघाड़ी पार्टी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने स्पष्ट किया है कि वो प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे क्योंकि यह राजनीतिक अभियान है। दूसरी ओर अयोध्या जाने और भगवान राम के दर्शन करने की बात कहते हुए भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि राम के नाम पर भाजपा ने कब्जा कर रखा है। दूसरी तरफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष अधिवक्ता नरोत्तम शुक्ल की ओर से याचिका दाखिल कर प्रदेश के सभी मंदिरों में 22 को भजन व कीर्तन वाले शासनादेश को चुनौती दी गई है। तो दूसरी ओर एक खबर के अनुसार गाजियाबाद के भोलादास की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट मंे जनहित याचिका दाखिल कर प्राण प्रतिष्ठा रोकने का आग्रह किया है। इन्होंने पीएम मोदी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा को सनातन धर्म की प्रक्रिया के खिलाफ बताया है।
सही गलत क्या है यह तो न्यायालय को ही तय करना है। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। अगर वो संविधान के तहत हो तो। जहां तक लगता है प्राण प्रतिष्ठा जनमानस की भावनाओं का प्रतीक बन गया है। इसलिए आसानी से इसका रूकपाना तो संभव नहीं है लेकिन अगर अदालत इस बारे में कोई निर्णय लेती है तो यह समय की बताएगा। अगर इन याचिकाओं को स्वीकार कर आगे की तारीख दी जाती है तो कहीं कोई समस्या है ही नहीं। लेकिन मन की बात यही है कि 22 तारीख की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पूरे जोश से हो। उससे पूर्व जिन बिंदुओं को लेकर विरोध हो रहा है उन पर अपना स्पष्टीकरण आयोजकों को भी देना चाहिए।

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