कभी कभी यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है कि कई विभागों के अफसर सरकारी सुविधाओं और बजट का इस्तेमाल करने और दी गई जिम्मेदारी को पूरा ना करने का शायद मन बनाएं बैठे हैं। इस बारे में मैं किसी एक विभाग को तो नहीं कहता लेकिन नगर निगम या वन विभाग या कोई और इसमें शामिल है तो उसके अधिकारी तो शायद कागजों पर कुछ भी करते रहे ऐसा ही मन बनाए बैठे है। एक बार यह सोचने को मजबूर करें कि इनको पता चले कि वहां क्या हो रहा है। खूंखार जानवरों और कुत्तों की तो इन्हें खबर है। क्योंकि नागरिक खुद ही इन्हें सूचना देते हैं। बताते चलें कि पिटबुल सहित कई नस्ल के कुत्तों पर पूर्ण प्रतिबंध है। बाकी का भी टीकाकरण लाइसेंस लेना और पंजीकरण कराना अनिवार्य बताया जाता है। लेकिन कार्रवाई करने की बजाय विभागों के अफसर सिर्फ लीपापोती और पेंशबंदी करने के अलावा कोई काम नहीं कर रहे लगते हैं। आज एक खबर पढ़ने को मिली कि खूंखार प्रतिबंध कुत्ता पिटबुल सुपरटेक में मौजूद लेकिन पकड़ेगा कौन। दूसरी खबर से पता चला कि बुलन्दशहर में आवारा कुत्तों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया । जिससे पता चलता है कि यह कब क्या कर बैठे कोई नहीं कह सकता लेकिन शहर की प्रमुख कॉलोनियों में सुबह को लोग पिटबुल कुत्ते घुमाते और पार्कों पर गंदगी कराते देखे जा सकते हैं। यह स्थिति किसी एक कॉलोनी की नही है। पिछले दिनों सोमदत्त कॉलोनी, डिफेंस कॉलोनी और अब सुपरटेक ग्रीन विलेज तथा शीलकंुज जैसी तमाम कॉलोनियों में पिटबुल और अन्य प्रतिबंधित कुत्ते लोगों ने पाल रखे है। ना उनके टीके लगवाए ना पंजीकरण कराकर लाइसेंस बनाया। लोग इन्हें लेकर खूलेआम घूम रहे है। यह सब बातें इन्हें पकड़ने में समर्थ अफसरों को पता है। लेकिन यह असरदार कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि मैं कहता हूं कि आवारा कुत्तों को पकड़ने में आसानी हो सकती है लेकिन घरो में पिटबुल कुत्तों को पकड़ने में कोई कठिनाई नहीं है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी जी आपकी सारी बात ठीक है लेकिन क्या घरों पर जाकर इन्हें पालने वालों से पूछताछ करने और नियम अनुसार कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही। आखिर आपके निर्देश इन्हें जब्त करने पर कब होगी कार्रवाई।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
खुले घूमते हैं शीलकुंज, सुपरटेक, सोमदत्त आदि में खूंखार जानवरों से जनता परेशान, प्रतिबंधित पिटबुल और अन्य कुत्तों को पकड़ने की कार्रवाई कौन करेगा
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