कागज पर सरकारी आदेश नौकरशाहों के लिए अपने हित को ध्यान में रखते हुए अटल होते हैं। और अगर कहीं उससे कोई नुकसान उन्हें होने वाला हो तो ज्यादातर मामलों में वो रददी की टोकरी रूपी बेकार फाइलों में दबा दिए जाते हैं। लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि शासन से प्रशासन तक विभिन्न अवसरों पर जो आदेश होते हैं उनका बकायदा प्रचार तो किया जाता है लेकिन लागू करने के नाम पर फाइलों में हो जाते हैं बंद और जब कोई बड़ा बवाल होता है तो अपनी जान बचाने के लिए उन कागजों को सामने रख दिया जाता है कि हमनें तो सभी आदेश किए थे। और नीचे से उपर तक एक ही शब्द हर कोई दोहराता है कि आदेश आया था क्रियान्वयन के लिए सहयोगियों को भेज दिया था। मगर सवाल यह उठता है कि बिना उनका क्रियान्वयन कराए इन कागजी आदेशों का फायदा क्या। लेकिन यह कितने मजबूत होते हैं और इनके आधार पर आम आदमी का कितना उत्पीड़न हो सकता है इसका खुलासा सतीश कौशिक और पंकज त्रिपाठी की फिल्म कागज वन में हुआ। फिल्म में त्रिपाठी के चचेरे भाई उसे मरा दिखाकर उसकी जमीन जायदाद हड़प लेते हैं और लेखपाल ने सुविधा शुल्क लेकर कागज पर जो लिख दिया उसे कोई काटने को तैयार नहीं होता तब अपने आपको जिंदा साबित करने के लिए पंकज त्रिपाठी द्वारा सतीश कौशिक के सहयोग से एक बड़ा आंदोलन चलाया जाता है और फिर जब जिंदा मृतकों की संख्या बढ़ जाती है तो प्रदेश के सीएम स्थिति को संभालने के लिए ऐसे सभी आदेश निरस्त कर देते हैं जो लोग जिंदा है और मृतक दिखा दिए गए हैं प्रदेश स्तर पर हंगामा होने पर मुख्यमंत्री उन्हें जिंदा होने का प्रमाण पत्र देते है। देश में ऐसे कई बाबुओं के आदेश से कितने लोग प्रताड़ित रहते हैं उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है क्योंकि ना तो कोई आवाज उठा पाता है और ना उसमें परिवार को बर्बाद होते देखने का दम होता है।
कागजों पर आदेश की कारगुजारी कागज 2 में देखने को मिली जिसमें सतीश कौशिक के साथ अनुपम खेर भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म में सतीश कौशिक रस्तौगी की लड़की आईएएस बनकर टॉप करती है। गांव की लड़की को इतनी बड़ी सफलता चारो ओर सुनाई देती है। कभी बेटी तख्त से गिर जाती है और उसे अस्पताल ले जाना है मगर नेताजी का जुलूस निकल रहा है जिस कारण वह समय से अस्पताल नहीं पहुंच पाती और इलाज ना मिलने से मर जाती है। क्योंकि बड़े नेता का मामला था तो वकील केस नहीं लड़ते। फिर अनुपम खेर उनका केस लड़ते हैं तो उन्हंे धमकाने की कोशिश की जाती है मगर जब बेटी चली गई तो डर काहे का । दोनों मुकदमा लड़ते हैं और कागजों की असफलता खुलकर सामने आती है जिसमें दोषियों के सारे हथकंडे अपनाने के बाद भी वो दोनों हार नहीं मानते परिणामस्वरूप अदालत द्वारा नेताजी से एक करोड़़ और सरकार से दो करोड़ मुआवजा सतीश कौशिक को दिलाया जाता है और जिले के डीएम एसएसपी क्षेत्र के इंस्पेक्टर सहित प्रदेश के मुख्य सचिव तक के विरूद्ध कुछ ना कुछ कार्रवाई अदालत द्वारा की जाती है और कहा जाता है कि आदेश फाइल में दबाने के लिए नहीं होते लागू होने के लिए होते है। अगर उन पर अमल हेाता तो लड़की जिंदा होती।
ऐसा ही आजकल हमारे समाज में हो रहा है। आए दिन राजनीतिक दल और धार्मिक संगठन रैलियां और जुलूस निकालते हैं और इनमें तेज आवाज में म्यूजिक बजाया जाता है जिससे कितने ही लोग प्रभावित होते हैं लेकिन इन्हें जो अनुमति मिलती है ना तो उसका पालन आयोजक कराते हैं और ना पुलिस कराना चाहती है। जिस कारण देश के करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। मगर ना सरकार ध्यान दे रही है और ना शासन प्रशासन कि उनके आदेश निचले स्तर पर अधिकारी लागू कर भी रहे हैं या नहीं। दोस्तों हमें हर नियम का पालन और शासन की नीतियों का सम्मान करते हुए आए दिन जो जान का बवाल बन रहे रहे जुलूस और इनमें बजने वाले तेज म्यूजिक से जो नुकसान हो रहा है उसमें सुधार और मुआवजा पाने हेतु प्रधानमंत्री से लेकर जिले के डीएम और एसएसपी तक को सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर अपनी परेशानियों से अवगत कराना चाहिए क्योंकि जब तक हम खामोश बने रहेंगे कि सब चलता है तो एक बात समझ लो कि हम तो बहुत कुछ समझ सकते हैं लेकिन परिवार की मजबूरियों के चलते करते नहीं है लेकिन सोशल मीडिया का उपयोग कर अधिकारियों द्वारा आदेशों का पालन ना कराने की सूचना मेल वॉटसऐप फेसबुक के माध्यम से भेजकर न्याय पाने का सरल मार्ग अपना सकते हैं क्योंकि आदेशों के उल्लंघन की खबरें उच्च स्तर तक पहुंचेगी तो सरकार और शासन भी ध्यान देगा वरना अदालत स्वयं संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है। इसलिए कागजी आदेश कागज पर ना बनकर रह जाए इसके लिए हमें भी सरकार के साथ अपने हित में प्रयास करने होंगे।
क्योंकि अब तो सरकार के ज्यादातर आदेश निचले स्तर पर अधिकारी दबाकर बैठ जाते हैं उससे जो न्याय आम आदमी को मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है। मुख्यमंत्री पोर्टल जो शुरू हुए हैं उसमें भी अधिकारी फर्जीवाड़ा करने लगे हैं। इसलिए हम संगठन बनाकर भी इसके खिलाफ अदालत जा सकते हैं वहां से न्याय मिलना पक्का है।
(संपादकः रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कागजी आदेश फाइलों मेें ना दबकर रह जाएं आओ अपने हित में आवाज उठाएं
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