बीती 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई आतंकी घटना जिसमें 26 भारतीय अपनों से बिछड़ गए के बाद से चल रही गतिविधियों में भले ही भारत ने अभी पूरी तौर पर कोई बड़ी कार्रवाई आतंकवाद को संरक्षण देने वाले देश के खिलाफ शुरू ना की हो मगर पड़ोसी देश की ओर से मिल रही गीदड़भभकियों के चलते अब लगता है कि अपने देशवासियों का विश्वास सुरक्षा के प्रति बनाए रखने एवं व्यवस्था बनी रहे इसके लिए भारत को जल्द ही कोई सख्त कदम उठाना ही पड़ेगा। क्योंकि मजहबी प्रेरणा वाले आतंकवाद से प्यार और सोच समझ से नहीं निपटा जा सकता।
विश्व की प्रमुख रेटिंग एजेंसी मूडीज के एक आंकलन से पता चलता है कि भारत से तनावपूर्ण संबंध पाकिस्तान को बहुत महंगे पड़ रहे हैं और भविष्य में भी पड़ेंगे। क्योंकि इस एजेंसी का मानना है कि अगर तनाव लंबा छिना तो पाकिस्तान की जीडीपी नकारात्मक भी हो सकती है। अगर किसी वजह से युद्ध की नौबत आई तो पड़ोसी देश के लिए उसे झेलना कठिन होगा। क्योंकि वो पहले से ही खस्ताहाल है। लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि संस्थाओं के साथ अनेक देशों से भी उधार मांगकर अपना काम चला रहा है। ऐसी स्थिति में दुनियाभर के देशों की निगाह में भारत से पाकिस्तान को पंगा काफी महंगा पड़ सकता है। लेकिन सबकुछ जानते हुए भी वो अपना रवैया सुधारने को तैयार नहीं है। हम और हमारा देश तथा यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जो पूरी दुनिया के सभी देशों से अच्छे संबंध बनाकर रखना चाहते हैं जैसा चल रहा है उसे देखकर यही लगता है कि वो पाकिस्तान नागरिकों के समक्ष युद्ध में आने वाली परेशानियों में उन्हें ना डालकर वहां के शासकों को यह समझा रहा है कि संभल जाओ। पानी रोकने की बात हुई तो हालात बिगड़ने लगे। व्यापार बंद कर दिया तो क्या स्थिति होगी यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। उस परिस्थिति में जब आतंकवाद से निपटने हेतु शुरू जंग में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से स्पष्ट कहा कि हम भारत के साथ हैं और पीएम मोदी को पूरा साथ उनके द्वारा दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनिया गुटरंेस ने भारत पाक से संयम बरतने की अपील के साथ ही पहलगाम के गुनाहगारों को न्याय के कठघरे में लाने की वकालत की है। ज्यादातर देश भारत के साथ नजर आते हैं। सबसे बड़ी बात लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी से मुलाकात कर इस बिंदु पर चर्चा की तथा कांग्रेस पूर्व में ही इस मामले में सरकार के साथ खड़े होने की बात दोहरा चुकी है। अन्य विपक्षी नेता सपा प्रमुख अखिलेश यादव आदि भी केंद्र सरकार के साथ नजर आ रहे हैं। जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला भी केंद्र की कार्रवाई के विरोध में नहीं लगते हैं। उनका कहना है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि पहलगाम हमला जम्मू कश्मीर में शासन और विकास को पटरी से ना उतारे।
खबरों से यह भी पता चलता है कि भले ही पाक से कितनी धमकी आ रही हो लेकिन सर्जिकल स्टाइक के डर से आतंकी पीओके छोड़कर भाग रहे हैं। कुछ में सेना ने आतंकी ठिकानों का भांडा फोड़ किया है। इसके बावजूद जम्मू कश्मीर में जेलों पर आतंकी हमले का खतरा भी महसूस किया जा रहा है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अब यह जरूरी है कि सरकार नागरिकों में हर प्रकार का विश्वास वर्तमान परिस्थितियों को लेकर तय करने हेतु सख्त कदम भी उठाए। कयोंकि यह अच्छी बात है कि पड़ोसी देश के नागरिक परेशान ना हो लेकिन उससे भी जरूरी है कि हमारे यहां सबकुछ सामान्य बना रहे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा द्वारा देश में सात मई को मॉक ड्रिल की व्यवस्था की जा रही है। बताते चलें कि युद्ध या हवाई हमले की स्थिति में क्या होता है 1971 की जंग के बाद गृह मंत्रालय में सुरक्षा के मामलों को लेकर यह फैसला लिया है। जिसके तहत नागरिक सुरक्षा संगठन द्वारा बैठक बुलाई गई। और इसमें मेरठ सिविल डिफेंस के चीफ वार्डन संदीप गोयल ने सभी व्यवस्थाओं के साथ ही इसमें भाग लेने का निर्णय लिया। अब 1962 में जंग वाले सायरन का उपयोग किया गया था। उसके बाद 1965 और 71 की जंग में सायरन बजा था मेरठ में। यह नागरिकों को सतर्क और बचाव की परिस्थितियां अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यूपी के पूर्व डीजीपी व वर्तमान में प्रेस काउंसिल के सदस्य और राज्यसभा सदस्य ब्रजलाल का कहना है कि मॉक ड्रिल में सबसे महत्वपूर्ण ब्लैक आउट करना होता है ताकि दुश्मन हवाई हमले के दौरान निशाना नहीं लगा सके। नागरिकों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने आग बुझाने के लिए वालिंटियर भी तैयार किए जाएंगे। यह अच्छी बात है कि देश में नागरिक सुरक्षा संगठन रेडक्रास सोसायटी आदि ऐसे समय में हमेशा अंदरूनी सुरक्षा के लिए सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने के लिए तैयार नजर आते हैं।
जहां तक मुझे लगता है कि अगर युद्ध की स्थिति बनी तो यह बात विश्वास से कही जा सकती है कि पूरा देश पीएम मोदी और केंद्र सरकार के साथ ही जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए तैयार खड़ा होगा। लेकिन अगर उपरवाला आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे पड़ोसी देश की सरकार को सदबुद्धि दे तो अच्छा है। यह सभी जानते हैं कि भारत मजबूत देशों में शामिल है। जबकि पड़ोसी देश कहीं नहीं टिक पा रहा है। इसलिए उसे कहीं से मदद मिलने की उम्मीद भी नहीं है। इसे ध्यान रखते हुए अगर वो भारत के पीएम से बात कर स्थिति को संभाले तो ठीक है क्योंकि अपने देश में आर्थिक सहयोग करने में भी नागरिक पीछे नहीं रहेंगे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
पहलगाम की घटना ? मॉक ड्रिल के निर्देश, लगता है अंतिम निर्णय लेने का समय आ गया है
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