देशभर में जागरूक नागरिकों की निगाह लोकसभा के होने वाले चुनाव और उसकी तारीखों की घोषणा पर लगी हुई है। जिस तरह से दूसरे दलों के नेता अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में आ रहे हैं और सत्ताधारी पार्टी हर बिंदु का लाभ लेने हेतु योजनाबद्ध तरीके से मीडिया पर अपना प्रचार प्रसार कर रहा है। उससे वो तो सबसे मजबूत नजर आ ही रहा है लेकिन क्षेत्रीय दलों के साथ साथ कांग्रेस भी खुद जीतने और सरकार बनाने का दावा कर रही है। राजनीति में कब क्या हो जाए यह तो कोई नहीं बता सकता क्योंकि चुनावी समीकरण रातो रात बदलते देर नहीं लगती। कुछ लोगों विपक्षी तुलना ग्रामीण कहावत छाज बोला तो बोला छलनी भी बोली जिसमें 56 छेद से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। इंडिया गठबंधन टूटे या जुड़ जाए जिन नेताओं का अपना प्रभाव है वो चुनाव जीतने और अपने उम्मीदवारों को लोकसभा और विधानसभा भेजते रहे हैं इस बार भी लोकसभा में उनके उम्मीदवार जीतने भी हैं और संसद में अपनी पार्टी का प्रतिनिधित्व भी करेंगे। सवाल यह उठता है कि वो सरकार बनाने से तो दूर रहेंगे ही सब मिलकर भी शायद जो वर्तमान परिस्थितियां चल रही हैं उनमें सुधार नहीं हुआ तो इतनी सीटें विपक्ष ना जीत पाए कि मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित हो जाए। कल क्या होगा यह तो भगवान ही जानता है। क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती स्पष्ट कह रही हैं कि लोग अफवाह उड़ा रही हैं वो अकेले चुनाव लड़ेंगी यह अटल है। अब खबर है कि यूपी में सपा ओैर कांग्रेस में गठबंधन नहीं होगा। दोनों अलग अलग चुनाव लड़ेंगे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस को जो दो सीटें दिल्ली में आप देने जा रही थी वो स्थिति बनेगी या नहीं यह समय ही बताएगा। जहां तक बंगाल में ममता बनर्जी एवं दिल्ली पंजाब में आप पार्टी के केजरीवाल की बात है तो उनका जितना जनाधार है वो अपने उम्मीदवार जिताने में सक्षम है लेकिन विपक्ष के लिए मुसीबत यूपी में साबित होगी क्योंकि बसपा कांग्रेस और सपा अपने अपने उम्मीदवार उतारेंगे और जिस प्रकार से कांग्रेस के लोग टूटकर जा रहे हैं उसका आंकलन हर कोई कर सकता है मगर सपा को भी परेशानी कम नहीं होगी क्योंकि उसके बड़े नेताओं में शुमार स्वामी प्रसाद मौर्या ने पार्टी छोड़ ही दी। जो ऐसे में यह संभावना है वो यही लगती है कि प्रधानमंत्री पद का जो रास्ता यूपी से होकर चलता है उस पर विपक्ष के लिए इन परिस्थि्ितयों में कांटे बिछे नजर आएंगे। इन्हें सदबुद्धि नहीं आएगी। पीएम मोदी यूपी के बनारस से तो बहुमत से जितेंगी ही विपक्षी टूट के चलते अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को संसद तक पहुंचाने में आसानी से सफल हो सकते हैं।
विपक्ष को ले डूबेगी फूट, भाजपा के लिए साबित होगी वरदान
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