तिरूवनंतपुरम में कांग्रेस विधायक ओमान चांडी के पुत्र का कहना है कि पलक्कड़ में हो रहे उपचुनावों में उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई क्योंकि कांग्रेस में लोगों को दरकिनार किया जा रहा है। दूसरी तरफ गठबंधन के प्रमुख नेता बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव का कहना है कि कांग्रेस की आपत्ति से कोई फर्क नहीं पड़ता। ममता को है समर्थन। बताते चलें कि इंडिया गठबंधन के नेता अखिलेश यादव उद्धव ठाकरे शरद पवार पहले से ही ममता बनर्जी के प्रति अपना नरम रूख दर्शाते चले आ रहे हैं तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का कहना है कि गठबंधन मैंने बनाया है। और मैं इसका नेतृत्व करने के लिए तैयार हूं। जिससे यह साफ नजर आ रहा है कि गठबंधन के नेता कांग्रेस को यह संदेश दे रहे हैं कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को अपने कदम पीछे खींच लेने चाहिए लेकिन कांग्र्रेस ने इस मामले को शांत करने की कोशिश में कहा है कि मलिल्लकार्जुन खड़गे सर्वेसर्वा है। फिलहाल विपक्षी दलों के गठबंधन में जो तनातनी चल रही है वो इसे कमजोर करेगी यह बात विपक्ष के नेता शायद समझने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन जहां तक नजर जाती है और राजनीतिक परिस्थितियों पर निगाह पड़ती है तो यह स्पष्ट नजर आता है कि विपक्षी गठबंधन की स्थिति अगर यही रही तो जिन प्रदेशों में चुनाव होने वाले हैं उनमें से भले ही एक दो प्रदेशों में गठबंधन के नेता कांग्रेस के बिना सफलता प्राप्त कर लें लेकिन सभी में ऐसा हो पाना संभव नहीं नजर आता है। कुछ लोगों में होने वाली इस चर्चा से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि विपक्षी दलों के कुछ नेता अपने स्वार्थ में गठबंधन को कमजोर करने की कोशिश कर सकते हैं।
जो भी हो कौन गठबंधन में रहे कौन जाए कौन इसका नेता बनेगा यह बाद की बात है लेकिन फिलहाल कांग्रेस के साथ जुटे सभी दलों के नेताओं को यह समझ लेना चाहिए कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और लोकसभा चुनाव में निभाई भूमिका का ही परिणाम है कि आज लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद मिल गया और दूसरी तरफ आजादी के बाद शायद पहली बार राज्यसभा में सभापति के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर 70 सांसद हस्ताक्षर करने के लिए मौजूद रहे। कांग्रेस को हटाकर या कमजोर करके अन्य दल अपने दम पर इतने सांसद शायद मुश्किल ही जिताकर ला पाए। वैसे भी वर्तमान में सबसे ज्यादा सांसद कांग्रेस के बताए जाते हैं और पूरे देश में कांग्रेस ही एक ऐसा दल है तो भाजपा के बाद सबसे बड़ा दल और उसके समर्थक पूरे देश में मौजूद बताए जाते हैं। यह सब बातें यह दर्शाती है कि अगर विपक्ष चाहता है कि सत्ताधारी दल निरंकुश होकर निर्णय ना ले पाएं तो उन्हें यह गठबंधन का नेतृत्व परिवर्तन और कांग्रेस व राहुल गांधी को कमजोर करने के अभियान को छोड़ना होगा। कांग्रेस की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी द्वारा छोड़ी गई वायनाड सीट पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। जो यह दर्शाता है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में जिस तेजी से बढ़ रही थी वही रफतार बनाए हुए हैं।
जहां तक चुनावों में हार जीत की बात है तो इससे किसी की कमजोरी का अहसास नहीं होता है क्योंकि राजनीति में कुछ मुददों को लेकर वोटों का कम ज्यादा हो जाना बहुत बड़ी बात नहीं है। इसके अलावा कांग्रेस ही विपक्ष में ऐसा दल है जिसकी हिमाचल प्रदेश, झारखंड और कर्नाटक में सरकार है और अन्य प्रदेशों में भी उसके विधायक मौजूद हैं। बाकी दलों की ऐसी स्थिति कहीं नजर नहीं आती है चाहे वह टीएमसी हो या एनसीपी सब अपने प्रदेशों से आगे कम ही निकल पाते हैं। यह सभी बिंदु इस ओर इशारा करते हैं कि इंडिया गठबंधन के नेताओं ने एक जुट होकर जिस प्रकार से लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन किया था वो ही स्थिति बनाए रखने में फायदा है। जहां तक बात राहुल गांधी की है तो यह सबको समझना चाहिए कि राहुल गांधी जनमानस के नेता है और मौजूदा स्थिति को देखकर यह कह सकते हैं कि देर सवेर राहुल प्रियंका का नेतृत्व विपक्ष की स्थिति मजबूत करने में सफल हो सकता है।
शायद पुराने नेता भूले नहीं होंगे कि इमरजेंसी के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का पत्ता पूरी तौर पर साफ हो गया था लेकिन उसके बाद जब दोबारा से चुनाव हुए तो कांग्रेस ने केंद्र में सरकार बनाई थी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बनी थी और लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार बनती रही। इसलिए कभी राजनीति में स्थायी रूप से कमजोर कोई नहीं होता। यह बात समझकर विपक्षी दलों के नेताओं को खासकर लालू प्रसाद, अखिलेश यादव, शरद पवार को सोचनी चाहिए क्योंकि उनके प्रभाव वाले प्रदेशों में कांग्रेस का जनाधार है। मेरा मानना है कि आप के नेता अपने दम पर दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने में सफल हो मगर उन्हें भी गठबंधन में शामिल होकर विपक्ष को मजबूत करने का काम करना चाहिए इससे अन्य प्रदेशों में आप को भी पैर पसारने का मौका मिलने में आसानी होगी।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कांग्रेस और राहुल गांधी को नजर अंदाज कर विपक्षी दलों को भी कुछ मिलने वाला नहीं है
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