जिस प्रकार देश में हर दिन कोई ना कोई दिवस मनाया जाता है और उसके बाद अच्छाई निकलने की बजाय समस्याएं और खड़ी हो जाती है ऐसा ही पिछले दो दशक से बाल श्रम के बारे में देखने को मिल रहा है। 12 जून को बाल श्रम दिवस हम मना रहे हैं। संबंधित विभाग के अधिकारियों द्वारा बड़ी बातें की जा रही हैं। कहा जा रहा है कि जागरूकता और सख्ती बढ़ी तो बाल श्रम छोड़कर पढ़ने जाने लगा छोटू। सभी जानते हैं कि अपनी प्रतिभा का दोहन बाल श्रम और खेलने पढ़ने की उम्र में बोझ उठाना कोई भी बच्चा और ना उसके घर वाले ऐसा चाहते हैं। लेकिन सरकारें इस बारे में जितना कर रही हैं उतना ही नाबालिग बच्चे बड़ी संख्या में बाल श्रम करने को मजबूर हैं। यह व्यवस्था कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। सवाल उठता है कि ऐसा हो क्यों रहा है। सरकार की इस बारे में नीतियों के बावजूद देश में 5 से 14 आयु वर्ग के एक करोड़ बच्चे असंगठित क्षेत्रों घरेलू कामकाज निर्माण होटल ढाबों और प्राइवेट कार्यालयों में काम करते हैं। कहीं उनकी योग्यता के अनुसार उन्हें भुगतान मिलता है। अनेकों जगहों पर उनका उत्पीड़न होने की बात भी नकारी नहीं जा सकती। मैं किसी का आलोचक नहीं हूं ना किसी पर आरोप लगा रहा हूं लेकिन जितना देखा सुना उसके अनुसार बाल श्रम रोकने के लिए तैनात अधिकारियों को ऐसा कराने वालों से जो महीना मिलता था वो काफी बढ़ गया है। कुछ लोगों का कहना है कि श्रम विभागों के इंस्पेक्टर फैक्टियों या बाजारों का दौरा करते हैं और बच्चे मजदूरी करते दिखाई देते हैं तो चेतावनी देकर अपनी जेब गर्म कर वापस लौट जाते हैं। बाल श्रम से मुक्ति की शुरूआत 2002 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने की थी जिसका उददेश्य वैश्विक स्तर पर बाल श्रम को समाप्त करना और नागरिकों को प्रेरित करना था। मगर ऐसा होता हीं दिखाई नहीं दे रहा है। प्रधानमंत्री जी और यूपी के सीएम साहब बाल श्रम से बच्चों को मुक्त कराने और उन्हें पढ़ने भेजने की आवश्यकता तो है। मगर यह तभी संभव जब बच्चों के परिवारों के यहां दिखवाये की उनके यहां खाने पीने इलाज कराने की व्यवस्था है या नही। अगर नहीं है तो पहले सरकार स्कूलों में बाल श्रम से मुक्त कराने बच्चों का प्रवेश दिलाए ओर उनके परिवारों को हर माह एक तय रकम दी जाए। अगर हम यह करते हैं तो ही बाल श्रम से बच्चों को मुक्त कराने की उम्मीद कही जा सकती है। वरना ऐसे दिवसों का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि मैंने खुद इन परिस्थितियों को देखा है इसलिए मेरा आग्रह है कि पहले बाल श्रमिकों व उनके परिवारों के लिए व्यवस्था करे तभी बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिलाए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
बाल श्रम से मुक्त बच्चो को छोटू कहना बंद करें अधिकारी! मजबूर परिवारों की व्यवस्था देखें सरकार उसके बाद श्रम से मुक्त कराने की योजना हो लागू
0
Share.