सरकारी अस्पतालों एवं मेडिकल कॉलेजों में स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयास के तहत 21 निर्देश सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वारा दिए गए। सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने एक खबर के अनुसार 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश कि यूपी सरकार के अधिकारियों को केवल सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराने को कहा गया था, उसे निरस्त करते हुए कहा गया है कि ऐसे निर्देश नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप करते हैं और उपचार के संबंध में व्यक्तिगत विकल्पों को सीमित। न्यायाधीश के द्वारा दिए गए आदेशों पर कोई टिप्पणी करने का तो मेरा कोई इरादा नहीं है लेकिन आम आदमी को बोलने की मिली स्वतंत्रता के अहसास को साकार करते हुए मैं यह जरूर कहना चाहता हूं कि पहली बात तो जब आम आदमी को इन सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए प्रेरित किया जाता है और इनमें बड़ी सुविधाएं सरकार की ओर से उपलब्ध कराए जाने के दावे किए जाते हैं तो फिर सरकारी अफसर इन अस्पतालों में इलाज क्यों नहीं करा सकते। सब जानते हैं कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों पर कितना पैसा सरकार का इलाज के नाम पर खर्च होता है और किस प्रकार इस माध्यम से अनेक नर्सिंग होम और प्राइवेट अस्पताल मालामाल हो रहे हैं क्येांकि इलाज के दौरान जैसा देखने सुनने और पढ़ने को मिलता है कुछ अस्पताल संचालक और कर्मचारी इलाज के नाम पर सरकारी धन का व्यय करते और कराते हैं वो किसी से छिपा नहीं है। मेरा मानना है कि सरकारी अफसर अगर अपने अस्पतालों में इलाज नहीं कराना चाहते तो ना कराए लेकिन जनहित में यह जरूर तय होना चाहिए कि वो कहीं भी अपना इलाज कराएं लेकिन अपने पैसे से उस पर आम आदमी के टैक्सों के धन का व्यय प्राइवेट अस्पतालों में इनके इलाज पर नहीं होना चाहिए। अगर फिर भी लगता है कि यह संभव नहीं है तो सरकार हर आदमी को निजी अस्पतालों में इलाज कराने का पूर्ण खर्च उठाए। क्योंकि जिसके टैक्सों से सब कुछ चल रहा है वो तो सरकारी अस्पताल में जाए और जो भरपूर सुविधाएं और वेतन ले रहे हैं वो जनता के पैसे से निजी अस्पतालों में इलाज कराएं लोकतंत्र में यह कहां तक उचित है। इस बारे में अदालत सरकार और संसद सदस्यों को सोचना होगा। क्योंकि यह व्यवस्था आम आदमी के साथ दोहरी नीति भी कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकारी अस्पतालों मेें इलाज कराने से बचने वाले अफसर अपने पैसे से निजी अस्पतालों में जाएं सरकारी खर्च पर नहीं
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