नई दिल्ली 07 अगस्त। अब ब्रेन चिप की मदद से मानव व्यवहार, उसकी सोचने की क्षमता और शारीरिक शक्ति को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। यह तकनीक लकवाग्रस्त लोगों को बहुत फायदा पहुंचा सकती है। लकवाग्रस्त लोगों को चलने-फिरने और बात करने की सुविधा देने वाले उपकरणों में लगातार सुधार किया जा रहा है। वैज्ञानिक इसमें ऐसा भविष्य देख रहे हैं, जिसमें हम यादों को बदल सकते हैं और किसी नए कौशल को डाउनलोड कर सकते हैं। हालांकि अभी इसमें कई बड़ी चुनौतियां हैं।
जीव विज्ञान, भौतिकी और तकनीक के क्षेत्र में अब ऐसी खोजें की जा रही हैं, जो शायद इन्सानों को भविष्य में ‘साइबोर्ग’ बना दें। साइबोर्ग भविष्य के मानव को लेकर एक कल्पना है। भविष्य में साइबोर्ग वो इन्सान होंगे, जिनके शरीर के भीतर कई तरह की मशीनें और ब्रेन चिप लगी होंगी।
इन मशीनों और ब्रेन चिप की मदद से इन्सान की शारीरिक और मानसिक क्षमता आज के मुकाबले कई गुना बढ़ जाएगी। इस चिप की मदद से भविष्य में इन्सानों के व्यवहार, उनकी सोचने-समझने की क्षमता और शारीरिक शक्ति को बढ़ाया जा सकेगा। इसकी मदद से अपाहिज लोगों को दोबारा से ठीक किया जा सकेगा।
नोलैंड आरबॉ एक लकवाग्रस्त व्यक्ति हैं। उन्हें 2016 में गर्दन के नीचे के हिस्से में लकवा की समस्या हो गई थी। इसके बाद उन्होंने अमेरिका की न्यूरालिंक कंपनी द्वारा बनाई गई ब्रेन चिप को शल्य चिकित्सा से अपने दिमाग में प्रत्यारोपित कराया। इस तरह की ब्रेन चिप का इस्तेमाल करने वाले वह पहले व्यक्ति थे। तब से आरबॉ फोन और कंप्यूटर को अपने विचारों से संचालित करते हैं। वह वेब सर्फिंग करते हैं और शतरंज खेलते हैं।
यह ब्रेन चिप कैसे सोचने-समझने की क्षमता और शारीरिक शक्ति को बढ़ा सकती है, इसको समझने के लिए एक व्यक्ति ने ऑनलाइन गेम ‘वेबग्रिड’ खेला। ग्रिड पर अप्रत्याशित रूप से दिखाई देने वाले वर्गों पर क्लिक करने के लिए लैपटॉप के ट्रैकपैड पर उसने अपनी उंगली का उपयोग किया, जिसकी गति 42 वर्ग प्रति मिनट थी। लेकिन जब आरबॉ ने गेम खेला तो उन्होंने कंप्यूटर पर टेलीपैथिक सिग्नल भेजने के लिए अपने दिमाग में लगी चिप का उपयोग किया, जिसकी गति 49 वर्ग प्रति मिनट थी।
इसी तरह नोलैंड आरबॉ ने यह भी प्रदर्शित किया कि वह केवल अपने दिमाग का उपयोग करके शतरंज खेल सकते हैं। आठ साल तक पक्षाघात झेलने के बाद उन्होंने न्यूरालिंक द्वारा डिजाइन की गई ब्रेन चिप की बदौलत उन कार्यों को करने की क्षमता हासिल कर ली, जो पहले उनके लिए दुरूह थे। आरबॉ ने एक लाइव स्ट्रीम में कहा- “कर्सर के हिलने की कल्पना करना मेरे लिए सहज हो गया। मैं बस स्क्रीन पर कहीं भी देखता रहता हूं और यह वहीं चला जाता है, जहां मैं चाहता हूं।”
वैज्ञानिक के अनुसार, मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) का उपयोग करके इन्सानी दिमाग को मशीनों के साथ मिलाने का यह प्रयोग सफल रहा है। रीढ़ की हड्डी की चोटों, स्ट्रोक या किसी हादसे से लकवाग्रस्त होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में इस तकनीक से वे अपनी खोई हुई क्षमताओं को वापस पा रहे हैं।