यह सभी जानते हैं कि अपनी पसंद का भोजन करने में जो मजा है वो और किसी बात में नहीं। यह स्थिति तब है जब कुछ मामलों में काफी नुकसान भी अपनी इच्छानुसार खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करने पर होते हैं लेकिन आदमी की जबान आसानी से किसी भी स्वाद को छोड़ना नहीं चाहती। ऐसा अनेकों मौको पर देखने को मिलता है कि चिकित्सकों द्वारा स्पष्ट मना करने के बाद भी लोग वो चीजें खाते हैं जिसका उपयोग नहीं करना चाहिए। जहां तक बात करें मांसाहार और शाकाहार की तो जिस प्रकार से शाकाहारियों को दाल साग सब्जी पसंद है उसी प्रकार मांसाहारियों को विभिन्न प्रकार के मीट पसंद होते हैं इसलिए किसी को भी उसका मनपसंद भोजन खाने से नहीं रोका जा सकता। वैेसे भी अगर मांसाहार पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाता है तो एक समय वो आएगा जब सड़कों पर आमदियों से ज्यादा जानवर नजर आएंगे। लेकिन फिर भी यह कहा जा सकता है कि अपने स्वास्थ्य और लंबे जीवन की अभिलाषा को ध्यान में रखते हुए मांसाहार से जितना बचा जा सके उतना अच्छा है। मैं पूर्ण रूप से शाकाहारी हूं फिर भी यह मांग तो नहीं कर सकता कि मांसाहार पर प्रतिबंध लगे। बहुत से लोग नहीं जानते कि दुनिया के कुछ देशों में मांस मछली के साथ ही जिन चीजों को हम देखना भी पसंद नहीं करते उन्हें भी लोग समुद्री जीवों के साथ बड़े शौक से खाते हैं। भगवान ने सभी चीज किसी ना किसी उपयोग के लिए बनाई है। बस यह कि हम क्या पचा सकते हैं क्या नहीं इस बात का ध्यान रखना होगा। जहां तक बात कुछ लोगों की जीव हत्या नहीं करनी चाहिए तो यह भी कहा जा सकता है कि जब हम अपने घरों में चूहे मक्खी मच्छर काकरोच मारते हैं तो यह क्यों नहीं सोचते कि इससे भी जीव हत्या का पाप होगा। यह जरूर है कि जिस प्रकार भगवान ने सभी इंसानों को एक समान नहीं बनाया उसी प्रकार यह भी कह सकते हैं कि अगर भगवान चाहता तो मांसाहारी किसी को बनाता ही नहीं। सभ्ीा को शाकाहारी रखता। जिस जानवर को मारकर खाया जाता है उनकी उत्पत्ति ही नहीं होती।
कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि किसी को भी मांसाहार या शाकाहार खाने के लिए मजबूर नहीं किया जासकता। दूसरों की बात तो दूर अपने परिवार में ही कोई इस बारे में बात को कई मौकों पर नहीं मानता। घर में नहीं तो बाहर जाकर अपनी पसंद का भोजन करता है। यह जरूर है कि गांेमांस का सेवना किसी को भी नहीं करना चाहिए और सरकार को भी इस पर रोक लगाने चाहिए। देश में बड़ा वर्ग गोमांस और गौहत्या से परहेज करता है। बहुसंख्यकों की भावनाएं भी इससे प्रभावित होती है। इसलिए इस पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। एक बात कही जा सकती है कि कुछ लोग मांसाहार को बिल्कुल पसंद नहीं करते। इसलिए उनकी भावनाओं और धार्मिक आधर को ध्यान में रखते हुए मंदिरों और धर्मस्थल के आसपास मांसाहारी होटल खोलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके लिए लाइसेंस देते समय उसमें पहली शर्त होनी चाहिए कि वो मांसाहार का व्यापार नहीं करेंगे और करेंगे तो मंदिरों और होटलों के आसपास होटल नहीं खोलेंगे। सारी दुनिया जानती है कि अपने देश में लोकतंत्र का बड़ा महत्व है। इसे मानने वाले यह भ्ीा समझते हैं कि किसी को भावनात्मक रूप से किसी बात के लिए तैयार नहीं किया जा सकता। वैसे भी अगर ऐसे मौकों पर कुछ हिंदूवादी संगठन इन बातों का विरोध करते हैं जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
किसी को जबरदस्ती शाकाहारी नहीं बनाया जा सकता, मंदिरों के आसपास ना खुले नॉनवेज होटल
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