asd विवाह पंजीकरण के लिए नए सिरे से बनेंगे नियम

विवाह पंजीकरण के लिए नए सिरे से बनेंगे नियम

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लखनऊ 06 जून। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही शादियों पर लगाम लगाने के लिए आईजी स्टांप को प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए गए हैं। खास बात ये है कि विवाह पंजीकरण का नियम बिना किसी एक्ट के बना है।
महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने पहले कहा कि ये नियम हमने बनाया ही नहीं है। फिर स्टांप विभाग ने बताया कि आपके दायरे का ही नियम है। बाद में विभाग ने इसे स्वीकार किया। अब दोनों विभागों के समन्वय से नए नियम की गाइडलाइन तैयार की जा रही है।

वर्ष 2015 से पहले हिंदू मैरिज रजिस्ट्रेशन एक्ट था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी शादियों का पंजीकरण होना चाहिए। तब महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने यूपी मैरिज रजिस्ट्रेशन रूल बनाया। अभी इसके आधार पर विवाह का पंजीकरण होता है। लेकिन, इस नियम की आड़ में यूपी में बड़े पैमाने पर घर से भागे जोड़ों का विवाह पंजीकरण फर्जी दस्तावेज के आधार पर होने लगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्टांप एवं पंजीकरण विभाग ने दलील दी कि दस्तावेज के जांच की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही इस तरह की नियमावली है।

इस पर हाईकोर्ट ने आईजी स्टांप व रजिस्ट्रेशन से सुझाव मांगे। आईजी ने बताया कि उम्र के ऑनलाइन सत्यापन के लिए पैनकार्ड की जांच की जाए। आधार कार्ड को पते के सत्यापन के लिए जरूरी किया जाए। मार्कशीट और जन्म प्रमाणपत्र का सत्यापन किया जाए। हाईकोर्ट में इन सुझावों के साथ ये भी कहा कि सॉफ्टवेयर में इसका प्रावधान करने में समय लगेगा। इसके अलावा अन्य राज्यों की मार्कशीट चेक करना संभव नहीं है इस पर हाईकोर्ट ने विभाग को निर्देश दिया कि मैरिज रूल्स को छह महीने में बदलें।

नियम बदलने तक जहां के स्थायी निवासी, वहीं होगा पंजीकरण
जबतक नियम नहीं बदलते हैं, तबतक शादी का पंजीकरण सिर्फ वहीं होगा, जिस जिले का वर या वधू या उनके मां-बाप वहां के स्थायी निवासी होंगे। स्थायी निवास के लिए अपंजीकृत रेंट एग्रीमेंट मान्य नहीं होगा। उम्र का भी सत्यापन होगा। विवाह संस्कार संपन्न कराने वाला एक एफीडेविड भी देना होगा। इन निर्देशों के बाद स्टांप व पंजीकरण विभाग ने महिला एवं बाल कल्याण विभाग के साथ मिलकर प्रक्रिया शुरू कर दी है। बाल विवाह निरोधक अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने और विवाह संस्था की पवित्रता को बनाए रखने के साथ सामाजिक ताना-बाना की रक्षा के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के सदस्यों से भी सुझाव मांगे गए हैं।

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