Date: 08/09/2024, Time:

प्रांतीय मेले के तमगे से मुक्त हो नौचंदी मेला, अष्टमी नवमी को गुलजार हो मंदिर, जनता के हाथ में दी जाए कमान

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उत्तरी भारत का प्रसिद्ध मेला नौचंदी यहां के नागरिकों के लिए किसी घरेलू बड़े उत्सव और यादगार से कम नहीं होता था। गंगा जमुनी तहजीब के इस मेले के पटेल मंडप में होने वाले कार्यक्रमों व मेला देखने के लिए प्रदेश व केंद्र के मंत्री बड़े अधिकारी के साथ ही विदेशों में रहने वाले स्थानीय नागरिक पूरे वर्ष मेले का इंतजार करते थे। जब होली से एक रविवार छोड़कर मेले का शुभारंभ होता था और मेला अष्टमी नवमी पर पूरे शबाब पर होता था तब यहां बाले मियां की मजार पर इबादत और नवचंडी के मंदिर में पूजा करने के साथ ही हलवा पराठा और चाट पकौड़ी खाने के लिए दूर दूर से लोग आते थे। बच्चे मौत का कुंआ जादू के शीशों सर्कस का आनंद लेते थे तो मेले में लगी दुकानों में सामान खरीदते थे। मोहनद्वार में हाथ से बनाए सामान और पटेल मंडप के कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र होते थे तो पटेल मंडप के पीछे नागरिकों के साथ ही पत्रकारों के भी कैंप लगते थे। कुल मिलाकर मेला यादगार हुआ करता था। दो साल पहले जब इसे प्रांतीय मेले का रूप दिया गया तो लगा था कि इसकी भव्यता और गरिमा बढ़ेगी और यहां होने वाले आयोजन आकर्षण का केंद्र बनेंगे और सरकार के प्रयासों से मेले की खूबसूरती में लगेंगे चार चांद। बीती 27 जून को पटेल मंडप मंे माता के जगराते से शुरू हुआ मेला 23 जुलाई को कवि सम्मेलन से समाप्त हुआ। लेकिन पिछली बार तो मेले की जो महत्ता थी वो समय से शुरू ना होने से लगभग समाप्त हो गई थी क्योंकि मेला पूर्ण रूप से कहीं नजर नहीं आया। इस बार तो सारी हदें ही पार हो गईं। कुछ लोगों का कहना है कि मेले का जो बजट था वो पहले से ज्यादा रहा लेकिन उससे मेले की भव्यता बढ़ने की बजाय बजट खर्च करो अभियान ज्यादा चलता नजर आया। शुरूआत से पहले ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे और अब समापन पर मेला समिति के सदस्य वसीम राहुल ने डीएम को शिकायत पत्र देते हुए मेला आयोजन में कई तरह की गडबड़ी के आरोप लगाए। उनका कहना है कि पटेल मंडप के कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार हुआ। मेला गुपचुप तरीके से समाप्त हो गया। क्योंकि इस वर्ष ना तो प्रतिनिधि सदस्यों को सम्मानित किया गया और ना ही परंपरा के अनुसार दुकानदारों को मेले मेें गंदगी और गुंडागर्दी चरम पर रही । ऐसा आरोप जानकारों द्वारा लगाया जा रहा है। दुकानदारों का कहना है कि इस बार जितना नुकसान हुआ उतना पहले कभी नहीं रहा। व्यापारी नेता ललित अग्रवाल ने कहा कि ठेकेदार ने बिजली बंद कर दी। समान समेटने के लिए पूरा समय भी नहीं दिया गया। कुछ मिलाकर यह कह सकते हैं कि प्रांतीय मेला बनते ही मेले की गरिमा शान पहचान तीनों ही समाप्त हो गई। यह मेला व्यवस्थाआंे की भेंट चढ़़ गया तो पटेल मंडप के कार्यक्रम अफसरों या कमेटी के सदस्यों या वीआईपी की उपस्थिति तक ही सिमट कर रह गए। पहली बार प्रदेश सरकार द्वारा लगे इस मेले के निमंत्रण पत्र भी उपलब्ध नहीं कराए गए। औरों की बात तो दूर। मीडियावालों को भी उदघाटन समापन और पटेल मंडप के निमंत्रण नहीं भेजे गए। यहां होने वाले मुशायरा व कवि सम्मेलन के आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोप पहले इतने नहीं लगे जितने इस बार नागरिकों ने मौखिक रूप से लगाए। प्रांतीय मेला भले ही सरकार के अंतर्गत लगाया जा रहा हो लेकिन जनप्रतिनिधियों को भी शायद वो सम्मान नहीं दिया गया जो दिया जाना चाहिए था और वो भी खामोश बैठ गए। परिणामस्वरूप आयोजन का यह हश्र हुआ और अंतिम दिनों में तो पटेल मंडप में अश्लील डांस होने के आरोप लगे। जो कमेटी बनाई गई उसमें भी पूर्व की भांति उन वर्गों को स्थान नहीं दिया गया जो हमेशा इसका हिस्सा बनकर रहे।
प्रदेश के मुख्यमंत्री जी परंपराओं और संस्कृति को बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। उसके बावजूद इस मेले का जो अब हश्र हो गया है वो किसी से छिपा नहीं है। अब तो स्थिति यह हो गई है कि बड़े बुजुगों के साथ साथ युवा भी यह मांग करते सुने गए कि सरकार को नौचंदी मेले को प्रांतीय मेले के तमगे से मुक्त कर देना चाहिए जिससे नागरिक और उनके प्रतिनिधि इसकी पुरानी परंपरा के अनुसार अगले वर्ष से मेला चाहे दुकानदार कम आए या ज्यादा लेकिन आठे नौमी को मेला गुलजार हो ऐसी व्यवस्था कर पाएं। एक बात विश्वास से कही जा सकती हे कि पिछली पांच दशक में मेले की स्थिति ऐसी कभी नहीं रही जितनी प्रांतीय मेले का दर्जा मिलने के बाद हुई। इसके लिए कौन दोषी है यह देखना सरकार का काम है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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