बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिम शख्स एक से ज्यादा विवाह रजिस्टर्ड करा सकता है. अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में इसकी अनुमति है इसलिए उन्हें एक से ज्यादा शादियां करने से नहीं रोका जा सकता. मुस्लिम दंपती ने अपनी याचिका में अदालत से विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिए जाने की अपील की थी. जबकि अधिकारियों ने उन्हें प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह युवक की तीसरी शादी थी.
जस्टिस बी.पी. कोलाबावाला और सोमशेखर सुंदरसन की पीठ का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है. पीठ ने ठाणे नगर निगम के विवाह पंजीकरण कार्यालय को मुस्लिम व्यक्ति की अल्जीरियाई महिला से तीसरी शादी के आवश्यक दस्तावेज स्वीकार करने के आदेश दिए हैं. मुस्लिम शख्स ने फरवरी 2023 में आवेदन दायर किया था.
मुस्लिम युवक ने कोर्ट में दायर याचिका में बताया था कि उसने अल्जीरिया की एक महिला के साथ तीसरा विवाह किया था. उसने तीसरी पत्नी के साथ विवाह पंजीकृत कराने के लिए ठाणे नगर निगम में आवेदन दिया था. दंपति ने कोर्ट में दायर की गई याचिका में दावा किया कि महाराष्ट्र विवाह ब्यूरो विनियमन और विवाह पंजीकरण अधिनियम का हवाला देकर अधिकारियों ने विवाह का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया. उनका तर्क था कि राज्य के अधिनियम के तहत ‘विवाह की परिभाषा’ सिर्फ एक विवाह के रजिस्ट्रेशन की अनुमति देती है.
कोर्ट ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुसलमान व्यक्ति चार पत्नियों को एक साथ रख सकता है. जस्टिस बी.पी. कोलाबावाला और सोमशेखर सुंदरसन की पीठ ने कहा है कि विवाह पंजीकरण अधिनियम में ऐसा कुछ नहीं मिला, जो किसी मुस्लिम व्यक्ति को तीसरी शादी पंजीकृत करने से रोकता हो. कोर्ट ने आदेश दिया है कि सुनवाई के 10 दिनों में विवाह रजिस्ट्रेशन को लेकर मंजूरी देने और या अस्वीकार्य करने के लिए तर्कपूर्ण आदेश पारित किया जाए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह में ठाणे नगर निगम में सभी दस्तावेज पेश करने के आदेश दिए हैं.
कोर्ट ने इस मामले में आदेश देते वक्त कहा कि अजीब विडंबना है, जिन अधिकारियों ने याचिकाकर्ता को दूसरी शादी का पंजीकरण किया था, वह अब उसकी तीसरी शादी के रजिस्ट्रेशन पर महाराष्ट्र विवाह ब्यूरो विनियमन और विवाह पंजीकरण अधिनियम के तहत एक विवाह का हवाला दे रहे हैं. कोर्ट ने कहा है कि यदि वह अफसरों की दलील मान लें तो इसका मतलब होगा कि महाराष्ट्र विवाह ब्यूरो विनियमन और विवाह पंजीकरण अधिनियम ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की जगह ले ली है.