कुछ वर्ष पूर्व तक जब संघ परिवार के बारे में लोग पूर्व रूप से जानते नहीं थे क्योंकि उसके कार्याे का प्रचार कुछ कारणों से नहीं हो पाता था। तब तक चाहे कोई कुछ भी कहता रहा हो लेकिन जबसे देश में जनसंघ भाजपा का प्रभाव पड़ा तब से इस संगठन द्वारा देश के एकता अखंडता के लिए कार्य किए जा रहे हैं वो अपने आप में अनुकरणीय है ही। यह भी सही है कि लोकतंत्र में किसी को भी जबरदस्ती कुछ नहीं मनवाया जा सकता।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत द्वारा पिछले कुछ समय में जब से उन्होंने इस पद का कार्यभार संभाला है तब से आज तक उनके बयानों संबोधनों और अभियानों से सांप्रदायिक सौहार्द्र भाईचारा बढ़ा। संघ में विपरीत सोच वालों को आमंत्रित कर उनके द्वारा जब इसके कार्यों के बारे में बताया गया तो अब विपरीत सोच वाले भी संघ के बारे में दुष्प्रचार करते नजर नहीं आते हैं। अखंड भारत की सोच और हर आदमी को उसका अधिकार दिलाने के साथ साथ देश में ऐसी सरकार हो जो सबके बारे में सोचती हो जैसे प्रयासों से यह कहने में कोई हर्ज महसूस नहीं कर रहा हूं कि समाज में वैचारिक मतभेद बढ़ रहे हो लेकिन मनभेद नहीं बढ़ रहे। 22 अप्रैल को पहलगाम में जो आतंकी घटना घटी उसके विरोध तथा सरकार द्वारा दिए गए जवाब के समर्थन में हमेशा सरकार विरोधी बोलने वालों के साथ ही कुछ कटटरपंथी मुसलमान एक स्वर में देश के साथ खड़ा होने और निर्णय का समर्थन करते हुए दुश्मन को नेस्तानाबूत करने के सुझाव दे रहे है। यह जहां तक पढ़ने को मिलता है उसके अनुसार मोहन भागवत के सफल उपायों का ही परिणाम कह सकते हैं।
बीते दिवस जयपुर में हरमाडा स्थित रविनाथ आश्रम में रविनाथ महाराज की पुण्यतिथि कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि भारत में त्याग की परंपरा रही है। भगवान राम से लेकर भामाशाह तक को हम पूजते और मानते रहे हैं। भारत विश्व में शांति और सौहार्द के लिए कार्य कर रहा है। इस समय सबको धर्म दिखाना भारत का कर्तव्य है लेकिन इसके लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। दुनिया आपको तभी सुनती है जब आपके पास शक्ति होती है। इससे पूर्व उन्होंने रविनाथ महाराज के साथ बिताए अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उनकी करूणा से हम लोग जीवन में अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। यहां भावनाथ महाराज ने मोहन भागवत को सम्मानित किया। बड़ी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उनका कहना था कि ना तो मैं इस सम्मान का अधिकारी हूं ना इस मंच पर भाषण देने का। सौ साल से परिवर्तित परंपरा चल रही है। उस परंपरा में लाखों कार्यकर्ता प्रचारक हैं। गृहस्थ कार्यकर्ताओं की भी कमी नहीं है। समर्पित कार्यकर्ताओं के परिश्रम का परिणाम कुछ है तो वह स्वागत और सम्मान योग्य हैं तो यह उनका सम्मान है जो संतों की आज्ञा से मैं ग्रहण कर रहा हूं।
कहने का आश्य सिर्फ इतना है कि देश और समाज को एक ऐसे मार्गदर्शन की आवश्यकता है जो स्पष्ट बोलता हो सबके बारे में सोचता हो और अपनों को भी सीख देने में पीछे ना रहे। फिलहाल ऐेसे निर्भीक विचारक हर किसी के हित की सोचने वाले व्यक्ति के रूप में मोहन भागवत जी पूरे देश में कुछ लोगों में शुमार कहे जा सकते हैं। उनका यह संदेश अचूक रामबाण है कि दुनिया आपकी तभी सुनती है जब आपके पास शक्ति हो। इसका मतलब यह नहीं है कि आप किसी शक्ति और ताकत का दुरूपयोग करे। इसका यह संदेश है कि जरूरतमंद बेसहारा लोगों को उनकी समस्याओं से मुक्ति दिलाने कुछ बुरे लोगों को सही रास्ते पर लाने और गलत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए काम करना है। मेरा मानना है कि समाज के हर आदमी जो सबके सुख में अपना सुख ढूंढता हो उसे ऐसे ही विचारों को आत्मसात कर सही बात कहने से नहीं चूके तभी सबका भला हो सकता है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मोहन भागवत बोले मैं संतों की आज्ञा से यह सम्मान ग्रहण कर रहा हूं, दुनिया तभी सुनती है जब आपके पास शक्ति है
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