प्रयागराज 06 फरवरी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हमारे देश में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता किसी को झूठा नहीं फंसा सकती, इसके बजाय वह चुपचाप सहना पसंद करेगी। दुष्कर्म पीड़िता का बयान उसके लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है। जब तक वह यौन अपराध की शिकार नहीं होती वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहराएगी। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोपी को जमानत नामंजूर करते हुए यह टिप्पणी की ।
प्रयागराज के कैंट थाने में सूरज कुमार पर नाबालिग से दुष्कर्म और पॉक्सो मामले में मुकदमा दर्ज कराया गया था। आरोप था कि उसने 5 सितंबर 2024 को नाबालिग के घर में घुसकर उसे अकेला पाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। आरोपी ने जमानत के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की।
आरोपी के अधिवक्ता ने कहा कि पीड़िता के बयानों में दुष्कर्म होने की बात की पुष्टि नहीं हो रही है। ऐसे में आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म का मामला नहीं बनता है। मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी तरह के बल प्रयोग का कोई संकेत नहीं है। ऐसे में अभियोजन पक्ष का मामला मेडिकल साक्ष्य से साबित नहीं हुआ। वहीं अपर शासकीय अधिवक्ता ने जमानत याचिका का विरोध किया।
दलील दी कि पीड़िता के पिता घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं। घटना उनके अपने घर में हुई। पीड़िता ने अपने बयानों में अभियोजन पक्ष का समर्थन किया। पॉक्सो एक्ट की धारा 29 को देखते हुए न्यायालय को यह मान लेना चाहिए कि अभियुक्त ने अपराध किया, जब तक कि अपराधी इसके विपरीत साबित न कर दे।
कोर्ट ने कहा कि उसके बयान समान थे और उनमें आरोप लगाया गया कि पीड़िता के खिलाफ दुष्कर्म किया गया। कोर्ट ने कहा कि यदि यह मान भी लिया जाए कि दुष्कर्म नहीं हुआ था, तब भी याची धारा 65(2) बीएनएस के तहत दंडित होने का पात्र है, क्योंकि पीड़िता की आयु 12 वर्ष से कम है।
कोर्ट का आरोपी को जमानत देने से इनकार
आरोपी का कथित कृत्य बीएनएस की धारा 63 के तहत प्रदान की गई बलात्कार की परिभाषा के अंतर्गत आता है। कोर्ट को आरोपी के झूठे आरोप को मानने और नाबालिग पीड़िता के बयानों पर अविश्वास करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं मिली। न्यायालय ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयानों में मामूली विरोधाभास से अभियोजन की मूल कहानी प्रभावित नहीं हो रही है।