अभी तक तो आए दिन समाचार पत्रों व टीवी चैनलों व सोशल मीडिया पर खुंखार हो रहे कुत्ते बंदर बिल्ली आदि से होने वाले नुकसान को लेकर खबरे मिलती थी कि आज गुलदार ने हमला कर दिया या जानवर को उठा ले गया। या बंदर से डर से आदमी छत से गिरकर मर गया। लोकसभा और विधानसभाओं में भी यह मुददा उठ चुका है। यह भी नहीं कह सकते कि सरकार इससे निजात दिलाने के प्रयास ना कर रही हो लेकिन परिणाम सामने नहीं आ रहे। क्योंकि जहां तक नजर आ रहा है जिनके कंधों पर इनसे छुटकारा दिलाने की जिम्मेदारी है वो व्यवस्था को लागू नहीं कर रहे हैं। आज एक खबर पढ़ने को मिली कि अब चमगादड और कबूतरों से ऐतिहासिक धरोहरों को नुकसान पहुंच रहा है। से स्पष्ट होने लगा कि जानवर नुकसान ज्यादा कर रहे हैं लेकिन उनकी आवश्यकता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और नुकसान पहुंचाने वाली वस्तुओं से यही हमें छुटकारा दिलाते हैं। मगर यह भी है कि कोई भी अपना नुकसान बर्दाश्त नहीं कर सकता। मेरा केंद्र प्रदेश सरकारों से आग्रह है कि यह तो जानवर चाहे कबूतर हो या गंुलदार उन्हें उनके वन और फलदार पेड़ों की उपलब्ध कराएं। क्योंकि जितना पैसा इनसे बचने के लिए खर्च हो रहा है अगर उतना वृक्ष लगवाने पर खर्च किया जाए तो जानवरों से होने वाली कठिनाईयों से छुटकारा मिल सकता है।
एक खबर के अनुसार दिल्ली की विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक धरोहर लाल किलाॉ कुतुब मीनार और हुमायूं का मकबरा समेत अन्य स्मारकों को चमगादड़ों और विभिन्न पक्षियों से बचाने की कवायद जल्द शुरू होगी। तमाम उपायों के बाद भी पक्षियों का मल-मूत्र इन धरोहरों को नुकसान पहुंचा रहा है। दावा है कि पक्षियों और उनके बीट से निपटने के लिए तीन महीने में कई जगहों पर जाली लगाई जाएगी और धरोहरों के जिन हिस्सों को नुकसान पहुंचा है, उनकी मरम्मत की जाएगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई की ओर से इस कार्य के लिए लगभग दो करोड़ रुपए से अधिक खर्च होने का अनुमान है। जानकारी के अनुसार ऐतिहासिक स्मारकों में कई जगहों पर दरारें पड़ने और चमगादड़ों व पक्षियों के प्रवेश करने के कारण गंदगी फैल रही है।
पक्षी ऐतिहासिक धरोहरों में दरवाजों और खिड़कियों से घुसते हैं। इन स्थानों पर सुरक्षा के लिए कई साल पहले लगाई गई जाली भी पुरानी और क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। पक्षियों को इन स्मारकों के अंदर दाखिल होने में कोई रुकावट नहीं होती और सैकड़ों हजारों की संख्या में पक्षी इनमें बसेरा बना लेते हैं। योजना परवान चढ़ी तो ऐतिहासिक महत्व की सभी धरोहरों में ऐसी व्यवस्था होगी कि पक्षी भीतरी हिस्सों में प्रवेश नहीं कर सकें। विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत कुतुब मीनार में भी पक्षियों का जमघट लगा रहता है। यहां पक्षी मीनार के ऊपरी व अन्य हिस्सों में अपना घर बनाए हैं। लाल किला और हुमायंू का मकबरा की भी यही हालत है। ऐतिहासिक फिरोज शाह कोटला स्थित अशोक स्तंभ के पास प्राचीन निर्माण भी जर्जर होते जा रहे हैं। मरम्मत कर इन्हें बचाने की कोशिश होनी चाहिए। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संयुक्त निदेशक टीजे अलोनी का कहना है कि पक्षियों के बसेरा बनाने के कारण ऐतिहासिक धरोहरों को नुकसान हो रहा है। पक्षियों से निजात दिलाने के लिए अनेक उपाय किए जाएंगे। वर्ष 2018 में दिल्ली की प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों में पक्षियों से हुए नुकसान की मरम्मत की गई थी। उसके बाद से बड़े स्तर पर कार्य नहीं किया गया। लिहाजा कई स्मारकों में पक्षियों से गंदगी फैली है। धरोहरों में जगह-जगह दाग धब्बे भी पड़े हैं। कबूतरों ने भी बसेरा बना लिया है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
जंगली जानवरों के आतंक से मुक्ति को किए जाएं उपाय
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