उप्र में चार बार मुख्यमंत्री रहने के साथ साथ केन्द्र की राजनीति में हमेशा अपनी मजबूत पकड़ बनाये रही बसपा सुप्रीमो मायावती जी द्वारा 1984 में गठित बहुजन समाजवादी पार्टी में अपनी सक्रियता शुरू की तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा क्योंकि देशभर में वोट कितने ही मिले हो उम्मीदवार कितने ही जीतकर आये हो यह अलग बात है। उनका राजनीतिक रूतबा हर जगह कायम रहा। उसके बावजूद 2022 के यूपी के विधानसभा चुनाव में जो पार्टी का जनाधार कम होना शुरू हुआ वो एक प्रकार से लोकसभा चुनाव में बसपा की रही स्थिति के रूप में शून्य सा होता नजर आया जबकि ध्यान से सोचे और देखे तो मायावती जी के सर्मथकों और बसपा से जुड़े जनसमूह में अभी भी कोई विशेष कमी नजर नहीं आती है ऐसा क्यों हुआ शायद अब यह बात मायावती जी भी सोचने लगी है।
हमारा मानना है कि अगर पिछले दो तीन दिन में जो पुराने अंदाज मे पूर्व मुख्यमंत्री मायावती जी द्वारा लिये गये अगर ऐसा सिलसिला आगे भी चलता रहा तो कब कहां कितनी सीटे और वोट मिलेगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह कहा जा सकता है कि बसपा का जो रूतबा है वो समर्थकों के दम पर कायम होते देर नहीं लगेगी।
अपना जनाधार वापस लाने और बसपा की सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए बहुजन समाजवादी पार्टी का सदस्यता शुल्क 200 रूपये से घटाकर 50 रूपये किये जाना तथा संगठन में बदलाव के जो संदेश दिये जा रहे है एवं 47 दिन बाद आकाश आनंद को पुनः नेशनल कार्डिनेटर के पद पर बहाल किया जाना एक सुझबुझ भरा निर्णय कह सकते है क्योंकि 10 दिसंबर 2023 को मायावती जी ने आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान 28 अप्रैल को सीतापुर में एक जनसभा के दौरान आकाश आनंद द्वारा दिखाये आक्रमक अंदाज के बाद अपने उत्तराधिकारी पद से उन्हें हटाया जाना पार्टी हित में नहीं रहा। क्योंकि अपने छोटे से कार्यकाल में आकाश आनंद द्वारा अपने अपनाये गये आक्रमक रूख जिसे पार्टी के युवा जनाधार द्वारा काफी पसंद किया गया था के हटने से युवा जनाधार मायूस हुआ और यह कहा जाता है कि इसी के चलते पार्टी उम्मीदवारों की स्थिति और प्रदर्शन आशा के अनुकूल नहीं रहा। अब जैसा की चर्चा है आकाश की वापसी कर मायावती जी ने सही निर्णय दोहराया है और दूसरे राज्य के विधानसभा चुनाव में यूपी के साथ साथ चुनाव लड़ने की जो घोषणा की उससे बसपा का जनाधार उसके मतदाता और नेता काफी खुश है क्योंकि इस निर्णय से बहनजी को वो पुराने अंदाज में देख रहे है। अब क्योंकि बसपा सुप्रीमों ने आकाश आनंद को भी पूरी परिपक्वता के साथ काम करने का मौका दिया है तो उत्तराधिकारी बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती आकाश के लिए खोया जनाधार पाने तथा 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को मजबूती से अपने समर्थकों के सामने ले जाने के लिए माननीय मायावती जी और बसपा का जो वोट घिसक रहा था उसे रोकने की भी चुनौती होगी।
यह कह सकते है कि 2022 के यूपी विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव ने बसपा नेताओं में जो कुछ गलतफमियां थी उन्हें दूर किया है और अनकहे रूप में यह भी समझाया है कि पार्टी कमजोर नहीं हुई सिर्फ नेतृत्व उदासीन हो रहा था। और अब नेतृत्व भी हर चुनौती का सामना करने को तैयार नजर आ रहा है और बहनजी के समर्थक भी एक जुट होकर अपनी पुरानी धमक पैदा करने में पीछे नहीं है।
और वैसे भी पार्टी के प्रमुख नेता मुनकाद अली पूर्व एमएलसी अतर सिंह राव तथा एवं मेरठ के पूर्व जिलाध्यक्ष शाहजहां खां जैसे जमीन से जुड़े नेताओं को भी अब आगे लाकर अगर समय से जिम्मेदारी सौंपी जाती है और काम करने का मौका मिलेगा जो समाज में दिखाई देता है उसे देखकर कहा जा सकता है कि सत्ता में कितनी भागीदारी होगी यह तो समय ही बतायेगा मगर पार्टी का परचम जो वर्तमान में कुछ मामलों में पीछे रह गया है उसमें अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी होते देर नहीं लगेगी क्योंकि सांसद विधायक कितने जीते कितने हारे इससे पहले मुद्दा है कि कितने प्रतिशत वोट बसपा के साथ थे उन्हें वापस लाने का प्रयास करना।
(प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महासचिव मजीठिया बोर्ड यूपी के पूर्व सदस्य संपादक व पत्रकार)
मायावती जी का निर्णय लेने का पुराना अंदाज और आकाश आनंद की वापसी फहरा सकती है बसपा का परचम
0
Share.