कहते हैं कि कलयुग चल रहा है। हो सकता है कि सही हो। हमने धर्मयुग तो देखा नहीं। लेकिन अब जो देख रहे हैं उससे यह जरूर कह सकते हैं कि आम आदमी में धार्मिक और सेवा की भावना खूब उछाल ले रही है। कई लोग इनमें से ज्यादातर के द्वारा किए जाने वाले सामाजिक धार्मिक कार्यों को दिखावा कहते हैं और कुछ का कहना है कि नाम और फोटो छपवाने तथा समाचार की सुर्खियों में रहने के लिए कई लोग यह काम करते है। अगर ऐसा कहने वालों की बात मान भी ली जाए तो मुझे लगता है कि इस दिखावे और फोटो नाम छपने में कोई बुराई भी नहीं है। क्योंकि एक कहावत सुनने को मिलती है जो दिखता है वो बिकता है। मेरा मानना है कि ऐसे कार्यों से और लोगों को भी प्रेरणा मिलती है और लोगों का भला होता हैं अगर दिखावा करने वालों से प्रोत्साहित होकर दस लोग सेवाभावी काम करे तो भूखों को भोजन मिलता है और प्यासों की प्यास बुझती है। इसे हम दिखावे का असर कम और सदबुद्धि का असर ज्यादा कहें तो अच्छा है।
एक बात जो मुझे नजर आती है और पात्रों को उसकी जरूरत भी बहुत है। इसमें ना दिखावा है और ना छपास रोग मिटाने की इच्छा। मानव जीवन हमें परिवार की खुशहाली और समाज की सेवा के लिए ही मिला है। इस आपाधापी और नई सुविधाएं जुटाने की भागदौड़ में बहुत कम लोगों के पास समय नजर आता है जो जरूरतमंदों की सेवा के लिए काम करते हैं। दोस्तों अगर हमारे पास समय और पैसा नहीं है तो जो निरोगी और स्वस्थ जीवन हमें भगवान के आशीर्वाद से मिला है उसका सदुपयोग हम कुछ सरकारी नीतियों का लाभ पात्रों तक पहुंचा दें तो जीवन में बहुत बड़ा पुण्य कर सकते है।
1 अगर किसी को नेत्रदान की इच्छा है तो वो जब हमें छोड़कर जाए तो हम परिवार के साथ मिलकर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी कराकर जरूरतमंदों को आंखों की रोशनी प्रदान कर सकते हैं।
2 अगर हमारे पास औरों को खिलाने के लिए रोटी नहीं है तो हम समय लगाकर शादी विवाह होटलों में जो खाना बचता है उसे बर्बाद ना होने देकर स्वयं या अन्नदान कराने में लगी संस्थाओं को इसकी सूचना देकर भूखों का पेट भरने की व्यवस्था आसान कर सकते हैं।
3 कहते हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो सकता है। आज दिल्ली के नागरिकों के सामने जो पानी की समस्या खड़ी है और उसमें सीएम केजरीवाल की पत्नी भूख हड़ताल पर बैठी है इसलिए अगर कहीं पानी की बर्बादी हो रही है तो उसे रोक सकते हैं अन्यथा जनहित में संबंधित विभाग या जिलाधिकारी को सूचना देकर उसे रोका जा सकता है। इसी प्रकार आज तमाम टीवी चैनल पर प्रचार के साथ हम तंबाकू दिवस मनाते हैं लेकिन इसका प्रभाव इतना नहीं बढ़ता कि इसलिए जहां नशे का व्यापार हो रहा है तो विभागों को उसकी सूचना देकर करोड़ों युवाओं को नशे की लत लगने से पहले उसकी रोकथाम कर सकते है।
4 साथियों कन्यादान हमारे धार्मिक ग्रंथों में दर्शाया गया है और समाज में इसकी मान्यता है। ऐसे में गरीब परिवार की बेटियों के कन्यादान में समस्या आती है तो कुछ लोग इसमें हाथ बढ़ाकर मदद कर अपना लोक परलोक सुधार सकते हैं।
5 कितने लोग सर्दी से बचाव के लिए कपड़े ना होने के चलते सड़कों पर ठिठुरते देखे जा सकते है। अगर हमारे पास वस्त्र हैं तो कुछ वस्त्र जरूरतमंदों तक पहुंचा दें तो हमारे लिए बेकार वस्त्र औरो के लिए राहत व जीवनदान बन सकते है। क्योंकि कई बार सर्दी गर्मी से भी लोगों को मरते देखा जा सकता है।
6 बढ़ते प्रदूषण और गंदगी से रोज नई बीमारियों पैदा हो रही है। आमदनी घट रही है और महंगी दवा खरीदने में आम आदमी का बजट बिगड़ता है इसलिए समर्थ परिवारों में जो दवाईयां बच जाती है और बेकार पड़ी रहती है। हम उन्हें जरूरतों तक पहुंचाएं तो कई परिवार खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
7 शिक्षा के महत्व को एक मजदूर से लेकर उ़द्योगपति तक सब समझ रहे हैं और कई उदाहरण है कि गरीबों के बच्चे शिक्षित होकर मुकाम पा चुके हैं और लोग अब उनका उदाहरण देते है। इसे ध्यान में रखते हुए अगर कोई बच्चों को शिक्षा नहीं दिला पा रहा है तो हमें आगे बढ़कर हर बच्व्चे को साक्षर बनाने के लिए सहयोग देना चाहिए।
8 सब जानते हैं कि पेड पौधों का रोपण कर पहाड़़ों का कटान रोककर और अनावश्यक निर्माण रोकने या सही तरीके से करने के लिए लोगों को मजबूर कर सके तो पर्यावरण संतुलन बनेगा इससे ज्यादातर समस्याएं नागरिकों के सामने आ रही है वो भी नहीं आएंगी। कहने का मतलब है कि जनहित में हम काम करें तो उसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे और आत्मसंतुष्टि प्राप्त होगी।
9 जगह जगह जो भंडारे प्याउ आदि लगाए जाते हैं उनकी सराहना की जाए और सहयोग दें जिससे उन्हें प्रेरणा मिले और अन्य भी जनहित में काम करने की सोचें।
10 वृक्षारोपण हमें मौसम की मार से बचाता हैं। कहते हैं दस पुत्रों के बराबर एक पेड़ होता है। लकड़ी के व्यापार के लिए अगर पेड़ लगाए जाए तो आर्थिक रूप से परिवार को मजबूत बनाते है और हरियााली को बढ़ावा देते हैं। अच्छे काम जितने हो सकते हैं वो हमें खुद भी करने चाहिए और औरों को भी इसके लिए प्रेरित करना समय की मांग देश की मजबूती बनते हमें देर नहीं लगेगी। इसलिए आओ शरीर से धन से हम जितना सदभाव का कार्य कर सरकार और जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं वो करें और इतना भी नहीं कर सकते तो हर मामले की सूचना संबंधित विभागों तक या सरकार तक सोशल मीडिया के माध्यम से भेजकर उनका ध्यान समस्याओं के समाधान की ओर दिला सकते हैं।
इसमें महान संत कबीर के दोहे कबीर मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर पाछे पाछे हरि फिरै, कहत कबीर-कबीर, इसका मतलब है कि हम अच्छे काम करें तो हमारी सोच गंगा की तरह निर्मल हो जाएगी। इसलिए महान संत की इस वाणी तो नमन करते हुए कुछ अच्छा करने की सोचें और उस किवदती को भूल जाए कि भगवान शंकर ने किसी को दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने कहा कि जो मुझे मिला उससे ज्यादा पड़ोसी को मिले ओैर मेरी एक टांग टूट जाए। अब यह भूलकर पड़ोसी के भला होने का वरदान मांगे। क्योंकि अगर पड़ोसी मजबूत हैं तो हमारा जीवन भी खुशहाल रहेगा। सबके भले की सोचे। इसी से हम खुशहाल होंगे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सुखी रहे परिवार समाज में हो खुशहाली आओ परसेवा हेतु टेलीफोन करें
0
Share.