प्रयागराज, 18 अप्रैल। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि आर्य समाज मंदिर में दो हिंदुओं (एक पुरुष व एक महिला) के वैदिक या अन्य प्रासंगिक हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ विवाह भी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा सात के तहत वैध है। विवाह स्थल चाहे मंदिर, घर या खुली जगह हो, ऐसे उद्देश्य के लिए अप्रासंगिक है। यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने महाराज सिंह की याचिका पर दिया।
बरेली निवासी याची पर उसकी पत्नी ने हाफिजगंज थाने में दहेज उत्पीड़न और अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया था। अन्वेषण के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया। फिलहाल अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में मुकदमा लंबित है। दूसरी ओर याची ने मुकदमे की संपूर्ण कार्रवाई को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि आर्य समाज मंदिर में विवाह वैदिक पद्धति के अनुसार सम्पन्न होते हैं, जिसमें कन्यादान, सप्तपदी एवं सिंदूर लगाते समय मंत्रोच्चार जैसे हिंदू रीति-रिवाज व संस्कार शामिल होते हैं और ये समारोह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आर्य समाज से जारी प्रमाण पत्र में विवाह की प्रथमदृष्टया वैधता का वैधानिक बल नहीं हो सकता, फिर भी ऐसे प्रमाण पत्र बेकार कागज नहीं हैं क्योंकि उन्हें सुनवाई के दौरान भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के प्रावधानों के अनुसार विवाह संपन्न कराने वाले पुरोहित द्वारा साबित किया जा सकता है। विवाह पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण इस बात का प्रमाणपत्र नहीं है कि विवाह वैध है। फिर भी यह महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
शादी का पंजीकरण नहीं है तब भी वैध विवाह अमान्य नहीं होगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह पंजीकरण नियम-2017 के अनुसार, विवाह का पंजीकरण नहीं हुआ है। तब भी वैध विवाह अमान्य नहीं होगा। यह भी कहा कि आर्य समाज मंदिर की ओर से जारी प्रमाणपत्र बेकार कागज नहीं है। इसे साक्ष्य अधिनियम के आधार पर साबित किया जा सकता है।