मातृभाषा राष्ट्रभाषा हिंदी को बोलने और उपयोग में लाने को लेकर हमेशा ही चर्चाएं आम रहती है। ज्यादातर सुनने को मिलता है कि कुछ इंग्लिश मीडियम के स्कूलों में नामचार के लिए हिंदी बोली जाती है और बच्चों को हिंदी बोलने पर इसके लिए सजा भी सुनने को मिलती रहती है। इन स्कूलों में हिंदी विषय में पढ़ाई करने वालों को नंबर कम दिए जाते हैं जिससे छात्र कमजोर रहते हैं। तो दूसरी तरफ हिंदी के नाम पर हर वर्ष एक सप्ताह मनाने वाले इसको लेकर कितना गंभीर है यह तो हिंदी पखवाड़ा समाप्त होते ही उनके द्वारा अपनाई जाने वाली अन्य भाषा और अंग्रेजी में किए जाने वाले काम को देखा जा सकता है। कई संस्थान कई प्रकार से हिंदी को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सहायता लेते बताए जाते हैं मगर उनके द्वारा हमेशा यह दर्द दिखाया जाता है कि सरकार हिंदी को बढ़ावा नहीं दे रही और आधुनिक समाज इसे अपना नहीं रहा।
लेकिन मेरा मानना है कि ना हिंदी कमजोर हो रही है और इसे अपना भी सब रहे हैं। इसके पीछे कारण यह महसूस होता है कि दुनियाभर में भारत एक बड़ा बाजार विश्व की कई उत्पादन कंपनियों के माल बेचने का है और अपने यहां हिंदी अंग्रेजी की बात तो छोड़ दे लोगों को अक्षर ज्ञान भी नहीं होता है। इस बात को ध्याान में रखते हुए बहुराष्ट्रीय कंपनियां हिंदी में अपने विज्ञापन तैयार करा रही है। इस भाषा को जानने वाले कर्मचारियों को भी मोटी तनख्वाह पर स्थान दिया जा रहा है। हिंदी पढ़ाने वाले टीचर कुछ स्थानों पर जर्मन और इंग्लिश पढ़ाने वालों से ज्यादा पैसा ले रहे है। यही स्थिति संस्कृत भाषा पढ़ाने वालों की भी है। अब तो हीनभावना से ग्रस्त कुछ परिवारों के बच्चे हिंदी से दूर रहने की ही कोशिश करते बताए जाते हैं। लेकिन जो भी हो राष्ट्रभाषा हिंदी ना कमजोर है और ना ही भविष्य में इसके प्रचलन में कोई कमी आने वाली है। अब दुनियाभर के देशों में लोग इसे सीख रहे हैं। बताते हैं कि विदेशो में रहने वाले भारतीय अपने समारोह में ज्यादातर हिंदी में बात करते हैं। हमारे कई नेता भी जब विदेश टूर में जाते हैं तो बिना किसी झिझक के हिंदी में संबोधन करते हैं और जो नहीं जानते उनके लिए दुभाषिये रहते हैं। हिंदी के वर्चस्व का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि एक खबर के अनुसार चीन पहुंचे भारत के एक यात्री उस समय हैरान हो गए जब उन्हें हिंदी भाषा सुनाई दी। इससे भी ज्यादा हैरानी उन्हें इस बात की हुई कि करीब आठ हजार किलोमीटर हिंदी भाषा एक मशीन से सुनने को मिली। भारतीय शख्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कुछ तस्वीरों के साथ अपना अनुभव साझा किए। सोशल मीडिया यूजर शांतनु गोयल इंजीनियर हैं। उन्होंने एक्स पर चीन की यात्रा के दौरान हिंदी से सामना होने का किस्सा साझा किया है। वह लिखते हैं, अभी चीन पहुंचा हूं। ये मशीनें मेरे भारतीय पासपोर्ट की पहचान करने के बाद हिंदी में बोल रही हैं। चीन के अंदर घटी उक्त घटना से कुछ वर्ष पहले उस मामले का स्मरण हो गया जिसमें हमारे एक दोस्त दो दशक पूर्व नेपाल गए। और यह सोचकर कि शायद हिंदी में बात करना नहीं चलेगा तो उन्होंने अंग्रेजी में बोलना शुरू किया। वहां मौजूद स्वागत अधिकारी ने उनसे हिंदी में नमस्कार करते हुए हिंदी में बोलने का आग्रह किया। अब चीन में भारतीय जानकर हिंदी में बोलने लगी मशीन से स्पष्ट होता है कि हमारी अपनी भाषा को प्रमुखता सब जगह मिल रही है। बस हमें थोड़ा सा प्रयास करना है और जो लोग हिंदी के नाम पर अपनी दुकान चलाते हैं उनको ईमानदारी से अपनी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए थोड़ा प्रयास करना होगा। अगर ऐसा है तो वो दिन दूर नहीं जब विदेशों में संस्कृत और हिंदी के जानकारों की मांग बढ़ रही है उससे देखकर यह कहा जा सकता है कि दुनिया में हिंदी का परचम फहराएगा। अब हमारे देश के कई प्रदेशों में भाजपा की सरकार है। इसके नेता हिंदी को प्राथमिकता देते रहे हेैं। इसलिए हिंदी का मान सम्मान हर हाल में बढ़ेगा। बस हमें अपनी मातृभाषा को आत्मसात करने का कोई मौका छोड़ना नहीं है। (सम्पादक रवि कुमार विश्नोई)
चीन में मशीन बोलने लगी हिंदी, वो दिन दूर नहीं जब दुनिया में फहराएगा राष्ट्रभाषा व मातृभाषा का परचम
0
Share.