आजकल साइबर क्राइम और इसके माध्यम से ठगी के मामले रोज ही सामने आते हैं। नागरिकों को इससे बचाने के लिए सरकारों द्वारा काफी प्रयास भी किए जा रहे हैं और इसका असर भी दिखाई देने लगा है। क्योंकि साइबर क्राइम रोकने के लिए लगे जिम्मेदार अफसर ठगों को पकड़ने के नए तरीके खोज रहे हैं। उन्हें पकड़कर जेल भेजा जा रहा है और रकम भी वापस दिलाई जा रही है। लेकिन जो मानसिक व आर्थिक उत्पीड़न प्रताड़ित आदमी का हो चुका है उसकी वापसी संभव नहीं होती है।
मेरा मानना है कि जिस प्रकार से साइबर क्राइम रोकने के प्रयास हो रहे हैं उसी प्रकार बिना लाइसेंस लिए या उसकी शर्तो का पालन किए बिना ब्याजखोरी का धंधा करने वालों की धरपकड़ भी होनी चाहिए क्योंकि आए दिन किसी ना किसी रूप में ब्याज पर रूपया लेने वालों का मानसिक आर्थिक सामाजिक उत्पीड़न तो हो ही रहा है। कई लोगों को इनके चलते अपनी जान व सम्मान से हाथ धोना पड़ता है लेकिन यह ब्याजखोर समााजिक उत्पीड़न करने में पीछे नहीं हटते। ब्याजखोरों का एक वर्ग कुछ उन लोगों को फंसाने और दस प्रतिशत पर ब्याज देने का धंधा करते हैं तो जल्दी रईश बनने के लिए मोटे उधार पर पैसा लेते हैं और फिर परेशान होकर या तो आत्महत्या कर लेते हैं या परेशान होकर घर छोड़ने को मजबूर होते हैं। मैं यह नहीं कहता कि उधार लिया गया पैसा वापस ना दिया जाए लेकिन एक बात जरूर मानता हूं कि जब 10 प्रतिशत नियम विरूद्ध है तो उसे लेने वालों पर अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई हो। जहां तक बात लेनदेन की है तो यह तो सभी जानते हैं कि वक्त पड़ने पर समयानुसार उधार का लेन देन आदिकाल से होता रहा है। मगर ब्याजखोरी की आड़ में डकैती और लूट की अनुमति किसी नहीं दी जानी चाहिए। मुझे लगता है कि पीड़ितों से जानकारी कर दस प्रतिशत ब्याज पर पैसा देने वालों की खोज की जाए और नियम विरू;द्ध जो ब्याज लिया जाता है उसके लिए उनकी संपत्ति जब्त की जाए और वो पीड़ितों में बांटी जाए। क्योंकि लोकतंत्र में किसी को किसी के उत्पीड़न की छूट नहीं दी जा सकती है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
साइबर क्राइम की तरह दस प्रतिशत ब्याज पर काम करने वालों के विरूद्ध भी हो कार्रवाई
0
Share.