प्रयागराज 05 जुलाई। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि 1 जुलाई, 2024 से भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) लागू होने के साथ ही राज्य में मृत्यु या उम्रकैद से दंडनीय मामलों में अग्रिम जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि BNSS की धारा 482 अब अग्रिम जमानत को नियंत्रित करती है। BNSS लागू होने के बाद CRPC निरस्त हो गई है। CRPC की धारा 438(6) के तहत प्रदेश में उम्रकैद या हत्या के मामलों में अग्रिम जमानत प्रतिबंधित की गई थी।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने अब्दुल हमीद की दूसरी अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। अपीलार्थी को 13 अगस्त 2011 को बरेली जिले के देवरानिया थाना क्षेत्र के ग्राम गिरधरपुर में हुई गुड्डू उर्फ जाकिर हुसैन की हत्या के मामले में मुकदमे का समझौता करने के लिए बुलाया गया था। पुलिस ने जांच के दौरान उसके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया था।
अभियोजन कथानक के अनुसार अपीलार्थी और तीन अन्य जावेद अनवर, अनवर जमीर और बाबू ने लाइसेंसी पिस्तौल से लैस होकर कथित तौर पर जिला पंचायत चुनाव की प्रतिद्वंद्विता के कारण गोलीबारी की। इससे शिकायतकर्ता फिरोज के चाचा की मृत्यु हो गई। जांच के दौरान, आवेदक-अब्दुल हमीद के खिलाफ आरोप झूठे पाए गए। घायलों ने बयान दिया वह मौके पर नही था
इसलिए अपीलार्थी के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया। बाद में, 2019 में गवाही के आधार पर, ट्रायल कोर्ट ने आवेदक को धारा 319 सीआरपीसी के तहत दाखिल अर्जी पर सम्मन जारी कर तलब किया।
धारा 438(6) सीआरपीसी के तहत निहित प्रतिबंध के मद्देनजर अपीलार्थी की पहली अग्रिम जमानत याचिका फरवरी 2023 में उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई थी। कहा हत्या मामले में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती,अर्जी पोषणीय नहीं है।यह रोक उत्तर प्रदेश संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा लगाई गई थी। पहली जुलाई 2024 के बाद जब बीएनएसएस लागू हुआ तो आवेदक ने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए धारा 482 बीएनएसएस के तहत नया आवेदन दायर किया। सत्र न्यायालय ने मार्च 2025 में इसे खारिज कर दिया। इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क दिया गया कि धारा 438(6) सीआरपीसी के तहत वैधानिक रोक अब बीएनएसएस के तहत मौजूद नहीं है, और वर्तमान आवेदन पूरी तरह से अलग वैधानिक व्यवस्था के तहत दायर किया गया है। अदालत ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि एफआइआर में अपीलार्थी की भूमिका अस्पष्ट थी। पोस्टमार्टम में एक गोली लगने की बात है जो आरोपियों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी के दावों का खंडन करती है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अपीलार्थी 78 वर्ष का है और फेफड़े और उम्र से संबंधित बीमारियों से पीड़ित है तथा उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। घटना के मद्देनजर उसे बुलाने में भी काफी देरी हुई थी (केवल 2019 में बुलाया गया)। यह तथ्य भी अपीलार्थी के पक्ष में था।