आर्थिक एवं सपनों की नगरी मुंबई पहुंचकर फिल्मों में एक्टिंग का सपना युवाओं और बुजुर्गों में हमेशा ही रहा है। इस मायानगरी में कुछ जमीन से सफलता के आसमान पर पहुंच गए और कुछ सफल जीवन बिताने के बावजूद असफलता के चलते फर्श पर आ गए। ऐसे अनेकों किस्से कहानियां फिल्मी दुनियों के लोगों के पढ़ने सुनने को मिलते हैं।
ऐसा भी नहीं है कि यहां लोगों को सफलता ना मिलती हो। मगर क्योंकि सफलता और असफलता सिक्के के दो पहलू हैं और कौन सा पहलू कब सामने आ जाए यह कोई नहीं कह सकता। धर्मेंद्र अमिताभ बच्चन, मनोज कुमार सहित ऐसे सैंकड़ों कलाकार है जो मुफलिशी में गए और नाम और माल कमाया। पता चलता है कि कुछ शीर्ष पर रहे और बाद में दवाई और रोटी के लिए भी मोहताज हो गए एक किस्सा खूब सुनने को मिलता है कि राजेश खन्ना जब सफलता के चरम पर थे तो उन्होंने एक बंगला खरीदा और निरंतर डाउन होते चले गए। जब उसे बेचा तो पुराने स्थान पर आकर खड़े हो गए। इसलिए कभी कभी समय माहौल और रहन सहन जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण रोल निभाता है।
लेकिन कुल मिलाकर जो युवा एक्टिंग का सपना लेकर मुंबई जाते हैं तो कुछ जानकारियों का अभाव होने के कारण और कुछ आर्थिक तंगी के चलते जल्दी ही संयम खो देते हैं। कुछ जो भी काम मिलता है वही करते हुए मेहनत करते रहते हैं। जैसा सतीश कौशिक का जीवन रहा। या जो समझदार होते हैं वो वापस आकर अपने घर के कामों में लग जाते हैं। मगर जितने भी फिल्मों में काम करने का सपना देखने लेेकर जाते हैं उनमें 90 प्रतिशत वो ही युवा सफल होते हैं जिनके पास आर्थिक मजबूती और घर का समर्थन होता है। बाकी कुछ बिरले जेसा कि अपने गिरीश थापर को देख सकते हैं कि निरंतर वो कोई भी काम मिले फिल्म हो या सीरीयल छोड़ते नहीं है। परिणामस्वरूप आज भी फिल्मी दुनिया में जमे हुए हैं। ऐसा ही कुछ मीडिया परिवार से संबंध दिल्ली विवि से शिक्षित पिछले दस साल से मुंबई में अपना मुकददर आजमा रहे कबीर सिंह को देख सकते हैं। लेकिन सामान्य रूप से यह सपनों की नगरी और इसका माहौल विकट है।
48 साल के ललित मनचंदा जो पिछले 12 साल से मुंुबई में रहे तथा फिल्म झांसी की रानी, तारक मेहता का उलटा चश्मा, इंडिया मोस्ट वांटेड, क्राइम पेट्रोल, मर्यादा सहित अनेको सीरियलों में भी मुकददर आजमा चुके ललितचंदा को वो सफलता नहीं मिल पाई जिसका वो सपना देखते थे। लेकिन इससे उत्पन्न आर्थिक तंगी के चलते ललित मनचंदा कुछ माह पूर्व मुंबई से मेरठ आ गए। पत्नी तरू मनचंदा 18 साल के बेटे उज्जवल और बेटी श्रेया के साथ मेरठ आए। इसे वक्त की मार कहें या कुछ और ललित मनचंदा व्यवस्थाओं में सेट नहीं हो पाए और परेशानी के चलते सुसाइड नोट में यह लिखकर कि मैं कायर नहीं हूं। हालात ही कुछ ऐसे हो गए हैं कि बहुत ज्यादा बेचैनी महसूस कर रहा हूं। मेरी मौत के लिए कोई जिम्मेदार नहीं है। परिवार के किसी सदस्य को परेशान ना किया जाए। आत्महत्या के अगले दिन देर शाम उनके पुत्र उज्जलव के द्वारा सुरजकूंड पर मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया गयां
गिरीश थापर कबीर सिंह सहित अनेकों फिल्मी कलाकारों ने उनके इस कदम पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए परिवार के प्रति सदभावना व्यक्त की। कलाकारों की आर्थिक स्थिति के चलते परिवार के संचालन और बीमारी में इलाज की समस्याएं विकट रूप से खड़ी होती है। इसलिए मेरा मानना है कि जो हमारी इच्छाएं हैं उनका दमन तो नहीं करना चाहिए लेकिन थोड़ी समझदारी दिखाकर परिवार की आर्थिक सामाजिक स्थिति खुद की सोच का आंकलन करने के साथ मुंबई जाने से पूर्व वहां कैसे रहना होगा खर्च कितना आएगा। काम के लिए कहां भागना होगा और काम नहीं मिलता तो कब तक संघर्ष करेंगे तथा असफलता नहीं मिलती है तो वापस परिवार में लौटने और काम करने में कोई गुरेज ना करने की सोचकर जाएं तो ललित मनचंदा द्वारा जो किया गया वैसी नौबत शायद ना आ पाए। मेरा मानना है कि अगर हमें सफलता नहीं मिल पाती है तो कुछ समय के लिए जो भी कामयाबी मिली उसे भूलकर परिवार पालने हेतु छोटे काम भी करने पड़ें तो उसमें शर्म महसूस नहींे करनी चाहिए। देर सवेर सफलता मिलेगी। इसके उदाहरण के ्ररूप में यूपी के मुजफ्फरनगर के नवाजुददीन सिददीकी को देखा जा सकता है। एक समय ऐसा भी था जब वो एक केमिकल फैक्ट्री में चौकीदारी करते थे और जो पैसा मिलता है उसने वहां जमे रहने की ताकत दी। हम तो इस उभरते कलाकार को चमकते हुए ही देखना चाहते थे लेकिन भगवान की मर्जी के आगे कुछ नहीं चलती है। इन्हीं शब्दों के साथ ललित मनचंदा को श्रद्धांजलि और परिवार को यह दुख सहने की शक्ति देने की प्रार्थना करते हुए भगवान से विनती है कि इन्हें जीवन में सफल बनाए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
ललित मनचंदा की आत्महत्या हीरो बनने का सपना देखकर मुंबई जाने वालों के लिए है सबक
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