बेंगलरु 23 फरवरी। कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार की तरफ से मंदिरों को टैक्स के दायरे में लाने पर विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने विधानसभा में ‘कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक पास कराया गया है। यह 1 करोड़ रुपये से अधिक राजस्व वाले मंदिरों से 10 प्रतिशत और 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये के बीच राजस्व वाले मंदिरों से 5 प्रतिशत संग्रह का आदेश देता है। इस विधेयक ने कर्नाटक में एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच तीखी नोकझोंक हो रही है। इतना ही नहीं मंदिरों पर शुल्क लगाने की क्षमता पर एक गरमागरम बहस छेड़ दी है। इससे बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक राजनीति गरमा गई है।
यह बिल कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती बिल 2024 है। इस को लेकर सत्ताधारी कांग्रेस सरकार के विरोध में भाजपा समेत कई संत भी उतर आए हैं। हालांकि कांग्रेस ने बिल का बचाव करते हुए कहा है कि राज्य में 40 से 50 हजार पुजारी हैं जिनकी सरकार मदद करना चाहती है।
भाजपा के आरोपों का खंडन करते हुए सरकार ने कहा कि यह प्रावधान नया नहीं है, बल्कि 2003 से अस्तित्व में है। मौजूदा सरकार ने सिर्फ स्लैब में एडजस्टमेंट किया है।
कर्नाटक में 3 हजार सी-ग्रेड मंदिर हैं, जिनकी आय पांच लाख से कम है। यहां से धर्मिका परिषद को कोई पैसा नहीं मिलता है। धर्मिका परिषद तीर्थयात्रियों के लाभ के लिए मंदिर प्रबंधन में सुधार करने वाली एक समिति है।
5 लाख से 25 लाख के बीच आय वाले बी-ग्रेड मंदिर हैं, जहां से आय का 5% साल 2003 से धर्मिका परिषद को जा रहा है। धर्मिका परिषद को 2003 से उन मंदिरों से 10% राजस्व मिल रहा था जिनकी सकल आय 25 लाख से ज्यादा थी।
काशी के संतों ने इस विधेयक की निंदा करते हुए कांग्रेस सरकार पर कटाक्ष किया है। संत समाज ने इस विधेयक को मुगल कालीन फरमान बताया है। साथ ही विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने और कर्नाटक के राज्यपाल से अखिल भारतीय समिति ने इसे मंजूर न करने की मांग की है।
अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने इसकी मुगल काल के जजिया कर से तुलना की है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में धर्म के आधार पर यह पहला मामला है।
कांग्रेस और बीजेपी में ठनी
बीजेपी ने राज्य सरकार पर हिंदू विरोधी नीतियां लागू करने का आरोप लगाया है, जबकि कांग्रेस ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा है कि इसी तरह के प्रावधान 2001 से लागू हैं। कर्नाटक सरकार के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने बीजेपी के आरोपों का जवाब देते हुए उनकी धार्मिक राजनीति पर सवाल उठाया और कहा कि कांग्रेस ने हमेशा मंदिरों और हिंदू हितों की रक्षा की है। कर्नाटक के लोग बीजेपी की चालों से अच्छी तरह वाकिफ हैं और आगामी लोकसभा चुनावों में अपना असंतोष व्यक्त करने की संभावना है। रेड्डी ने पत्रकारों से कहा कि यह प्रावधान नया नहीं है बल्कि 2003 से अस्तित्व में है। तो वहीं बीजेपी का ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार मंदिर के पैसों से अपना खाली खजाना भरना चाहती है।
बीजेपी की राज्य इकाई के अध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में इस कदम को लेकर सरकार पर निशाना साधा और कहा कि भ्रष्ट, अयोग्य ‘लूट सरकार’ ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ में हिंदू विरोधी विचारधारा के साथ, मंदिरों के राजस्व पर अपनी बुरी नजर डाली है। हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती संशोधन अधिनियम के माध्यम से, यह अपने खाली खजाने को भरने के लिए हिंदू मंदिरों और धार्मिक संस्थानों से दान के साथ-साथ चढ़ावे को भी हड़पने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार की योजना एक करोड़ रुपये से अधिक आय वाले मंदिर के राजस्व का 10 प्रतिशत और पांच करोड़ रुपये से कम की आय वाले मंदिर के राजस्व का पांच प्रतिशत हड़पने की है।
विजयेंद्र ने कहा कि मंदिर के राजस्व का इस्तेमाल पूरी तरह से मंदिरों के जीर्णोद्धार और भक्तों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किया जाना चाहिए, न कि इसे अन्य उद्देश्यों के लिए खर्च किया जाना चाहिए। विजयेंद्र ने सरकार से पूछा कि राजस्व के लिए केवल हिंदू मंदिरों को ही क्यों निशाना बनाया जाता है और यह सवाल लाखों भक्तों द्वारा उठाया गया है। केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर करारा हमला बोलते हुए कहा है कि कांग्रेस की लूट का एटीएम चलाने के लिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने हिंदू मंदिरों पर 10 प्रतिशत टैक्स लगाया है।