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Date: 13/03/2025, Time:

निजी क्षेत्र में आरक्षण पर पीछे हटा कर्नाटक

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बेंगलुरु 18 जुलाई। कर्नाटक सरकार ने बुधवार को उस विवादास्पद विधेयक पर रोक लगा दी, जिसमें निजी क्षेत्र की नौकरियों में कन्नड़ लोगों के लिए 70 प्रतिशत तक आरक्षण अनिवार्य किया गया था. कर्नाटक राज्य उद्योग, कारखाने और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के रोजगार विधेयक, 2024 को मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी थी.

मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया कि निजी क्षेत्र के संगठनों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षण प्रदान करने के लिए मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. आने वाले दिनों में विधेयक पर फिर से विचार किया जाएगा और निर्णय लिया जाएगा.

कर्नाटक सरकार निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के अपने कदम को जिस तरह रोकने को विवश हुई, उससे यह साफ है कि क्षेत्रीयता की राजनीति को बल देने वाली उसकी पहल का व्यापक विरोध रंग लाया। यह विरोध निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ जाने-माने कारोबारियों की ओर से भी किया गया।

इनमें राज्य स्थित सूचना तकनीक कंपनियां भी हैं, जिनमें दूसरे राज्यों के अनेक लोग काम करते हैं। चूंकि अभी कर्नाटक सरकार ने इतना भर कहा है कि वह निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के अपने फैसले पर फिर से विचार करेगी, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह इस विचार का पूरी तरह परित्याग करने जा रही है।

क्षेत्रीयता की राजनीति को विस्तार देते हुए कर्नाटक सरकार ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था के लिए जिस विधेयक को स्वीकृति दी थी, उसके अंतर्गत निजी कंपनियों में प्रबंधन वाले पदों में 50 और गैर प्रबंधन वाले पदों में 70 प्रतिशत पद राज्य के लोगों के लिए आरक्षित किए जाने थे।

प्रस्तावित विधेयक के प्रविधानों में यह भी था कि आरक्षण के इस नियम का उल्लंघन करने वालों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगता और यदि कोई कंपनी योग्य अभ्यर्थी न मिलने की दिशा में दूसरे राज्यों के किसी व्यक्ति को नौकरी देती तो ऐसा करने से पहले उसे राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ती।

यह तय है कि ऐसे प्रविधान निजी क्षेत्र को हतोत्साहित करने और साथ ही उसके कामकाज में नौकरशाही का अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ाने का ही काम करते। क्षेत्रीयता के आधार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण की यह तैयारी प्रतिभाओं की अनदेखी का भी परिचायक थी और संविधानप्रदत्त समानता के अधिकारों की उपेक्षा का भी।

यह विचित्र है कि जब कांग्रेस संविधान बचाने का दावा कर रही है, तभी उसकी कर्नाटक सरकार ने उसके मूल अधिकारों की अनदेखी करने वाला कदम उठा लिया। कर्नाटक सरकार का निर्णय वोट बैंक की सस्ती राजनीति से प्रेरित था और इसका उद्देश्य क्षेत्रीयता को हवा देना भी था। कन्नड़ भाषा को बढ़ावा देने के नाम पर यह काम पहले से ही किया जा रहा है।

कर्नाटक सरकार की निजी क्षेत्र में आरक्षण प्रदान करने की पहल ने यही बताया कि राज्य सरकार ने किस तरह इस तथ्य की अनदेखी की कि दूसरे कई राज्यों में ऐसी जो पहल हुई, उसे न्यायपालिका की स्वीकृति नहीं मिल सकी। यह संभव नहीं कि कर्नाटक सरकार इससे अवगत न हो कि अतीत में निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के जो कदम अन्य राज्य सरकारों ने उठाए, उन्हें अदालतों ने असंवैधानिक करार दिया।

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