नई दिल्ली 28 जनवरी। भारत और चीन ने इसी साल गर्मियों में कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने का निर्णय लिया है। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी की चीनी पक्ष के साथ हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। इसके अलावा नई दिल्ली और बीजिंग के बीच सीधी हवाई सेवा शुरू करने का भी निर्णय लिया गया। विदेश मंत्रालय ने सोमवार को बयान जारी कर कहा कि 2025 की गर्मियों में कैलाश मानसरोवर यात्रा होगी।
संबंधित तंत्र मौजूदा समझौतों के अनुसार यात्रा के कार्यक्रम के बारे में आगे चर्चा करेगा। 2020 में भारत-चीन के संबंधों में आई तल्खी के बाद यह यात्रा बंद हो गई थी। पिछले साल अक्तूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की कवायद शुरू हुई। इसी कड़ी में बातचीत के लिए विदेश सचिव विक्रम मिसरी चीन की यात्रा पर हैं।
भारत और चीन ने जलवायु आंकड़ों के आदान-प्रदान और सीमा पार नदियों से जुड़े अन्य सहयोग पर बातचीत के लिए दोनों देशों के बीच विशेषज्ञ स्तर के तंत्र की जल्द बैठक आयोजित करने पर सहमति जताई। दोनों देशों ने बातचीत के दौरान सीधी हवाई सेवा शुरू करने पर भी सहमति प्रकट की है। दरअसल, कोरोना काल में दोनों देशों के बीच हवाई सेवा बंद हुई थी, बाद में संबंध बिगड़ने के चलते यह शुरू नही हो पाई। लेकिन, अब सीधी विमान सेवा का रास्ता साफ हो गया है। दोनों पक्षों ने कूटनीतिक संबंधों और भरोसे को मजबूत बनाने के लिए वर्ष 2025 का उपयोग करने का फैसला किया है।
बताते चले कि कैलाश मानसरोवर का ज्यादातर एरिया तिब्बत में है। तिब्बत पर चीन अपना अधिकार बताता है। कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इस इलाके में ल्हा चू और झोंग चू नाम की दो जगहों के बीच एक पहाड़ है। यहीं पर इस पहाड़ के दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है।
इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। उत्तराखंड के लिपुलेख से यह जगह सिर्फ 65 किलोमीटर दूर है। फिलहाल कैलाश मानसरोवर का बड़ा इलाका चीन के कब्जे में है। इसलिए यहां जाने के लिए चीन की अनुमति चाहिए होती है।
मान्यता- कैलाश पर्वत पर भगवान शिव रहते हैं हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। यही वजह है कि हिंदुओं के लिए ये बेहद पवित्र जगह है। जैन धर्म में ये मान्यता है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ ने यहीं से मोक्ष की प्राप्ति की थी। 2020 से पहले हर साल करीब 50 हजार हिंदू यहां भारत और नेपाल के रास्ते धार्मिक यात्रा पर जाते रहे हैं।