यह बात किसी से छिपी नहीं है कि शहर हो या देहात अब लड़कियां भी हर मामले में लड़कों से आगे निकल रही है वरना कंधे से कंधा मिलाकर चलने मेें पीछे तो हैं ही नहीं। सबकी अपनी विचारधारा है। आजकल पढ़ लिखकर हमारी बेटियां बहने आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत हो गई है। समाज में उनका बड़ा स्थान है। उसके बावजूद यह जानते हुए भी कि हर किसी की अपनी सोच है और उसे उस पर चलने से रोका नहीं रोका जा सकता। मैं यह जरूर कहना चाहता हूं कि आईवीएफ व्यवस्था जो अपनाई जा रही है वो शायद ठीक नहीं है। हो सकता है कि डॉक्टरों की निगाह में यह सही हो और उससे कोई नुकसान नहीं होता हो लेकिन डॉक्टरों की बात पूरी तौर पर सब सही नहीं होती इसलिए विश्व आईवीएफ दिवस पर मैं एक बात कहना चाहता हूं कि हर कोई अपने हिसाब से जीवन यापन कर रहाा है लेकिन आईवीएफ जो देर से शादी और एग फ्रीज करा रही लड़कियों और परिजनों को इस बारे में चर्चा कर इस व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। बेटियां अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं। पढ़ाई के चक्कर में उम्र बढ़ जाती है और फिर नौकरी में भी उम्र खपा देती है। कोई शादी देर से करना चाहे तो उस पर रोक नहीं है। लेकिन आईवीएफ अपनाने से बचना चाहिए। इस बारे में एक खबर के अनुसार आज के बदलते दौर में लड़कों के साथ लड़कियों की सोच और प्राथमिकताएं भी बदल रही हैं। पहले जहां लड़कियां घर-परिवार, शादी और बच्चों को प्राथमिकता देती थीं, वहीं आज वह कॅरियर को लेकर काफी सजग हो गई हैं।
जब तक कॅरियर ठीक से न बन जाए और सही लाइफ पार्टनर न मिल जाए, वह शादी नहीं करना चाहतीं। इस कारण शादी की उम्र बढ़ रही है और इसका असर प्रजनन क्षमता पर पड़ रहा है। ऐसे लड़कियां एग फ्रीजिंग प्रक्रिया को अपना रही हैं। ताकि वह भविष्य में मां बनकर अपना परिवार बढ़ा सकें।
उम्र से जुड़ी है सफलता दर 30 की उम्र से पहले महिलाओं के एग सबसे ज्यादा अच्छे रहते हैं। उस समय वे एग फ्रीजिंग कराती हैं तो प्रेग्नेंसी की सफलता दर भी 75 फीसदी तक पहुंच जाती है। 30 से 35 की उम्र में एग फ्रीजिंग कराने पर 50 फीसदी तक सफलता देखी गई है। हालांकि ये फॉर्मूला हर महिला पर फिट नहीं होता।
यह है प्रक्रिया
एग फ्रीजिंग में महिला के गर्भाशय से हेल्दी एग्स को निकालकर स्टोर करके रखा जाता है। बाद में जब महिला गर्भ धारण करना चाहती है तो उन एग्स को फर्टिलाइज करके भ्रूण बनाकर महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता है। एग फ्रीज कराने के लिए हर साल लगने वाले खर्च के साथ ही शुरुआती प्रक्रिया में एक से 1.5 लाख तक का खर्च आता है। नई तकनीकी अपनाने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन कुछ मामलों में कुदरत ने जो व्यवस्था बनाई है। वो ही ठीक लगती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
आईवीएफ दिवस! नई तकनीकी अपनाने में नहीं है कोई हर्ज, कुछ मामलों में कुदरत की भी माननी चाहिए
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