देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा अपने पद का कार्यभार संभालने के बाद दो अक्टूबर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर देश में स्वच्छता और साफ सफाई को बढ़ावा देने हेतु स्वच्छता अभियान की शुरूआत की गई थी। आगामी दो अक्टूबर को इस अभियान के दस वर्ष पूरे हो जाएंगे। सरकारी आंकड़ों में भले ही कितनी स्वच्छता दिखाई जा रही हो और इसके लिए जिलों में सफाई और योजनाओं केे अन्य बिंदुओं को लेकर कुछ नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों को सम्मानित क्यों ना किया जा रहा हो मगर जहां तक नजर आता है बीते दस साल में और खासकर प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान का असर और लाभ आम आदमी को मिलता नजर आना चाहिए था वो नहीं दिखाई दे रहा है। केंद्रीय शहरी मंत्री और उनका विभाग तथा स्वच्छ भारत मिशन से जुड़े लोग भले ही कितने दावे क्यों ना कर रहे हो लेकिन अगर इसका गोपनीय सर्वे कराया जाए तो पता चलेगा कि आंकड़ेबाजी के अलावा कोई काम होता नजर नहीं आया है। जो काम हुए वो भी बताते हैं कि भगवान भरोसे हैं। शहरी कार्य और जलशक्ति मंत्रालय की ओर से मिलकर चलाए जा रहे इस अभियान में आंकड़ों के मुताबिक गांवों में 10.5 करोड़ से ज्यादा शौचालय एवं 5.87 लाख गांवों में ओडीएफ प्लस यानि खुले में शौच से मुक्ति और ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन के अलावा 8.50 लाख सामुदायिक शौचालय आदि बनाने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन जहां तक दिखाई देता है अगर इनकी गुणवत्ता की जांच हो जाए तो बड़ी तादात में पीएम के अभियान की नियमों के अनुकूल यह नहीं निकल पाएगे। शहरी कार्य मंत्रालय का कहना है कि 2025 तक देश में कूड़े के सभी पहाड़ों को खत्म करने का लक्ष्य रखा है और यह भी माना है कि इसे हासिल कर पाना मुश्किल है।
मेरा मानना है कि 2014 में लालकिले की प्राचीर से स्वच्छ भारत मिशन की जो शुरूआत प्रधानमंत्री जी द्वारा की गई थी उसको पूरा करने के लिए जिम्मेदार विभागो के लोगों को जवाबदेह बनाने के अतिरिक्त उनकी निगरानी और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई किया जाना सबसे बड़ी आवश्यकता है। क्या भविष्य में इस बारे में होगा वो तो समय ही बताएगा लेकिन नागरिकों की एक बात से मैं भी सहमत हूं कि स्वच्छता अभियान के तहत पूर्व में नगर निगम मेरठ में अधिकारियों को जो पुरस्कार दिया गया था उसका आधार तो देने वाले ही जाने लेकिन एक बात जरूर कही जा सकती है कि ना उस समय इस अभियान के तहत अनुकूल सफाई का माहौल था ना वर्तमान मे हैं। मैं किसी निगेटिव सोच के चलते तो नहीं कहता लेकिन एक बात जरूर कह सकता हूं कि इस अभियान को दस साल पूरे हो रहे हैं लेकिन पीएम साहब कुछ सांसदों की एक समिति गठित कर स्वच्छता अभियान की सफलता में जो आंकड़े अफसरों द्वारा पेश किए जा रहे हैं उनकी गुणवत्ता की जानकारी कराएं तो आश्चर्य जनक बिंदु उभरकर सामने आएंगे जिनके बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस पर जितना धन खर्च किया जा चुका है उससे तो देश की सभी नदियों और सफाई का जो नजारा दिखाई देता उसके मुकाबले तो अभी दो प्रतिशत भी कहीं नजर नहीं आता है। कुछ बुजुर्गों की इस कथन में भी सत्यता है कि पीएम ने मानव स्वास्थ्य के हित में अभियान शुरू किया था। एक दो जगह की बात और है लेकिन बाकी जगह गंदगी का आलम बढ़ा ही है। इसके उदाहरण के रूप में यूपी के मेरठ नगर निगम के क्षेत्र में व्याप्त गंदगी को देखा जा सकता है और वो भी उन परिस्थितियों में जब सफाई अभियान में केंद्र और प्रदेश की विभिन्न योजनाओं में भारी बजट इन्हें दिया गया लेकिन इनके अफसर वो कुछ करके नहीं दिखा पाए जिसकी उम्मीद की जा सकती थी। जहां तक नागरिकों का यह कथन है कि इस प्रकार से स्वच्छता अभियान लागू करने में असफल पूर्व नगरायुक्त अमित पाल शर्मा को स्थानांतरण कर प्रयागराज विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है और वो पोस्ट उपहार कही जा सकती है। ऐसी व्यवस्था के चलते अन्य अधिकारी भी अगर पीएम के अभियान को सफल बनाने की बजाय जोडतोड़ से अच्छे पद प्राप्त करने में लगे रहेंगे क्योंकि दोष के बावजूद कार्रवाई ना होना और अच्छे पदों पर नियुक्ति का होना ही अभियान को नुकसान पहुंचा रहा है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
दो अक्टूबर को हो जाएंगे दस साल, पीएम के सपनों के स्वच्छता अभियान को दस साल में भी साकार रूप नहीं दे पाए जिम्मेदार, दोषी कौन! इसके लिए बांटे गए पुरस्कार और जुड़े रहे अधिकारियों की हो जांच
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