asd पुलिस का सादे कपड़ों में गोली चलाना उचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

पुलिस का सादे कपड़ों में गोली चलाना उचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

0

नई दिल्ली 16 जून। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सादे कपड़े में, किसी वाहन को घेरने और उसमें सवार लोगों पर संयुक्त रूप से गोलीबारी करने वाले पुलिसकर्मियों के आचरण को लोक व्यवस्था के तहत कर्तव्य पालन नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में पंजाब के नौ पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या के आरोपों को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) परमपाल सिंह पर लगाए गए साक्ष्य नष्ट करने के आरोप को भी बहाल कर दिया, क्योंकि उन्होंने 2015 में गोलीबारी की घटना के बाद कार की नंबर प्लेट हटाने का निर्देश दिया था।

इस घटना में एक चालक मारा गया था। अदालत ने कहा कि यह माना गया है कि आधिकारिक कर्तव्य की आड़ में न्याय को विफल करने के इरादे से किए गए कार्यों को शामिल नहीं किया जा सकता है। कहा कि डीसीपी और अन्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ उनके कथित कृत्यों के लिए मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने हाल ही में न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए 29 अप्रैल के अपने आदेश में नौ पुलिस कर्मियों की अपीलों को खारिज कर दिया, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 20 मई 2019 के आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त आदेश में उनके खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था.

हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं- कोर्ट
पीठ ने कहा कि रिकार्ड में मौजूद सामग्री का अवलोकन करने के बाद कोर्ट का मानना है कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई मामला नहीं बनता है. सुप्रीम कोर्ट ने 8 पुलिस कर्मियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ शिकायत का संज्ञान नहीं लिया जा सकता, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत ऐसा करना वर्जित है. जिसके तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है.

पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह का आचरण, अपनी प्रकृति के अनुसार, लोक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने के कर्तव्यों से कोई उचित संबंध नहीं रखता है.’’ डीसीपी परमपाल सिंह से जुड़े मामले पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि यदि कोई कृत्य संभावित साक्ष्य को मिटाने के लिए किया गया हो, तो अंततः साबित होने पर भी उसे किसी भी वास्तविक पुलिस कर्तव्य से जुड़ा हुआ नहीं माना जा सकता.

सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होती- पीठ
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि जहां आरोप ही साक्ष्यों को दबाने का है… ऐसी स्थिति में सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होती और संज्ञान लेने के लिए मंजूरी कोई पूर्व शर्त नहीं है.’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपराधिक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 9 पुलिसकर्मियों ने हुंदै आई-20 कार को घेर लिया, आग्नेयास्त्रों के साथ उतरे और एक साथ गोलीबारी की, जिससे कार में सवार व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि पुलिसकर्मियों को बुलाने का मजिस्ट्रेट का आदेश और उसके बाद आरोप तय करने का सत्र न्यायालय का आदेश इस आधार पर आगे बढ़ता है कि प्रथम दृष्टया संगठित आग्नेयास्त्र हमले के सबूत मौजूद हैं.

Share.

Leave A Reply

sgmwin daftar slot gacor sgmwin sgmwin sgm234 sgm188 login sgm188 login sgm188 asia680 slot bet 200 asia680 asia680 sgm234 login sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin ASIA680 ASIA680