asd श्रद्धालुओं के लिए कथा और आयोजकों के लिए इवेंट बन गई, भगवान का शुक्र सब शांति से निपट गया

श्रद्धालुओं के लिए कथा और आयोजकों के लिए इवेंट बन गई, भगवान का शुक्र सब शांति से निपट गया

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बीती 15 दिसंबर से शुरू हुई शिवमहापुराण कथा का भक्तों ने खूब रसावादन किया और भक्ति रस में गोते भी लगाए और महादेव की भक्ति में नृत्य भी किया। पंडित प्रदीप मिश्रा कथा व्यास ने अपनी मधुर वाणी और कथा के बारे में ज्ञान की प्रस्तृति कर भक्तों की भावना को तृत्प किया। भक्त भरी सर्दी में कैलाश पर्वत पर विराजमान रहने वाले कैलाशपति की भक्ति में ऐसे डूबे कि रात्रि को भी सर्द हवाओं के चिंता किए बिना कथा स्थल पर पंडालों में जमे रहे। यह उनकी भक्ति थी लेकिन आयोजक और उनके वीआईपी या तो पूरी कथा में कुछ भक्तों के अनुसार आगे जाने अथवा वीआईपी गेट तलाशने का प्रयास करते ही नजर आए। क्योंकि कथा के वीआईपी पास बांटे गए इसलिए कुछ भक्तों के इस कथन में सच्चाई नजर आती है कि मानने वालों के लिए भले ही यह भगवान शंकर की कथा थी लेकिन आयोजकों व उनके अतिथियों के लिए अपनी महिमामंडन कराने फोटो खिंचवाने और अपने चेहरे चमकाने का इवेंट बन गई लगती थी। शायद यही कारण रहा कि कथा समाप्ति से पहले दिन जो अव्यवस्था हुई वो कहीं ना कहीं अपने आप को वीआईपी ट्रीटमेंट महसूस कराने वाले आयोजक व उनके अतिथि तथा उनके निजी बाउंसर इस भगदड़ के लिए जिम्मेदार कहे जा सकते हैं। कथा में व्यवस्था बनाए रखने हेतु प्रशासन और पुलिस द्वारा कोई कमी शायद नहीं छोड़ी गई क्योंकि कथा स्थल पर 1200 पुलिसकर्मियों के साथ ही चार कंपनी पीएसी भी लगाई गई थी और कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे. डीएम दीपक मीणा, एसएसपी विपिन ताड़ा और अन्य अधिकारी भी कथा की व्यवस्थाओं का जायजा ले रहे थे। इसलिए थोड़ी बहुत अव्यवस्था कुछ लोगों के चोटिल होने पर ही मामला निपट गया। आज की कथा के लिए 30 मजिस्ट्रेट भी लगाए गए और डीएम दीपक मीणा जैसे ही कथा स्थल पर अव्यवस्था की सूचना मिली सक्रिय हो गए और व्यवस्था बनाने में खुद ही लगे रहे। कथा स्थल पर शुभारंभ के दौरान ही यह घोषणा की गई कि एक लाख के करीब श्रद्धालु जुटेंगे उस हिसाब से व्यवस्था क्यों नहीं कराई गई। अव्यवस्था का नजारा शुरू होने से पहले कुछ आयोजकों ने पांच लाख भीड़ बताते हुए कहा कि चार पंडालों में एक एक लाख से ज्यादा लोग है। आज मीडिया ने एक लाख की भीड़ बताई जो कुछ ने उसे ढाई लाख तक पहुंचा दिया। भीड़ मापने का क्या मापदंड रहा यह तो लिखने वाले या बताने वाले ही जान सकते हैं लेकिन जो पंडाल बने थे उनमें एक पंडाल में एक लाख लोग एक साथ बैठ जाएं ऐसा संभव नहीं लग रहा था। भक्तों के इस कथन में सच्चाई नजर आई कि समाज को सदमार्ग दिखाने के लिए कथा कीर्तन की आवश्यकता है। लेकिन यह आयोजन भूमाफिया अवैध निर्माणकर्ता और अन्य चर्चित लोगों की बजाय भक्ति भाव से इसमें लगे संगठन और मंदिरों की संचालन समिति द्वारा कराई जाए तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि वो भक्ति भावना के तहत आयोजित होगी इसमें पदाधिकारियेां और जनप्रतिनिधियों से संपर्क साधने या अपना काम निकालने का दृष्टिकोण नहीं होगा।
आए दिन कथा जैसे समारोह में भगदड़ मचने की खबरें मिलती रहती है। इसलिए एक सज्जन का यह कथन सही है कि पंडाल मंच बनाने से लेकर फर्नीचर उपलब्ध कराने वाले सभी व्यक्ति पैसे लेता है तो आयोजन में लगे सुरक्षाकर्मियों का जो भुगतान किया जाता है उसकी वसूली कथा को इवेंट बनाने वालों से की जाए। तो शायद कुछ दिखावा कम हो जाए। इनमे जो आरती के नाम पर व अन्य तरीकों से जो धन लिया जाता है उसका भी हिसाब लिया जाना चाहिए। कुछ लोगों का मानना है कि कई लोग सरकारी जमीनों को बेचने के काम में लगे हैं और उससे इनके पास मुफत का पैसा आता है उसे लगाकर आयोजन के नाम पर कई के द्वारा अपना महिमामंडन कराया जाता है। जो इस कथा में भी खूब दिखाई दिया। कथा के महामंत्री और उनका परिवार प्रतिदिन व्यासजी से आशीर्वाद लेते थे और उनका मैनेजमेंट इतना अच्छा था कि उनका चेहरा हमेशा चमकता रहता था। कई लोगों का कथा में कोई योगदान नहीं था लेकिन आयोजकों में अपना नाम छपवाना नहीं भूले। कुछ भक्त जो आयोजन में लगे थे उनके व पुलिस प्रशासन के चलते भगदड़ की स्थिति नहीं हो पाई लेकिन भविष्य में इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी को चोट भी क्यों लगे।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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