नई दिल्ली 31 मई। भारत के प्रसिद्ध बाघ संरक्षणकर्ता और लेखक वाल्मीक थापर 73 साल की उम्र में कैंसर से हार गए। उन्हें ‘टाइगर मैन’ के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अपने पूरे जीवन में खासकर रणथंभौर के बाघों और जंगलों की रक्षा के लिए काम किया। वाल्मीक थापर ने 1988 में रणथंभौर फाउंडेशन बनाई, जो एक गैर-सरकारी संस्था है। यह संस्था स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बाघों और उनके जंगलों की सुरक्षा करती थी। वे शिकार करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाने और बाघों के रहने की जगहों को बचाने के लिए लगातार आवाज उठाते रहे हैं।
वाल्मीक थापर ने सरकार के 150 से ज्यादा पैनलों में काम किया और 30 से अधिक किताबें वन्यजीवों पर लिखीं। वे 2005 में यूपीए सरकार की टाइगर टास्क फोर्स के सदस्य भी थे। यह फोर्स उस वक्त बनी थी जब सारिस्का टाइगर रिजर्व से अचानक बाघ गायब हो गए थे। फोर्स ने बाघों और इंसानों के साथ मिलकर रहने की बात कही, लेकिन वाल्मीक थापर इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि बाघों को लंबे समय तक बचाने के लिए बड़ी जमीन सिर्फ वन्यजीवों के लिए सुरक्षित रखनी होगी। वाल्मीक थापर को उनके गुरु फतेह सिंह राठौर से प्रेरणा मिली, जो भारत के जाने-माने संरक्षणकर्ता थे।
वाल्मीक थापर ने भारत के बाघों को दुनिया के सामने पहचान दिलाने में बहुत बड़ा काम किया। उन्होंने कई वन्यजीव (wildlife) डॉक्यूमेंट्री बनाने में मदद की और BBC के लिए कई फिल्में पेश कीं। साल 2024 में उन्होंने ‘माय टाइगर फैमिली’ नाम की डॉक्यूमेंट्री में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने 50 सालों तक रणथंभौर के जंगली बाघों का अध्ययन किया। वन्यजीव विशेषज्ञ नेहा सिन्हा ने वाल्मीक थापर को ‘भारतीय बाघों की अंतरराष्ट्रीय आवाज’ बताया और उनकी किताबें पढ़ने की सलाह दी। बाघ संरक्षणकर्ता निर्मल घोष ने उन्हें बाघों की देखभाल में एक महान नेता और दुनिया में बाघों के लिए एक प्रतिनिधि के रूप में याद किया।