राजनीतिक दल जहां जिसकी सरकार है वहां पर जो सुविधाएं नहीं दे पा रहा है उन लाभों को देने का ख्वाब जहां चुनाव होने हैं वहां की जनता को दिखाने में किसी भी रूप में पीछे नहीं है। पूर्व में अदालत ने भी इस ओर ध्यान देते हुए मुफत देने की घोषणाओं से बचने की सलाह दी थी। और कई मौकों पर पीएम मोदी भी ऐसे सपने दिखाने से बचने की बात कर चुके हैं तो वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी निरंतर इस बारे में अपडेट कर रहे हैं कि अगर इसी प्रकार मुफ्त की रेवड़ी बांटी जाती रही हो कई समस्या खड़ी हो सकती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा कर्नाटक सरकार की गई घोषणाओं को समय से पूर्व पूरा ना किए जाने और हिमाचल की सरकार सवाल उठाए कि उन्होंने जो घोषणाएं की थी वो पूरी नहीं की। इस बिंदु को लेकर पीएम मोदी और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच वाकयुद्ध जैसी स्थिति है। भाजपा और विपक्ष अपना अपना पक्ष रख रहे हैं।
मेरा मानना है कि इन दल और उसके विचार कुछ भी हो मगर देशहित और नागरिकों का जीवन सुखी रहे इसे ध्यान रखते हुए मुफत की घोषणाएं करना बंद करना चाहिए। राशन वितरण को ही लें तो आधे से ज्यादा वो लोग मुफ्त का राशन खा रहे है जो इसकी नियमों की परिधि में नहीं है। लेकिन मुफ्त मिल रहा है तो उसे लेने में कोई बुराई नहीं समझता है। इस कारण से जो उद्योगपतियों व्यापारियों और मध्यम दर्जे के नागरिकों पर टैक्स बढ़ाने से आर्थिक भार पड़ रहा है वो उससे बुरी तरह पीड़ित हैं और भविष्य में शायद इस पीड़ा को झेल नहीं पाएंगे। अगर सरकारों ने समय से घोषणाओं को बंद नहीं किया तो मजबूत सरकार को भी उसके परिणाम झेलने पड़ सकते है।
पिछले दिनों महाराष्ट में एक राजनेता द्वारा खिलाड़ियों को दी गई नकद राशि को लेकर कहा था कि यह बंद होना चाहिए या नेता अथवा जनप्रतिनिधि अपनी जेब से यह प्रोत्साहन राशि दे सरकारी मद से नहीं। मुझे भी लगता है कि जनहित में खिलाड़ियों को बढ़ावा दिया जाए। उनके रहने खाने की सुविधाएं सरकार करें इसमें कोई परेशानी नहीं है क्येांकि देश का नाम वह अपने प्रदर्शन से करते है। उन्हंे नौकरियां दी जानी चाहिए लेकिन जिस प्रकार करोड़ों में नकद राशि का भुगतान कर सरकार आम आदमी पर बोझ डालती है उसे ठीक नहीं कहा जा सकता। कुल मिलाकर मुफ्त की सहायता बंद हो। सरकार आदमी को आगे बढ़ने बच्चों को पढ़ने का माहौल बनाएं जिससे वह भरण पोषण कर देश का नाम रोशन कर सके। अगर लगता है कि यह जरूरी तो जनप्रतिनिधि अपने भत्ते और वेतन आधे कर खर्चों में कमी करे तो किसी को कोई ऐतराज नहीं है। अगर वह किसी को कुछ देती है तो।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मतदाताओं के हित में मुफ्त की रेवड़ियां बंटनी हो बंद
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