asd प्रदेश व बच्चों के हित में कम संख्या वाले 27 हजार स्कूलों को बंद करने के लिए सरकार कार्रवाई करे विपक्ष के दबाव में आए बिना

प्रदेश व बच्चों के हित में कम संख्या वाले 27 हजार स्कूलों को बंद करने के लिए सरकार कार्रवाई करे विपक्ष के दबाव में आए बिना

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यूपी शिक्षा विभाग द्वारा 27 हजार प्राथमिक विद्यालयों को निकटवर्ती विद्यालयों में विलय करने या बंद करने की खबर को भ्रामक और निराधार बताए जाने के बावजूद विपक्षी नेता इस मुददे को लेकर यूपी की योगी सरकार को घेरने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि विपक्ष अपनी भूमिका निभाता है सरकारी अपनी और हमारे लिए दोनों ही बराबर है मगर जहां तक कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी सपा नेता डिंपल यादव पूर्व सीएम मायावती और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल इन 27 हजार स्कूलों को बंद करने की बात पर कह रहे हैं कि मौजूदा सरकार नहीं चाहती कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले के संदर्भ में जहां तक जानकारी है और ऐसे स्कूलों को कई बार देखने को मौका मिला उससे तो यही लगा कि सरकार को इस संबंध में कार्रवाई करनी ही चाहिए। क्योंकि संख्या जितनी खबर में है उसे देखकर कह सकते हैं कि इन स्कूलों पर साक्षरता के नाम पर आम आदमी के टैक्स के पैसों का किस प्रकार से दुरूपयोग हो रहा है उसका पता मौके पर देखकर ही लगाया जा सकता है। क्योंकि कितने ही ऐसे स्कूल है जिनमें नाममात्र को बच्चे आते हैं लेकिन शिक्षकों के वेतन पर लाखों रूपये खर्च होते है। और बच्चों की कमी के चलते शिक्षकों की उदासीनता एवं बच्चों में पढ़ाई से मन का उचाट होने की जो भावना बढ़ रही है उससे ना तो सरकार की नीति का पालन हो पा रहा है ना बच्चे पढ़ पा रहे हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों को वेतन हर माह मिल रहा है इसलिए उन्हें इस बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है कि कितने बच्चे स्कूल आ रहे है। उन्हें स्कूलों में आकर हाजिरी लगाना पसंद है तो बच्चें भी पढ़ाई पर ध्यान देने को तैयार नहीं है। मुझे लगता है कि यूपी शिक्षा विभाग को इस मुददे पर सफाई देने की बजाय जहां सौ से कम बच्चे हैं उन स्कूलों की गणना कराकर देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है और कुछ समय शिक्षकों को बच्चों की संख्या बढ़ाने का देकर अगर बच्चों को स्कूल तक लाने में सफलता नहीं मिलती है तो जो बच्चें हैं उन्हें निकट के स्कूल में भेजा जाए और इन स्कूलों को बंद किया जाए। क्योंकि तभी साक्षरता को बढ़ाने की मंशा पूरी हो पाएगी। हमारा तो मानना है कि सभी विपक्षी नेताओं को जिन स्कूलों को बंद करने की बात उनके संज्ञान में आ रही है उनका निरीक्षण कराना चाहिए और वो स्कूल अस्तित्व में बने रहे इसके लिए वहां के शिक्षकों को जनहित में तैयार किया जाए कि वो घर जाकर बच्चों को लाने और पढ़ाई का सरल माध्यम बनाकर उन्हें रोजाना आने के लिए तैयार करें। अगर ऐसा विपक्ष के नेता करते है। तो सरकार ना तो उन्हें बंद करने की सोच सकती है और बच्चे भी शिक्षा प्राप्त कर परिवार समाज और देशहित में भूमिका निभा सकते हैं। मेरा यूपी के सीएम योगी आदित्यानाथ और शिक्षाा विभाग के अधिकारियों से आग्रह है कि अगर वो बच्चों की कम संख्या वाले स्कूलों को बंद नहीं कर रहे हैं तो कुछ ऐसा प्रयास करें कि यह स्कूल चलते रहें और सफलता नहीं मिलती है तो इन्हें बंद कर जगह का उपयोग जनहित के अच्छे कार्यों के करे। मगर इस मुददे पर बचाव की नहीं कार्रवाई की मुद्रा में सरकार को बच्चों के हित में आगे आना चाहिए यही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता कही जा सकती है वरना हम बच्चे पढ़ेंगे आगे बढ़ेंगे के नारे लगाते रहेंगे जिनका मतलब ना अब निकल रहा है ना आगे निकलेगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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