आए दिन अदालतों और सरकारी कार्यालयों में सुबह शोकसभा और फिर काम की छुटटी वो बात और है कि जिसके लिए यह शोक सभा की जाती है उसके परिवार को सांत्वना देने गिनती के लोग ही पहुंचते हो। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत यह समझने में असमर्थ हैं कि केवल उत्तर प्रदेश में ही वकीलों को सुबह दस बजे शोकसभा बुलाने की क्यों जरूरत पड़ती है। इससे पूरे दिन अदालत का काम बाधित होता है। अदालतें पहले से ही मुकदमों के बोझ से जूझ रही हैं। ऐसे में हड़ताल या शोक के नाम पर न्यायिक कार्य को बाधित करना अनुचित है। हड़ताल से आम नागरिक न्यायिक तंत्र पर सवाल उठ रहे हैं।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ.गौतम चौधरी की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान आपराधिक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए की है। कोर्ट ने सभी जिला जजों को निर्देश दिया है कि वह बार एसोसिएशन की ओर से हड़ताल के आह्वान से संबंधित किसी प्रस्ताव को प्रसारित न करें। बार संगठनों से उम्मीद जताई है कि वे अदालती कामकाज सुचारू रूप से चलने में सहयोग करते हुए वकालत पेशें के गौरव को बरकरार रखेंगे।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता के आर चित्रा व सत्यकेतु सिंह ने कोर्ट को आए दिन वकीलों की हड़ताल से होने वाले नुकसान की जानकारी दी। कहा कि अधिकांश वकील काम करना चाहते हैं। लेकिन, कुछ वकील अपने वैधानिक व्यावसायिक दायित्व को निभाने के बजाय हड़ताल कराते हैं। वकीलों व वादकारियों को परेशान करते हैं।
एक खबर के अनुसार उन्होंने बताया कि जिला जज हड़ताल के प्रस्ताव को सभी जजों को प्रसारित करते हैं, जिससे अदालतें काम नहीं करतीं। वहीं, हाईकोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता सुधीर मेहरोत्रा ने कोर्ट को बताया कि हड़ताल करने वाले पदाधिकारियों के विवरण के साथ सभी जिलों से जानकारी एकत्र की जा रही है। कोर्ट ने कैप्टन हरीश उप्पल मामले में पारित निर्देश का हवाला दिया। कहा कि हड़ताल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्याममूर्ति गौतम चौधरी ने जो इस बारे में सोचा वो समाज हित में बड़ी बात है। उन्होंने जो सुझाव दिए वो भी काबिले तारीफ है। मेरा मानना है कि केंद्र व प्रदेश सरकारें सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में छुटटी की व्यवस्था चल रही है। उस पर रोक लगाए क्योंकि इससे आम आदमी का काम प्रभावित होता है। और उन्हें दोबारा उस काम के लिए आना पड़ता है। इससे पैसा और समय दोनों की बर्बादी होती है। इसे ध्यान रखते हुए मुझे लगता है कि शोकसभाएं शाम चार बजे के बाद हों और यह भी तय हो कि जिस आदमी के लिए हम श्रद्धांजलि दे रहे है। सभी लोग उसके परिवार को जाकर श्रद्धासुमन भेंट करें। और अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसका एक दिन का वेतन काटा जाए। यह व्यवस्था देश के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकार व जनहित में! अदालत ही नही सरकारी कार्यालयों में भी सुबह की जगह शाम चार बजे के बाद हो शोक सभा
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