प्रयागराज, 13 जून। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति को शारीरिक दक्षता परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए पहली बार में असफल होने पर दूसरा मौका नहीं दिया जा सकता। सरकारी कर्मचारी के अचानक निधन के बाद शोक संतप्त परिवार की आर्थिक मदद के लिए अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है। इसका उद्देश्य किसी भी तरह का दर्जा प्रदान करना या भर्ती का वैकल्पिक तरीका नहीं है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की पीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील पर यह आदेश दिया।
मुजफ्फरनगर की गीता रानी के पति मान सिंह सिविल पुलिस में हेड कांस्टेबल थे। इस दौरान अचानक उनकी मौत हो गई। गीता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। इस दौरान शारीरिक दक्षता परीक्षण पूरा नहीं कर सकी, इसलिए उसका दावा खारिज कर दिया गया। इस पर गीता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। एकल न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल होने का एक अंतिम अवसर प्रदान किया तथा निर्देश दिया कि यदि वह परीक्षा में असफल हो जाती है तो उसे उसकी योग्यता के अनुसार पद प्रदान किया जाना चाहिए। इस आदेश को राज्य सरकार ने चुनौती दी। कहा कि याचिकाकर्ता आश्रितों की भर्ती नियम, 1974 के नियमों के तहत शारीरिक दक्षता परीक्षण में फेल हो चुकी हैं।
नियमों के तहत कोई दूसरा अवसर प्रदान नहीं किया जाता है। यह भी दलील दी कि याचिकाकर्ता का पति हेड कांस्टेबल के पद पर था। वहीं, सब-इंस्पेक्टर का पद हेड कांस्टेबल से ऊंचा है। ऐसे में पति के पद से ऊंचे पद पर अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती। अन्य कई तर्क भी दिए। हाईकोर्ट ने कहा कि याची ने पुलिस बल में अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी, इसलिए शारीरिक परीक्षा में कोई छूट नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता ने अपनी इच्छा से शारीरिक दक्षता परीक्षण में भाग लेने का निर्णय लिया था और वह इसमें असफल रही, इसलिए दूसरा अवसर नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने राज्य की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि प्रतिवादी-याचिकाकर्ता किसी भी उपयुक्त पद पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए नए सिरे से आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है।