आज हम मानव जीवन के लिए सबसे बहुमूल्य आत्महत्या रोकथाम दिवस मना रहे हैं। पिछले पांच दशक में जितना मैंने देखा उससे यह तो बात साफ है कि आत्महत्या किसी विशेष वर्ग अथवा कारण को लेकर लोग नहीं करते हैं क्योंकि कोटा में पढ़ाई के भार और अनकहे रूप से विभिन्न प्रकार का होने वाला उत्पीड़न अगर आत्महत्या का कारण हो सकता है तो देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा आईएएस से जुड़े अफसर उद्योगपति और व्यापारी यह कार्य नहीं करते। मगर आप समाचार पत्र पढ़ते हैं तो आत्महत्या महिला पुरूष युवा गरीब अमीर सभी में कोई ना कोई कर रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि डिप्रेशन में व्यक्ति ऐसे निर्णय कभी कभी ले लेता है। डिप्रेशन पति पत्नी और परिवार में होने वाले मतभेदों को लेकर भी हो जाता है तो कभी उम्मीद से ज्यादा इच्छा रखने वाले भी इसका शिकार हो जाते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि अगर व्यक्ति प्रतिदिन व्यायाम और योग करता है तो आसानी से आत्महत्या का विचार उस पर हावी नहीं हो सकता। यह भी कहा जाता है कि अगर आप किसी वजह से नर्वस है और अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं तो कुछ पढ़ने या देखने में दिमाग लगाइये। जिन लोगों से आप प्यार करते हैं उन्हें हक करिये या हाथ पकड़कर कुछ समय के लिए बैठ जाएं और बिना किसी सोच के अपने मन का गुब्बार अपनों के सामने निकालें। अगर ऐसा नहीं करते तो उनसे लड़ना शुरू कर दें तो आपका ध्यान बंटेगा और आप जल्दी ही जीवनलीला समाप्त करने की बात भूल जाएंगे। दिल्ली विवि से संबंध डॉ भीमराव अंबेडकर कॉलेज में आत्महत्या की रोकथाम पर बीते नौ सितंबर को एक कार्यशाला आयोजित की गई इसका उदघाटन करते हुए कॉलेज प्राचार्य प्रो. सदानंद प्रसाद ने कहा कि मानसिक और भावनात्म संघर्षों जैसे दिल टूटना विश्वासघात आदि आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। मैं उनकी बात को तो नहीं काट रहा लेकिन आजकल विश्वासघात, दिल टूटना एक आम बात हो गई है क्योंकि इसके पीछे कई कारण है। प्यार में दिल टूटता है तो अलग असर होता है। जब अपने विश्वासघात करते हैं तो अलग सोच होती है और कभी कभी लोग नासमझी या जल्दबाजी में हुर्ह बात को विश्वासघात समझ लेते हैं ऐसे में वो आत्मघाती कदम उठाने की सोचते है।
मैं कोई डॉक्टर योगाचार्य या समाज सुधारक तो नहीं हूं लेकिन पिछले 50 साल के जीवनरूपी विवि में जितने लोगों के संपर्क में आयवा उससे यह पता चला कि कुछ लोगों को छोड़कर कोई भी आपका सगा नहीं हो सकता और विश्वासघात को आपाधापी और सुविधा के साधन जुटाने के लिए आपके साथ कोई भी कर सकता है। इसलिए हमें अपनी सोच को समयानुसार मजबूत करना होगा। और परिवार के सदस्यों व परिचितों में किसी को वैचारिक बदलाव या सोच का असर दिखाई दे तो उन्हें ऐसे लोगों से बातचीत करनी चाहिए तो जो समाज में देखा है उसके अनुसार आत्महत्या वाली सोच वाले व्यक्तियों को आसानी से बचाया जा सकता है उसके लिए समय जरूर लगाना पड़ेगा। दोस्तों शादी टूट जाना प्रेमी प्रेमिका के छोड़कर चले जाना अपनों के द्वारा धोखा दिया जाना यह सब जीवन के दो पहलू के समान है। जिंदगी बड़ी महत्वपूर्ण है। अपनों के लिए जितनी भी योनि आजतक हुई है उनमें मानव जीवन सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए आओ सब मिलकर आज विश्व आत्महत्या रोको दिवस के मौके पर संकल्प करे कि जितना हो सकता है आत्महत्याओं की रोकथाम के लिए प्रयास किया जाएगा। और इसके लिए किसी के पास जाने की जरूरत नहीं है। अगर खुद शांति से बैठकर किसी से बात करें तो उसकी आधी परेशानी समाप्त हो जाती है और आत्महत्या का विचार भी दूर चला जाता है। तब पता चलता है कि जीवन कितना महत्वपूर्ण है। वैसे तो सभी मुझसे ज्यादा काबिल है लेकिन जीवन में आई परेशानियों और अपनों द्वारा जो मानसिक सामाजिक उत्पीड़न किया जाता है उससे घबराएं नहीं। खुलकर अपनी बात सबके सामने रखें तो हमें मरने की जरूरत नहीं है। सामने वाला अपनी आदत सुधारने के लिए तैयार होगा। परेशानी वहां आती है जहां हम अपनी बात नहीं कह पाते। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि उम्मीद से ज्यादा की चाहत मत रखो और जीवन में कभी हार मानने की जरूरत नहीं है। जरूरत पड़े तो अपने हितों की रक्षा और अपने वजूद के लिए सामने वाले से घबराने की बजाय भिड़ जाए, हार ना माने। वक्त पड़ने पर लड़ने की ताकत बनाए रखें आत्महत्या जैसी समस्या कम जरूर हो जाएगी क्योंकि जिस माहौल में हमारी नई पीढ़ी पल पढ़ रही है उसमें जबरदस्ती के आदर सम्मान की ढकोसलेबाजी समाप्त हो रही है। मौका कुछ भी हो जिंदा रहने की अपनी बात को समझाने का मौका ना छोड़े सामने वाला कुछ भी कह रहा हो। हमें क्या फर्क पड़ता है। बाकी यह तो अटल सत्य है कि जिसकी जब जैसे आई है उसे तो जाना ही है। बस समय से पहले कोई ना जाए ऐसा हम सबको करना है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
आत्महत्या से बचना है तो अपनी बात कहना जीवन में कभी हार ना मानना और उम्मीद से ज्यादा की इच्छा से बचकर रहना होगा
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